नूंह और गुरुग्राम में 'बुलडोजर न्याय' पर अस्थायी रोक: पर बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते?
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को हरियाणा के नूंह और गुरुग्राम में चल रहे 'बुलडोजर न्याय' पर अस्थायी रूप से तब तक रोक लगा दी जब तक कि सरकार नोटिस का जवाब नहीं देती। और, शुक्रवार से पहले कोर्ट को सूचित नहीं करती।
मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस संधवालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि क्या राज्य 31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद नूंह और गुरुग्राम में मकानों, दुकानों और झोपड़ियों को ध्वस्त करने से पहले उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया या नहीं। कोर्ट ने हरियाणा सरकार को तुरंत इस विध्वंस की कार्यवाही को रोकने का आदेश देते हुए अब तक गिराई गई इमारतों की सूची पेश करने का निर्देश दिया है।
बेंच ने कहा कि जिन भी इमारतों पर विध्वंस की कार्यवाही की जा रही है वह “बिना किसी आदेश या नोटिस के की जा रही है और कानून-व्यवस्था के नाम पर बिना कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए ही इमारतों को गिराया जा रहा है।“ कोर्ट ने यह भी कहा कि “सवाल यह भी उठता है कि कानून-व्यवस्था की आड़ में आखिर सिर्फ एक ही समुदाय की इमारतें क्यों गिराई जा रही हैं, क्या इसे सरकार द्वारा जातीय सफाए (एथनिक क्लीनजिंग) नहीं माना जाना चाहिए।”
विध्वंस कार्यवाही पर रोक के हाईकोर्ट के आदेश पर कई किस्म की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। बुलडोजर न्याय पर देश के किसी भी राज्य में किसी भी हाईकोर्ट का यह पहला आदेश है। सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव और संविधान शेषज्ञ गौतम भाटिया ने हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत किया है। गौतम भाटिया ने कहा कि, “आखिरकार किसी कोर्ट ने कहा है कि वह अपनी आंखों से जो कुछ देख रहा है उसे अनदेखा नहीं कर सकता।” वहीं योगेंद्र यादव ने कहा कि, “किसी न किसी को तो बुलडोजर न्याय के खिलाफ खड़ा ही होना था। आखिर कोर्ट ने एहसास दिलाया कि देश में कानून का न्याय है। उम्मीदें जिंदा रखने के लिए धन्यवाद करना चाहिए।”
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। उनका कहना है कि सही है कि आदेश आया है लेकिन बहुत देर कर दी गई है और तब तक तमाम इमारतों को गिरा दिया गया। किसी की टिप्पणी है कि, “कोर्ट भी तब जागा है जब ध्वंस हो चुका है। इस आदेश से इमारतें तो नहीं खड़ी हो जाएंगी। इससे सिर्फ कुछ ही लोगों को सुकून मिला होगा। कोर्ट को लोगों के लिए न्याय करना चाहिए। आखिर है कहां इंसाफ?”
वहीं एक अन्य ने टिप्पणी की है कि, “क्या सरकारी अमले का दुरुपयोग करने के लिए किसी को जेल भेजा जाएगा? या फिर न्याय व्यवस्था भी ऐसी है कि सिर्फ एक अंतरिम आदेश जारी होगा जिससे किसी को दोषी नहीं ठहराया जाएगा।”
ध्यान रहे कि हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने नूंह हिंसा में 6 लोगों की मौत के बाद ऐलान किया था कि आरोपियों का बुलडोजर से इलाज किया जाएगा। पुलिस ने इसी आधार पर मुस्लिमों की धरपकड़ शुरु की है और मुस्लिम घरों, उनकी दुकानों और झुग्गियों को धराशायी कर दिया, लेकिन बजरंग दल द्वारा प्रसारित की जा रही सोशल मीडिया वीडियो आदि को अनदेखा कर दिया गया।
पुलिस ने मोनू मनेसर या बिट्टू बजरंगी जैसे किसी भी बजरंग कार्यकर्ता को गिरफ्तार भी नहीं किया है जबकि यह लोग लगातार भड़काऊ वीडियो में नजर आते रहे हैं। इसी तरह बजरंग कार्यकर्ता अशोक बाबा, जोकि एक वकील बताया जाता है उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है और न ही उसके घर कोई बुलडोजर गया है जबकि वह भी एक वीडियो में हथियार लहराते हुए नजर आया है।
दोनों समुदायों के शरारती और अपराधी तत्वों के बीच सांप्रदायिक झड़पें हुईं, लेकिन इसका खामियाजा दोनों ही समुदायों के निर्दोष ग्रामीणों को भुगतना पड़ा है।
लेकिन इस सबके बीच उम्मीदों की सूचनाएं भी सामने आई हैं। इसी तरह के एक मामले की शिकायत के बारे में द हिंदू अखबार ने खबर दी है कि हिसार के रहने वाले अनीश नाम के एक व्यक्ति जिसने रवींद्र फोगट और उनके दो दोस्तों (दोनों हिंदू थे) को दंगों के दौरान अपने घर में पनाह दी थी और उनके खानपान का ध्या रखा था। उसके बाद अनीश ने उन्हें सुरक्षित जगहों पर भी पहुंचाया।
रवींद्र फोगट और उनके दोस्त जिस कार से जा रहे थे, दंगों के दौरान उनकी कार को भीड़ ने आग लगा दी थी। लेकिन अनीश ने किसी तरह इन तीनों की जान बचाई और उन्हें अपने घर में रखा। लेकिन इसके बावजूद रविवार को पुलिस अनीश के घर पहुंच गई और उसके घर के एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया। अनीश को इस बारे में पहले से कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
यह सूचना मिलने पर फोगट और उनके दोस्तों ने हरियाणा के बीजेपी नेताओं, पुलिस और एसडीएम से बात की। उन्होंने बताया कि किस तरह दंगों के दौरान अनीश ने उनकी और उनके दोस्तों की जान बचाई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और बुलडोजर चल चुका था।
आखिर क्या पुलिस से इस बारे में सवाल नहीं पूछे जाने चाहिए? क्या पुलिस को थोड़ा धैर्य नहीं रखना चाहिए? क्या पीड़ित को इस कार्रवाई के बदले कोई मुआवजा मिलेगा?
इस बारे में अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी। क्या हाईकोर्ट इन सवालों के जवाब देगा?
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