क्या कोरोना लॉकडाउन है कारण उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने का! वैज्ञानिक मान रहे कुछ ऐसा
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से जलवायु में परिवर्तन आया और ऊपरी वातावरण इतना साफ हो गया कि ग्लेशियर पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलने की बजाय बहुत तेजी से पिघली और हिमनद फट गया।
उत्तराखंड के चमोली में द्रोणागिरी ग्लेशियर के फटने का कारण क्या कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लगाया गया लॉकडाउन है? विशेषज्ञ कुछ ऐसा ही मानते हैं। अमर उजाला की एक खबर में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से जलवायु में परिवर्तन आया और ऊपरी वातावरण इतना साफ हो गया कि ग्लेशियर पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलने की बजाय बहुत तेजी से पिघली और हिमनद फट गया। अखबार कहता है कि ग्लेशियरों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों मानते हैं कि आने वाले समय में भी ऐसे खतरों के बने रहने की आशंका है।
अखबार ने भारतीय मौसम विज्ञान सोसाइटी में उत्तर भारत के चेयरपर्सन और वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसपी भारद्वाज के हवाले से कहा है कि ग्लेशियर के फटने की वजहों का पता लगाया जाएगा लेकिन पहली नजर में आकलन है कि सूरज की ज्यादा तपिश के चलते ग्लेशियर की बर्फ न सिर्फ बहुत तेजी से पिघली बल्कि ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से में जमी बर्फ ज्यादा होने के चलते खिसकी। जिससे हिमनदों के निचले हिस्से में जमें पानी के स्रोत टूट गए और तीव्र गति से पास की धौलगंगा नदी में बह गए। इसने तबाही मचा दी।
अखबार लिखता है कि ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में इस समय प्रदूषण के कण न के बराबर हैं। इससे सूरज की तपिश पिछले सालों की तुलना में ज्यादा तीव्र है। जो ग्लैशियरों पर जमने वाली ऊपरी बर्फ को ज्यादा तेजी से पिघला रही है। अखबार से बातचीत में डॉक्टर एसपी पाल कहते हैं कि कोरोना में लगे लॉकडाउन से मौसम बहुत साफ हुआ है। जब मैदानी इलाकों से हिमालय की श्रृंखलाएं दिखने लगीं थीं तभी अनुमान लगाया गया था कि इस बार क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन के आंशिक असर दिखने लगेंगे।
ध्यान रहे कि इस बार पहाड़ी इलाकों में बर्फ बहुत ज्यादा पड़ी है। ऐसे इलाकों में भी बर्फबारी हुई है जिनकी ऊंचाई सिर्फ 4 हजार फीट तक ही थी। इसके अलावा 15 से 18 हजार फीट ऊपर वाले ग्लेशियर में भी खूब बर्फ पड़ी। माना जा रहा है कि ज्यादा बर्फ पड़ने से ग्लेशियर फट गए।
अखबार ने पर्यावरणविद रमेश कुमार पांडेय से भी बात की है। उनका कहना है कि आपदा के कारणों को तो सैटेलाइट से पता किया जाएगा। जिस तरह की घटना रविवार को हुई है वो हिमालयन रीजन में कोई अनोखी नहीं हैं। जो घटना हुई है उसको वैज्ञानिकों की भाषा में " ग्लेशियर लेक आउट बर्स्ट फ्लड" (जीएलओएफ) कहते हैं। इसका मतलब होता है कि हिमनदों के नीचे के एकत्रित पानी के पूरे भंडार का यकायक बहुत तेजी से बह जाना।
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