हरियाणा: चौटाला ने जो अपने भाई के साथ किया, आज वही हो रहा है उनके बेटों के बीच
देश के बड़े राजनीतिक घरानों में से एक हरियाणा के चौटाला परिवार में विरासत की जंग चरम पर है। चौटाला परिवार में इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है। तीन दशक पहले इस परिवार में ऐसा हो चुका है।
हरियाणा के चार बार मुख्यमंत्री रहे और इस समय जेल में बंद ओम प्रकाश चौटाला के बेटों और पोतों के बीच जो राजनीतिक जंग चल रही है, वो कुछ उसी इतिहास को दोहरा रही है जो करीब तीन दशक पहले इस परिवार में हो चुका है।
ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को इंडियन नेशनल लोकदल से निकाला जा चुका है। इन तीनों की प्राथमिक सदस्यता भी रद्द कर दी गई है।इनेलो के हरियाणा प्रभारी अशोक अरोड़ा ने पिछले दिनों चंडीगढ़ में अजय सिंह चौटाला के छोटे भाई अभय सिंह चौटाला की मौजूदगी में इस फैसले की घोषणा की। अजय सिंह चौटाला पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा है। पार्टी प्रवक्ता अशोक अरोड़ा ने मीडिया के सामने दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद ओम प्रकाश चौटाला की चिट्ठी पढ़कर सुनाई।
हालांकि अजय सिंह चौटाला और उनके बेटे इसे साजिश बता रहे हैं, जबकि अभय सिंह चौटाला गुट का कहना है कि जो कुछ भी हो रहा है वह पार्टी के सर्वेसर्वा और उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला के कहने पर हो रहा है।
ओम प्रकाश चौटाला अध्यापकों की भर्ती के एक मामले में धांधली के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रहे हैं। उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला भी इस मामले में दोषी पाए गए थे, फिलहाल पैरोल पर बाहर हैं।
दरअसल, चौटाला परिवार के भीतर चल रहा यह विवाद मुख्य रूप से ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक विरासत को लेकर है जो चल तो काफी पहले से रहा है, लेकिन आम लोगों की नजर में हाल ही में आया है।
अजय सिंह चौटाला ने 17 नवंबर को हरियाणा के जींद जिले में एक बड़ी रैली बुलाने का फैसला लिया, जबकि अभय सिंह चौटाला और उनके समर्थक इस रैली को गैरकानूनी बता रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनेलो के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभी भी ओमप्रकाश चौटाला ही हैं और उन्हें ही इस तरह की रैली बुलाने का अधिकार है।
इससे पहले 7 अक्टूबर को इनेलो की एक रैली सोनीपत में थी और उस रैली में पैरोल पर जेल से बाहर आए ओमप्रकाश चौटाला भी मौजूद थे। उसी रैली में कुछ लोगों ने अभय चौटाला के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।
ऐसा माना गया कि ये सब अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के इशारे पर हो रहा है और फिर बाद में दो नवंबर को इन दोनों को पार्टी से निकालने की घोषणा हो गई। जानकारों के मुताबिक, खुले तौर पर विवाद की शुरुआत यहीं से हुई।
अजय चौटाला और उनके बेटों ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया, जबकि फैसले पर खुद ओम प्रकाश चौटाला की सहमति थी। जहां तक पार्टी पर पकड़ का सवाल है तो ओम प्रकाश चौटाला न सिर्फ अभी भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, बल्कि तमाम अहम फैसले उन्हीं की स्वीकृति से होते हैं और आगे भी फिलहाल होंगे।
इन्हीं फैसलों में आगामी लोकसभा और राज्य की विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे का मामला भी शामिल है। दुष्यंत चौटाला फिलहाल लोकसभा सदस्य हैं लेकिन इनेलो से उन्हें अगला टिकट मिलेगा या नहीं, ये ओम प्रकाश चौटाला यानी उनके दादा तय करेंगे।
हरियाणा विधानसभा में इनेलो मुख्य विपक्षी दल है और अभय चौटाला राज्य में विपक्षी दल के नेता हैं। इनेलो की स्थापना ओमप्रकाश चौटाला के पिता चौधरी देवीलाल ने की थी जो खुद राज्य के मुख्यमंत्री और बाद में देश के उप प्रधानमंत्री बने।
चौटाला परिवार को करीब से जानने वाले और हरियाणा की राजनीति पर पकड़ रखने वाले पत्रकार आनंद राणा कहते हैं कि परिवार में चल रही ये जंग कोई नई नहीं है, बल्कि करीब तीन दशक पहले भी ठीक ऐसा ही विवाद हो चुका है। उनके मुताबिक, "उस वक्त चौधरी देवीलाल अपने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने रिश्ता तक तोड़ दिया। ओम प्रकाश चौटाला को पार्टी कार्यालय में घुसने तक की मनाही हो गई, लेकिन देवीलाल के उप प्रधानमंत्री बनते ही ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीतिक बाजी ही पलट दी और अपने ही छोटे भाई रणजीत सिंह को किनारे करके खुद मुख्यमंत्री बन बैठे।”
1987 में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में देवीलाल की पार्टी को 90 में से 85 सीटें मिलीं और उन्होंने राज्य में सरकार बनाई। ओमप्रकाश चौटाला के भाई रणजीत सिंह इस सरकार में कृषि मंत्री बने लेकिन चौधरी देवीलाल के विरोध और गुस्से के चलते ओमप्रकाश चौटाला राजनीति से बाहर रखे गए।
2 दिसंबर 1989 को चौधरी देवीलाल केंद्र की वीपी सिंह सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाए गए और उसके बाद फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली होने के बाद उनके दोनों बेटों में सत्ता की जंग शुरू हो गई। इस जंग में ओमप्रकाश चौटाला विजयी हुए और मुख्यमंत्री बने। लेकिन 6 महीने बाद ही उन्हें महम में हुए जातीय संघर्ष के चलते इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन रणजीत सिंह पार्टी की राजनीति में किनारे जा चुके थे और ओम प्रकाश चौटाला की जगह बनारसी दास मुख्यमंत्री बने।
राजनीति में उठापटक का यह दौर चलता रहा, लेकिन इंडियन नेशनल लोकदल की कमान पूरी तरह से ओमप्रकाश चौटाला ने हथिया ली और रणजीत सिंह आजिज आकर कांग्रेस में चले गए। ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीति की जिन दुरभिसंधियों और शह-मात के खेल के जरिए सत्ता हासिल की, आज वही संघर्ष उन्हें अपने बेटों के बीच देखने को मिल रहा है।
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