राहुल गांधी के जिस बयान पर बीजेपी नहीं चलने दे रही संसद, आपने सुना या पढ़ा है! नहीं तो यहां पढ़िए..
राहुल गांधी ने लंदन में जो कुछ भी कहा, उस पर विवाद खड़ा किया गया है। कहा जा रहा है कि विदेशी धरती पर उन्होंने देश का अपमान किया और भारत में लोकतंत्र की बहाली के लिए विदेशी मदद की गुहार लगाई। ऐसे में आपको यह जानना चाहिए कि राहुल ने वास्तव में कहा क्या था?
कहा जाता है कि हर सच आधा होता है। यह भी कहा जाता है कि आधा सच आधी ईंट की तरह होता है; जिसे दूर तक फेंका जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अडानी समूह के ताल्लुकात को लेकर उठते सवालों से पीछा छुड़ाने की हताशा में बीजेपी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर यह आरोप जड़ दिया कि उन्होंने विदेश में भारत का अपमान किया है। बीजेपी राहुल गांधी का मामला जोर-शोर से उठाते हुए मांग कर रही है कि या तो राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म की जाए या वह दोनों सदनों में माफी मांगें। इसी मांग को लेकर बीजेपी पिछले कुछ दिनों से संसद की कार्यवाही नहीं चलने दे रही।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दावा किया कि राहुल गांधी ने लंदन में भारत का अपमान किया और पश्चिमी देशों को मामले में हस्तक्षेप करने को कहा। वहीं केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा में दावा किया कि यह पहली बार है जब पूरी संसद का विदेशी धरती पर अपमान किया गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ‘आयुर्वेद कुंभ’ में लोगों का देश को बदनाम करने वाले नेताओं के खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान किया।
खुद प्रधानमंत्री ने भी भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं को कथित रूप से धूमिल करने के लिए विपक्ष और विपक्षी नेताओं की आलोचना की। विवादास्पद बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मांग की कि राहुल गांधी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने दावा किया कि राहुल गांधी ने अपने दर्शकों में एक मुस्लिम और एक सिख की ओर इशारा करते हुए पूछा था कि क्या वे जानते हैं कि भारत में उनका अपमान किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी एक खतरनाक आदमी हैं।’
आखिर क्या कहा था राहुल गांधी ने!
सवाल यह है कि आखिर राहुल ने कहा क्या? राहुल ने कहा कि भारत में लोकतंत्र के ढांचे पर हमला हो रहा है। ब्रिटिश संसद में एक खराब माइक्रोफोन मिलने पर, उन्होंने मजाक किया कि भारतीय संसद में माइक्रोफोन आमतौर पर खराब नहीं होते हैं लेकिन ‘आप अब भी उन्हें चालू नहीं कर सकते।’ उन्होंने श्रोताओं में एक सिख सज्जन की ओर इशारा किया और चुटकी ली कि उन्हें पता होगा कि भारत में अल्पसंख्यकों को कैसे निशाना बनाया जा रहा है।
राहुल गांधी पर हमलों से क्षुब्ध सैम पित्रोदा ने हैरानी जताई कि भारतीय मीडिया ने तथ्यों की पुष्टि किए बिना आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। उन्होंने सवाल किए- ‘क्या आप वहां थे? क्या आपने वीडियो देखा? क्या आप वास्तव में जानते हैं कि उन्होंने क्या और किस संदर्भ में कहा?’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नरेंद्र मोदी पर पलटवार करते हुए विदेशी धरती पर दिए गए उनके चंद बयानों की याद दिलाई। खड़गे ने कहा- मोदी ने चीन में भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा था- ‘पहले आपको भारत में जन्म लेने पर शर्म आती थी’।दक्षिण कोरिया में भी भारतीयों को मोदी ने कहा था- ‘लोगों को पहले लगता था कि पिछले जन्म में उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया था कि उनका जन्म भारत में हुआ’।
इस विवाद पर अखबार टेलीग्राफ ने अपने संपादकीय में लिखा कि ‘इस बात की कोई संभावना नहीं कि मोदी और उनके साथी राहुल गांधी द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सार्थक चर्चा करेंगे।’
