हरियाणाः कोरोना संकट में भी खट्टर के लिए शौक बड़ी चीज, महामारी में भी बार-बार बदलते लिबास पर उठे सवाल
24 मार्च की आधी रात से पूरे देश में लागू लॉकडाउन के बाद से हरियाणा के मुख्यमंत्री चंडीगढ़ स्थित सीएम आवास से बाहर नहीं निकले हैं। इस संकट के वक्त में वह दुनिया से डिजिटली कनेक्ट होते हैं और वह भी रोज नए-नए रंगीन लिबास बदल-बदल कर, जिसपर सवाल उठ रहे हैं।
हरियाणा भी पूरे देश की तरह कोरोना संकट से जूझ रहा है। हर दिन मरीजों के आंकड़े पुराने हो जाते हैं। फैक्ट्रियां बंद हैं। लाखों कामगार सड़कों पर हैं। काम-धंधा तबाह है। बेरोजगारी भयावह है। किसान भी संकट में है। भविष्य और अंधकारमय नजर आ रहा है। कोरोना योद्धा मोर्चे पर हैं और मुख्यमंत्री घर पर हैं। ऐसे वक्त में जब देश के तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों के चेहरे का रंग उड़ा हुआ है तब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का रोजाना बदलता रंगीन लिबास सवाल खड़े कर रहा है।
24 मार्च की आधी रात से पूरे देश में लागू लॉकडाउन के बाद से हरियाणा के मुख्यमंत्री चंडीगढ़ स्थित सीएम निवास से बाहर नहीं निकले हैं। किसी अस्पताल या शहर का जमीन पर उतरकर जायजा तक नहीं लिया है। कोरोना मरीजों के इलाज के लिए नामित किए गए हरियाणा के मुख्य अस्पताल रोहतक पीजीआई में हेलमेट लगा कर इलाज करते डॉक्टरों की तस्वीर पूरे देश में वायरल होती हुई प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के बदतरीन हालात की तस्दीक कर चुकी है। राज्य में कालाबाजारी और मुनाफाखोरी चरम पर है।
ऐसे वक्त में महज डिजिटली दुनिया से कनेक्ट मुख्यमंत्री का रोजाना बदलता रंगीन लिबास सवाल खड़े करता है। देश और प्रदेश के लिए यह सामान्य वक्त नहीं है। राज्य की सप्लाई चेन टूट चुकी है। रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजारों-मंडियों में भटकते लोगों की तस्वीरें सामने आ चुकी हैं। सरकार का बनाया गया तंत्र और वादे नाकाफी साबित हो चुके हैं। मुख्यमंत्री ने लोगों को खुद यकीन दिलाया था। हाईवे पर उमड़ी मजदूरों की भीड़ और उनके बिलखते परिवारों की दास्तान लोगों के सामने आ चुकी है। केएमपी एक्सप्रेस-वे पर कुचलकर मरे मजदूरों की दर्दनाक तस्वीरें सभी को हिला चुकी हैं।
राज्य के किसानों का संकट भी सामने है। रबी की फसल पक कर कटने के लिए खड़ी है। सरकार के पोर्टल मेरी फसल, मेरा ब्यौरा में अभी तक महज 60 फीसदी किसानों ने ही रजिस्ट्रेशन करवाया है। मंडियां व्यवस्थाजनक खामियों से भरी पड़ी हैं। जब कारोबार ठप है तब सरकार ने एक अप्रैल से सभी तरह के वाहनों पर टोल दरें बढ़ाने का अमानवीय फैसला लागू कर दिया। आश्चर्य तब होता है जब कालाबाजारी-मुनाफाखोरी को लेकर सवाल पूछने पर अधिकारी अभी तक ऐसी किसी शिकायत के दर्ज न होने की बात करते हैं। जब लोग दो वक्त के भोजन के संकट से जूझ रहे हैं तब अधिकारी जमीन पर उतरने की जगह शिकायत दर्ज होने का इंतजार कर रहे हैं।
कोरोना रिलीफ फंड में योगदान के नाम पर राज्य के कर्मचारियों के वेतन में जबरन कटौती की जा रही है। ऐसा न करने वाले कर्मचारियों का वेतन ही रोक देने का फरमान जारी हो रहा है। मीडिया के सवाल पर खुद मुख्यमंत्री इसका जवाब नहीं देते हैं। मुख्यमंत्री का जमीन से डिस-कनेक्ट होना सवाल खड़े कर रहा है। वह भी हर दिन एक नए रंगीन लिबास में डिजिटली रूबरू होना और गंभीर हो जाता है।
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