झारखंड की बीजेपी सरकार के अधिकारी सकते में, क्या पीएम ने बाघों को लेकर झूठी रिपोर्ट जारी की!
झारखंड सरकार के अधिकारियों ने कहा कि पीएम द्वारा पेश रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पाए गए सभी पांच बाघ यहां के बेतला स्थित इकलौते ‘पलामू टाइगर रिजर्व’ में नहीं पाए गए। ऐसे में सवाल उठता है कि जब वे व्याघ्र परियोजना क्षेत्र में नहीं रहते तो फिर वे कहां हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोमवार 29 जुलाई को दिल्ली में जारी राष्ट्रीय बाघ गणना रिपोर्ट पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल झारखंड सरकार के अधिकारियों ने उठाए हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। अब इस विवाद से सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पीएम मोदी द्वारा जारी रिपोर्ट में उल्लिखित दावे सही हैं या फिर केंद्र सरकार के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को धोखे में रखकर यह रिपोर्ट जारी करा ली है।
उन्होंने कहा कि वे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (डब्लूआईआई) को पत्र लिखकर इसका विवरण मांगेंगे कि झारखंड के पांच बाघ कहां पाए गए थे और अभी उनके किस इलाके में होने की संभावना है। ताकि, उनकी रक्षा के उपायों के साथ ही राज्य सरकार का डेटा भी अपडेट किया जा सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ‘स्टेटस आफ टाइगर्स इन इंडिया-2018’ रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ‘एक था टाइगर’ से शुरू कहानी अब ‘टाइगर जिंदा है’ पर पहुंच चुकी है। उन्होंने दावा किया कि भारत में अभी (साल-2018 की गणना के मुताबिक) 2976 बाघ हैं, जो साल 2014 की संख्या 2226 के मुकाबले 741 अधिक हैं। इनमें झारखंड के वे 5 बाघ भी शामिल हैं, जिनका जिक्र इस रिपोर्ट में है।
पीएम के इसी दावे पर झारखंड सरकार के अधिकारियों ने रिपोर्ट पर सवाल उठा दिए हैं और कहा है कि वे इसकी विस्तृत जानकारी के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे। हालांकि, झारखंड सरकार के वन विभाग ने पीएम मोदी द्वारा पेश इस रिपोर्ट को न तो खारिज किया और न ही इसे स्वीकार किया है।
झारखंड सरकार के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ) और वन्य जीवों के प्रभारी पी के वर्मा ने इस रिपोर्ट को समझने की जिज्ञासा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में पाए गए सभी पांच बाघ यहां के बेतला स्थित इकलौते ‘पलामू टाइगर रिजर्व’ क्षेत्र में नहीं पाए गए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब वे व्याघ्र परियोजना के इलाके में नहीं रहते हैं, तो फिर वे कहां हैं।
उन्होंने कहा कि वे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (डब्लूआईआई) को पत्र लिखकर इसका विवरण मांगेंगे कि झारखंड के पांच बाघ कहां पाए गए थे और अभी उनके किस इलाके में होने की संभावना है। ताकि, उनकी रक्षा के उपायों के साथ ही राज्य सरकार का डेटा भी अपडेट किया जा सके।
कैसे होती है बाघों की गिनती
पीके वर्मा ने बताया कि साल 2014 की गणना के मुताबिक झारखंड मे कुल तीन बाघ थे लेकिन वे भी अभी कहां हैं, इसकी सटीक जानकारी नहीं है। बाघों की गणना के दो प्रचलित तरीके हैं। उनके मुताबिक 85 फीसदी गणना कैमरा ट्रैप (कैमरे में दिखे बाघ) और 15 फीसदी इनडायरेक्ट ट्रैप (मतलब, पदचिन्ह, गोबर इत्यादि) के माध्यम से की जाती है। पलामू टाइगर रिजर्व में इस समयावधि में कैमरा ट्रैप नहीं हो सका है।
ऐसे में झारखंड में पाए गए पांच बाघों का दावा इनडायरेक्ट ट्रैप से ही किया गया होगा। लिहाजा, यह जानना जरुरी है कि वे पांचों बाघ कहां हैं। उन्होंने बताया कि बाघों की गणना में चिड़ियाघर या प्राणि उद्यानों में रहने वाले बाघों की संख्या शामिल नहीं की जाती है। इसमें सिर्फ उन्हीं बाघों की गिनती होती है, जो वन्य क्षेत्र में रह रहे हैं।
बाघ स्थायी तौर पर नहीं रहते
वहीं पलामू टाइगर रिजर्व से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि बाघ बहुत ज्यादा वक्त तक एक ही क्षेत्र में नहीं रहते। वे अपना ठिकाना बदलते रहते हैं। ऐसे में संभव है कि बाघ कभी झारखंड की सीमा मे रहें और कभी पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की सीमा में चले जाएं और फिर वापस भी आ जाएं। उन्होंने बताया कि मार्च 2018 से फरवरी 2019 के बीच व्याघ्र परियोजना क्षेत्र में बाघों की मौजूदगी का कोई डायरेक्ट एविडेंस (सबूत) नहीं मिला है, लेकिन 2-3 बाघों के वापस लौटने के इनडायरेक्ट इविडेंस मिले हैं।
उन्होंने बताया कि साल 1973 में बना पलामू टाइगर रिजर्व 1129 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है, लेकिन इस इलाके में निर्माण, जंगलों की कटाई और दूसरे कारणों से यहां बाघों की संख्या लगातार घटती गई है। उन्होंने बताया कि रिजर्व फारेस्ट एरिया से दो रेल लाइनें भी गुजरती हैं और अब तीसरा रेलवे ट्रैक बिछाने की बात की जा रही है। यह सब बाघों के जीवन के अनुकूल नहीं है।
साल 2010 में झारखंड में थे 10 बाघ
उल्लेखनीय है कि साल 2010 की गणना के मुताबिक यहां कुल 10 बाघ थे, जो साल 2014 में घटकर तीन हो गए। साल 2006 का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। अब इनकी संख्या पांच होने का दावा किया जा रहा है। साथ ही यह भी कहा गया है कि ये पांचों बाघ पलामू टाइगर रिजर्व एरिया में नहीं देखे गए। जाने-माने वन्य प्राणि एक्टिविस्ट डी एस श्रीवास्तव ने भी इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बाघों की गणना की समूची प्रक्रिया की फिर से समीक्षा की जानी चाहिए।
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