भारत लोकतंत्र सूचकांक में लगातार नीचे गिर रहा है और केंद्र सरकार और मुख्य चुनाव आयुक्त रैंकिंग को ही गलत बताने में जुटे रहे। सिखों को ‘खालिस्तानी’ करार देना, दलितों के साथ हो रहा भेदभाव और मुसलमानों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत कोई छिपी बात नहीं। केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर विपक्षी नेताओं को परेशान करना आम बात है। विपक्षी नेताओं को शांतिपूर्ण विरोध नहीं करने दिया जा रहा है। कश्मीर में विपक्षी नेताओं को बिना लिखित आदेश नजरबंद कर दिया जाता है जिससे उसे सुप्रीम कोर्ट में यह कहने का मौका मिल जाता है कि उसने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। इसलिए राहुल गांधी जब कहते हैं कि भारत में विपक्ष अपंग होकर रह गया है तो वह वही कह रहे थे जो सच है।
फिर भी जानना चाहिए कि राहुल गांधी ने लंदन में क्या कहा। पढ़िए उनके बयान के संपादित अंश:
2023 में भारतीय राजनीति
जब मैं 2004 में राजनीति में आया, तब भारत में लोकतांत्रिक मुकाबला राजनीतिक दलों के बीच होता था और तब मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि आने वाले समय में मुकाबला पूरी तरह बदल जाने वाला है। भारत में लोकतांत्रिक मुकाबले की प्रकृति बदल गई है और यह एक संगठन की वजह से हुआ है- आरएसएस… एक कट्टरपंथी, फासीवादी संगठन...। इसने भारत के लगभग सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है।
संक्रमण में भारत
अगर हम बीजेपी-कांग्रेस को छोड़कर बात करें तो हमें एक बहुत बड़ा बदलाव, लोगों का बड़ी तादाद में हो रहा पलायन और एक ऐसे नए मॉडल की तलाश करता भारत दिखेगा जिसके आधार पर वह देश के भीतर लोगों से लेकर विदेशों तक से जुड़ सके। ऐसे में, इतना तो बिल्कुल साफ है कि बीजेपी का मॉडल कतई ऐसा नहीं क्योंकि इससे बहुत अधिक अशांति, बहुत अधिक प्रतिरोध पैदा हो रहा है।
भारत जोड़ो यात्रा
भारत में ‘यात्राओं’ की परंपरा रही है। ‘यात्रा’ हमारे डीएनए में है। गुरु नानक, बुद्ध, महावीर, विवेकानंद ने देश भर की यात्रा की- चलते हुए, कष्ट उठाते हुए, लोगों को सुनते हुए और (देश और स्वयं को) समझते हुए। इन यात्राओं में सबसे ज्यादा याद की जाने वाली और सबसे प्रभावशाली यात्रा महात्मा गांधी की यात्राएं हैं। यात्रा... एक यात्रा तो है लेकिन यह केवल यात्रा नहीं है। यह चलने का, दृढ़ता का, सुनने का और खुद से सवाल करने का एक भारतीय विचार है और इसलिए मैंने यात्रा करने का फैसला किया।
बीजेपी ने भी ‘यात्रा’ भी निकाली। उन्होंने इसे ‘रथ यात्रा’ कहा जिसमें बीजेपी नेता ‘रथ’ में यात्रा कर रहे थे और उसके पीछे तमाम कारें थीं। ‘रथ’ राजा का प्रतीक है। इसलिए, उनकी ‘यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बीच एक अंतर था। भारत जोड़ो यात्रा आम लोगों के साथ आने का आयोजन था। हम केवल लोगों की बात नहीं, उनके दिल की आवाज को सुन रहे थे।
सुनने की ताकत
मैंने तमाम चीजें सीखीं। पहली चीज जो मैंने सीखी, वह थी सुनना, खास तौर पर बड़ी तादाद में लोगों को सुनना। मैंने महसूस किया कि इस यात्रा से पहले एक नेता के तौर पर मैं आम लोगों को ठीक से सुन ही नहीं पा रहा था। नेता के तौर पर हम हमेशा अपनी बात इससे शुरू करते हैं कि हम क्या सोचते हैं। हमारे दिमाग में खास तरह का नैरेटिव होता है। जब भी कोई कुछ कहता है, वह नैरेटिव हमारी बातचीत को आकार दे रहा होता है। शायद हम यह बताकर लोगों को प्रभावित करना चाहते हैं कि हम समझते हैं कि आप क्या चाहते हैं। कुछ समय बाद मैंने लोगों को ठीक से सुनना शुरू किया और यह जबरदस्त अनुभव था। इसने मुझे धैर्य सिखाया। दूसरी बात जो मैंने सीखी, वह यह कि कोई भी व्यायाम आपको वजन कम करने में मदद नहीं करता। यात्रा के पूरा होने तक मैं 4,000 किलोमीटर चल चुका था लेकिन मेरा वजन एक किलो बढ़ गया। वजन इस पर निर्भर करता है कि आप खाते क्या हैं… इसका व्यायाम से कोई लेना-देना नहीं है।
राष्ट्रीय शर्म
