महाराष्ट्र में बेबस किसान 2 रुपये किलो प्याज बेचने को मजबूर, कहां गई अन्नदाता की आमदनी दोगुनी करने वाली सरकार?
राज्य में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनके बारे में जानकर आप भी चौंक जाएंगे। राजेंद्र नाम के किसान ने 512 किलो प्याज बेचा और उन्हें इसके लिए सिर्फ 2 रुपये का चेक मिला। सोलापुर के एक किसान को 825 किलो प्याज बेचने पर 1 रुपये अपनी जेब से ही भरना पड़ा।
देश और कई राज्यों की सत्ता पर काबिज होने के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी ने किसानों की किस्मत बदलने के दावे किए थे। केंद्र की सत्ता हासिल करने के बाद मोदी सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया थ। साल 2023 का यह मार्च का महीना है, अब तक न तो किसानों की तकदीर बदली और ना ही तस्वीर। इन दिनों बीजेपी शासित महाराष्ट्र से प्याज की खेती करने वाले किसानों की जो तस्वीर सामने आई उसने सभी को विचलित कर दिया है।
महाराष्ट्र के बेबस किसान अपने प्याज को दो रुपये किलो तक बेचने को मजबूर हैं। जिस दौर में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में प्याज के दाम आसमान छू रहे हैं। दुनियाभर में प्याज की कमी है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के कई हिस्सों में प्याज की कमी और उसकी बढ़ती कीमतें फूड क्राइसिस को जन्म दे सकती है। यहां तक कि भारत के महानगरों में खुदरा रेट पर प्याज 25 से 30 रुपये किलो तक बिक रहा है। विडंबना देखिए इस इस दौर में भी महाराष्ट्र के किसानों को उनकी प्याज की कीमत सिर्फ 2 से 4 रुपये किलो तक ही मिल पा रही है।
महाराष्ट्र में किसानों की जो मौजूदा हालत है, उनकी जो दयनीय स्थिति है, शायद ही लुटियंस की दिल्ली में बैठे लोग उसे समझ पाएं। महाराष्ट्र के किसान कई सालों से अतिवृष्टि का सामना करते आ रहे हैं। पिछले साल जून और अक्टूबर के महीने में बारिश की वजह से किसानों को 30 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ था। इस बार ऊपर वाले की मार नहीं पड़ी और प्याज की पैदावार उम्मीद के मुताबिक ठीक रही। अब जबकि प्याज की फसल अच्छी हुई तो किसानों को उनका मेहनताना नहीं मिल पा रहा है।
किसानों के मुताबिक, एक से दो किलो प्याज उगाने के लिए 8 से 10 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। किसान संगठनों के मुताबिक, एक से दो किलो प्याज उगाने में 15 से 20 रुपये तक का खर्च आता है, और इस समय महाराष्ट्र के किसानों को एक किलो प्याज की कीमत सिर्फ 2 से 4 रुपये किलो तक ही मिल रही है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस अन्नदाता के दिल पर क्या गुजर रही होगी जिसने हजारों या फिर लाखों रुपये खर्च कर प्याज की खेती की होगी।
महाराष्ट्र की सत्ता पर एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर काबिज होने के बाद बीजेपी मलाई काट रही है और किसान प्याज के आंसू रोने को मजबूर हैं। आलम यह है कि मौजूदा हालात से परेशान नासिक के एक युवा किसान सुनील बोरगुड़े ने दो एकड़ प्याज की फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। सुनील बोरगुड़े ने इसकी बुवाई में सवा लाख रुपये खर्च किए थे। जब सही कीमत नहीं मिली तो कुछ किसानों ने तो रास्ते पर ही प्याज उंडेल दिया और छोड़कर चले गए।
राज्य में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनके बारे में जानकर आप भी चौंक जाएंगे। राजेंद्र नाम के किसान ने 512 किलो प्याज बेचा और उन्हें इसके लिए सिर्फ 2 रुपये का चेक मिला। सोलापुर के एक किसान को 825 किलो प्याज बेचने पर 1 रुपये अपनी जेब से ही भरना पड़ा।
राज्य के किसान अलग-अलग तरीके से अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। सड़कों पर उतकर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और राज्य की सरकार मौन है। बीते 27 फरवरी को किसानों ने प्याज की बड़ी मंडी लासलगांव मंडी बंद करा दी और जोरदार प्रदर्शन किया। किसानों की मांग है कि उन्हें जो नुकसान हुआ है, सरकार उसकी भरपाई करे। किसानों का कहना है कि कई देशों में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं, ऐसे में सरकार प्याज की निर्यात को बढ़ाए।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में किसान मुख्य रूप से प्याज की खेती करते हैं। यह राज्य कुल प्याज उत्पादन में करीब 60 फीसदी का योगदान करते हैं। इनमें महाराष्ट्र सबसे आगे। बात करें देश की तो पूरे देश में करीब 19 हजार हेक्टेयर में प्याज की खेती होती है। प्याज की खेती दो बार रबी और खरीफ, दोनों सीजन में होती है। रबी क्रॉप का योगदान करीब 65 फीसदी रहता है। केंद्रीय कृषि कल्याण मंत्रालय ने इस साल 31 मिलियन टन से ज्यादा प्याज के उत्पादन का अनुमान लगाया है। जो साल 2020-2021के 26.64 मिलियन टन से काफी ज्यादा है।
प्याज का निर्यात करने वाले दुनियाभर के देशों में भारत कहीं आगे है। बंगलादेश, मलेशिया, श्रीलंका, यूएई, पाकिस्तान और नेपाल में भारत प्याज का निर्यात करता है। भारत और चीन दुनिया में कुल प्याज उत्पादन का 45 फीसदी प्याज उपजाते हैं, लेकिन खाने के मामले में यह दोनों दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार नहीं हैं। देश के किसान 1 रुपये किलो प्याज बेचने को मजबूर हो जाते हैं। इन्हीं किसानों को उनका हक दिलाने की बात करने वाली मोदी सरकार '56 इंच' का सीना दिखाकर निर्यात के आंकड़े पेश करती है। न तो किसानों की तस्वीर बदलती है और न जनता की तकदीर जो हर साल सितंबर से लेकर नवंबर के महीने में भी प्याज के आंसू रोनो को मजबूर हो जाते हैं। कई सालों से भारत में प्याज से जुड़ा यह भी एक शर्मनाक इतिहास है, जिसे बदले जाने का देश की जनता के साथ किसानों को भी इंतजार है।
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Published: 02 Mar 2023, 11:05 AM