यात्रा के दौरान कई महिलाएं मेरे पास आईं और कुछ ने अपने साथ हुई हिंसा के बारे में बात की। एक ने कहा कि उसके साथ बलात्कार हुआ था। मैंने पूछा कि क्या हम पुलिस को बुलाएं, तो उसने कहा- नहीं, पुलिस को मत बुलाओ, मुझे शर्म आएगी। मैं सोच में पड़ गया… यह बेचारी लड़की अब अपना बाकी का पूरा जीवन इसी दर्द के साथ जीने जा रही है। यह बात वह किसी को नहीं बताएगी और जो उसके साथ हुआ और उसका दर्द कई गुना बढ़ने वाला है। मैं यह बदलना चाहूंगा। खास तौर पर शर्म वाली यह सोच बदले।
लोकतंत्र में गिरावट
यह ग्रह जिस तरह का आकार ले रहा है, उसके बारे में दो तरह के विचार हैं। मेरा मानना है कि एक है स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, खुली जगह वाला विचार और दूसरा नियंत्रित, जबरदस्ती थोपा जाने वाला विचार है। भारत में इस मामले में नाजुक-सा फर्क है। पहली बात तो यह है कि अब लड़ाई राजनीतिक दलों के बीच नहीं रही। यह भारत के परस्पर विरोधी दो दर्शन और विचारों की लड़ाई है। इसमें हम एक का प्रतिनिधित्व करते हैं और बीजेपी एक का। भारत में एक और अलग बात है- यहां की जाति व्यवस्था जो इंग्लैंड या अमेरिका में नहीं है।
जरा सोचिए, यूरोप में अगर आप किसी दिन पाएं कि लोकतंत्र नहीं रहा तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? भारत में ऐसा पहले ही हो चुका है। यदि आप संख्या के आधार पर बात करें तो यह शायद यूरोप से तीन गुना, अमेरिका से तीन गुना होगा। इसमें शायद उतनी ही भाषाएं हैं जितनी यूरोप में हैं। अकेले भारत में इतने तरह के इतिहास हैं जितने पूरे यूरोप में हैं (लेकिन लोकतांत्रिक दुनिया में इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई)।
(शासन) एक जटिल विषय है और यह सड़क पर नहीं होता। यह संस्थानों, संसद, विधानसभाओं, अदालतों, चुनाव आयोग के जरिये होता है और मेरी चिंता है कि उसकी संरचना पर हमला किया जा रहा है।
बेरोजगारी का हाल बुरा
अगर आप 1950, 60, 70, 80 के दशक को देखें तो लोकतांत्रिक माहौल में उत्पादन पर जोर होता था। ब्रिटेन, भारत, अमेरिका जैसे देश वस्तुओं का उत्पादन करते थे। लेकिन बाद में जो भी वजह रही हो, यह सब काम चीन को ‘पार्सल’ कर दिया गया और आज हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जिसमें जोर-जबरदस्ती के माहौल वाला उत्पादन मॉडल है। लोकतांत्रिक माहौल में कोई उत्पादन मॉडल नहीं है। लोकतांत्रिक देशों में अब उत्पादन (वस्तुओं और सेवाओं का) प्रभावी ढंग से नहीं किया जा रहा है। मैं उत्पादन के चीनी मॉडल को सही नहीं मानता क्योंकि यह जोर-जबरदस्ती वाला मॉडल है। लेकिन चीनी इसमें माहिर हैं। हां, लोकतांत्रिक देशों में धन के भारी जमाव और बढ़ती असमानता की दिक्कत जरूर है।
अपनी पदयात्रा के दौरान जब मैं बेल्लारी नाम के एक कस्बे से गुजरा तो वहां के लोगों ने कहा कि यह जींस बनाने का केंद्र रहा है और मुझे देखना चाहिए कि आज क्या हालात हैं। फिर मैंने आधा दिन बेल्लारी घूमने और जींस उत्पादन का हाल जानने में बिताया। कभी इसमें पांच लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ था और आज इनमें काम करने वाले लोगों की संख्या 40,000 रह गई है। बड़ी तादाद में हुनरमंद लोग खाली बैठे हैं। ऐसे केंद्र देश भर में हैं- बेल्लारी, मुरादाबाद… हर जगह।
भारत के लगभग हर जिले में एक कौशल आधार है जो गहरा है। लेकिन आज क्या हो रहा है? जगह-जगह पैसों का विशाल जमाव है। पूरी बैंकिंग व्यवस्था तीन-चार उद्योगपतियों के हाथ में है। बेचारा हुनरमंद वहीं पड़ा बर्बाद हो रहा है। बेल्लारी में लाखों लोग बेरोजगार हैं। अगर उनके लिए बैंकिंग सिस्टम सुलभ हो जाए, अगर उसे टेक्नोलॉजी से जोड़ दें तो यही बेल्लारी लाखों रोजगार पैदा कर देगा।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि बड़े कारोबार के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए लेकिन आज जिस तरह का एकाधिकार हो रहा है, वह जरूर गंभीर समस्या है। मैं नहीं मानता कि भारत जैसा देश अपने सभी लोगों को सेवाओं में काम दे सकता है। इसलिए, मेरे मन में एक सवाल उठता है - क्या हम लोकतांत्रिक उत्पादन मॉडल खड़ा कर सकते हैं?
विपक्ष और बीजेपी
बीजेपी को यह सोचकर अच्छा लगता है कि वे भारत में सत्ता में आ गए हैं और अब वे हमेशा सत्ता में रहने वाले हैं। भारत में बदलाव आ रहा है... कांग्रेस पार्टी और यूपीए अपने दौर में उन बदलावों से दो-चार हो रहे थे। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि भारत ग्रामीण देश से शहरी देश की ओर बढ़ रहा है और यह राजनीतिक विमर्श की प्रकृति को बदल रहा है। हम ग्रामीण क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे थे और इसकी वजह से हम शुरू में शहरीकरण की ओर बढ़ते इस बदलाव में पिछड़ गए।
जहां तक जोर-जबरदस्ती की बात है, हिंसा की बात है... आप भारत चले जाइए और देखिए कि दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ क्या हो रहा है। विदेशी प्रेस में ऐसे लेख आते रहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र के साथ गंभीर समस्या है।
बीजेपी की बातचीत में दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने मान लिया है कि वे जानते हैं कि क्या हो रहा है और उनको छोड़कर कोई यह नहीं समझता। आप किसी भी विपक्षी पार्टी से पूछ सकते हैं कि सरकारी एजेंसियों का कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है। मेरे फोन में पेगासस था, जब हम सत्ता में थे तब ऐसा नहीं हो रहा था। ऐसी तमाम बातें हैं जो बड़ी ही साफ हैं और हर किसी को पता हैं।
बीजेपी ने एक ही बड़ा काम किया है- प्रधानमंत्री कार्यालय में ताकत का केन्द्रीकरण और दो-तीन लोगों के हाथों में धन का केन्द्रीकरण। भारत के आकार वाले देश को ऐसे नहीं चलाया जा सकता।
आरएसएस क्या है?
आप इसे गुप्त समाज कह सकते हैं। यह मुस्लिम ब्रदरहुड की तर्ज पर बनाया गया है और उनका विचार यह है कि सत्ता में आने के लिए तो लोकतांत्रिक मुकाबले का इस्तेमाल करो लेकिन सत्ता में आने के बाद इसी लोकतांत्रिक प्रतियोगिता को खत्म कर दो। मैं हैरान हूं कि तमाम संस्थानों- प्रेस, न्यायपालिका, संसद, चुनाव आयोग - को किस तरह उन्होंने कब्जे में कर लिया है। सभी संस्थान दबाव और खतरे में हैं और ये प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से नियंत्रित हैं।
क्या पश्चिम मदद कर सकता है?
यह भारत की समस्या है और इसका समाधान अंदर से आने वाला है, बाहर से नहीं। हालांकि, भारतीय लोकतंत्र का एक वैश्विक प्रभाव है। भारत के लोकतंत्र का असर केवल हमारी सीमाओं के भीतर ही नहीं, बल्कि इसके बाहर भी पड़ता है। मुझे लगता है कि अगर भारतीय लोकतंत्र का पतन होता है, तो इस ग्रह पर लोकतंत्र को बहुत गंभीर और घातक झटका लगेगा। इसलिए भारत का लोकतंत्र हमारे लिए ही नहीं, आपके लिए भी जरूरी है।
हम अपनी समस्या से निपट लेंगे लेकिन आपको पता होना चाहिए कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर उभरने वाली है। यह भारत की सीमाओं के भीतर ही नहीं रहने वाली। आपको क्या करना है, यह आप पर निर्भर करता है लेकिन आपको पता होना चाहिए कि भारत में जो कुछ हो रहा है, वह लोकतांत्रिक मॉडल के विचार पर हमला है।
प्रवासी भारतीय
यह बात बिल्कुल साफ है कि भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की लड़ाई लड़ना किसी और की नहीं बल्कि खुद भारत की जिम्मेदारी है, लेकिन चूंकि आप भारतीय हैं, यह आपकी भी जिम्मेदारी है। जब आपने अपने पिता के आरएसएस में होने के बारे में कहा और उनके बारे में बताया कि वह हमारे देश को मान्यता नहीं देते, तो यह बड़ी हिम्मत की बात है। खुद को अभिव्यक्त करके और अपनी स्थिति स्पष्ट करके आप पहले ही बड़ी मदद कर रही हैं। मुझे लगता है कि लोगों को उन मूल्यों के बारे में बताकर जिनके लिए आप मजबूती से खड़ी हैं, उन मूल्यों की रक्षा करके जो भारतीय हैं, दुनिया को यह बताकर कि भारत को उन मूल्यों पर वापस जाने की जरूरत है, आप यह सेवा कर रही हैं। इसलिए आपका धन्यवाद! (मालिनी मेहरा के एक सवाल के जवाब में)
पाकिस्तान पर
मेरा निजी विचार है कि यह अहम है कि हमारे आस-पड़ोस से अच्छे रिश्ते हों लेकिन यह पाकिस्तानियों के अपने कामों पर भी निर्भर करता है। अगर पाकिस्तानी भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, तो ऐसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
चीन और विदेश नीति
आप देखें कि यूक्रेन में क्या हुआ। रूस ने यूक्रेनवासियों को स्पष्ट कर दिया कि वह यूरोप और अमेरिका के साथ उनके रिश्तों को स्वीकार नहीं करता और अगर यूक्रेन के लोग इस रिश्ते को नहीं बदलते हैं, तो वह इलाके का भूगोल बदल देगा। मेरे विचार से मेरे देश की सीमाओं पर यही हो रहा है। चीन नहीं चाहता कि हम अमेरिका के साथ रिश्ते बनाएं और वह हमें धमका रहा है कि अगर अमेरिका से रिश्ता रखा तो वह चुप नहीं बैठेगा और इसीलिए उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश तक सेना भेज दी।
मैंने विदेश मंत्री से इसका जिक्र किया लेकिन वह मुझसे पूरी तरह असहमत हैं और उन्हें लगता है कि यह एक हास्यास्पद बात है। ठीक है, हमारी राय अलग हो सकती है।
चीनी आक्रामकता
चीनी हमारे 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा किए बैठे हैं और मजे की बात यह है कि जब उन्होंने ऐसा किया तो हमारे प्रधानमंत्री ने विपक्ष के साथ बैठक में कहा कि भारतीय क्षेत्र की एक इंच जमीन भी नहीं ली गई। चीनी जानते हैं कि वे हमारे 2,000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा किए हुए हैं, हमारी सेना यह जानती है और प्रधानमंत्री कहते हैं कि वहां कोई कब्जा नहीं हुआ?
एक देश के तौर पर हमारा स्वभाव और हमारा डीएनए लोकतांत्रिक है... वह चीन जैसा नहीं। हम लोकतांत्रिक और खुले विचारों के साथ कहीं अधिक सहज हैं। इसके साथ ही, वे हमारे पड़ोसी हैं और हम उनसे प्रतिस्पर्धा भी करते हैं और अगर हम उत्पादन के बारे में बात करने जाएंगे तो वे हमें एक समस्या के तौर पर देखते हैं।
इसलिए, मेरा नजरिया यह है कि अगर वे उत्पादकता, समृद्धि की दृष्टि प्रदान कर रहे हैं... तो हमारे पास भी समृद्धि का नजरिया होना चाहिए और इस मामले में पश्चिम और भारत को एक साथ होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। मुझे लगता है, यह बहुत जरूरी है कि रेखाएं साफ हों।
यूक्रेन का सवाल
जहां तक यूक्रेन की बात है, मेरी भारत की विदेश नीति से कोई बड़ी असहमति नहीं है। विदेश नीति के सिद्धांत स्वार्थ आधारित होते हैं और कोई भी भारतीय सरकार इसे ध्यान में रखेगी। मैं उस मुद्दे पर विदेश नीति से सहमत हूं। हमें अपने हितों का ध्यान रखना है... लेकिन मैं किसी भी तरह के युद्ध के खिलाफ हूं और यह जितनी जल्दी खत्म हो, उतना अच्छा। यूक्रेन जैसा युद्ध बहुत खतरनाक है और इसमें किसी भी स्तर तक फैल जाने की संभावना है। हमें बहुत सावधान रहना चाहिए।
(लंदन में राहुल गांधी की बातचीत के संपादित अंश)
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