हरियाणा: कोरोना में गांव-गांव से उठीं लाशें, पर 7 साल में 21 जिले के किसी सरकारी अस्पताल में मेडिकल लापरवाही नहीं
खट्टर सरकार के सात साल के कार्यकाल में चिकित्सकीय लापरवाही के नाम पर एक्शन सिफर है। इसमें वह वक्त भी शामिल है जब कोरोना काल में लोग घुट-घुटकर मर रहे थे, लेकिन सरकार की नजर में ‘सब चंगा सी’। तभी तो इन बदतरीन हालात के लिए भी उसे कोई जिम्मेदार नहीं मिला।
हरियाणा में कोरोना एक बार फिर खतरे की घंटी बजा चुका है, लेकिन सरकार है कि सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है। कोरोना की तबाही में गांव-गांव से लाशें उठने का मंजर याद कर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है। पर सरकार के स्वास्थ्य ढांचे की हालत देखिए कि आज भी राज्य के तमाम अस्पतालों में एमआरआई और सिटी स्कैन तक की सुविधा नहीं है। कैथ लैब नहीं हैं, डायलिसिस और कीमोथेरेपी नहीं है।
हद तो तब है जब इस सरकार के सात साल के कार्यकाल में चिकित्सकीय लापरवाही में एक्शन के नाम पर सिफर है। इसमें वह वक्त भी शामिल है जब कोरोना काल में लोग घुट-घुटकर मर रहे थे, लेकिन शायद सरकार की नजर में ‘सब चंगा सी’। तभी तो इन बदतरीन हालात के लिए भी उसे कोई जिम्मेदार नहीं मिला। आश्चर्य है कि सरकार को प्रदेश के 22 में से 21 जिलों में सात साल में किसी भी सरकारी अस्पताल में चिकित्सकीय लापरवाही का एक भी मामला नहीं मिला।
हरियाणा में कोरोना के मामलों में अचानक आया उछाल एक बार फिर चिंता का सबब बन रहा है। 15 अप्रैल को राज्य में कोरोना पॉजिटिव केसों का आंकड़ा 174 था, जो 15 दिन बाद 24 अप्रैल को तकरीबन ढाई गुना बढ़कर 417 हो चुका है। इसमें सिर्फ गुरुग्राम में 331 केस रिपोर्ट हुए हैं, जबकि फरीदाबाद में 72 कोरोना पॉजिटिव आए हैं। वहीं, 15 अप्रैल को गुरुग्राम में यही तादाद 174 और फरीदाबाद में महज 21 थी। प्रदेश में टेस्टिंग की हालत यह है कि 24 अप्रैल को सिर्फ 9288 लोगों के सैंपल लिए गए हैं, जो क्षमता से 10 गुना से भी ज्यादा कम हैं। राज्य के पास एक लाख से अधिक टेस्ट प्रति दिन करने की क्षमता है।
इन गंभीर संकेतों के बीच राज्य का स्वास्थ्य ढांचा बेहद परेशानी का सबब है। भीषण त्रासदी से गुजरने के बाद भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार सीखने के लिए शायद तैयार नहीं है। सरकार के ही आंकड़े इस सच को बेनकाब कर रहे हैं। 22 जिलों वाले हरियाणा के महज 5 जिलों के सरकारी अस्पतालों में ही एमआरआई की सुविधा उपलब्ध है। ये जिले हैं अंबाला, भिवानी, फरीदाबाद, गुरुग्राम और पंचकूला। मुख्यमंत्री के शहर करनाल तक में यह सुविधा नहीं है। अंबाला में भी अंबाला छावनी में यह सुविधा है, जो स्वास्थ्यमंत्री अनिल विज का विधानसभा क्षेत्र है।
चरखीदादरी, फतेहाबाद, झज्जर, बहादुरगढ़, मेवात और नारनौल के सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन नहीं है। अंबाला, फरीदाबाद, गुरुग्राम और पंचकूला समेत सिर्फ चार जिलों में कैथ लैब मौजूद हैं। मतलब राज्य के 18 जिलों में यह सुविधा नहीं है। कीमोथेरेपी का आलम यह है कि अंबाला छावनी, फरीदाबाद, कुरुक्षेत्र, पंचकूला और यमुनानगर में इसकी सुविधा है। मतलब राज्य के 17 जिलों में कीमोथेरेपी की सुविधा नहीं है। अंबाला शहर, चरखीदादरी, करनाल, कुरुक्षेत्र और मेवात में डायलिसिस तक नहीं हो सकता है।
कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के सवाल के जवाब में विधानसभा के पटल पर उस पार्टी की सरकार ने यह जानकारी उपलब्ध करवाई है, जिसने 2014 विधानसभा चुनाव में हर जिले में मेडिकल कॉलेज खुलवाने का वादा किया था। लेकिन इससे भी आगे सरकार की नीति और नीयत पर तब गंभीर सवाल खड़े होते हैं जब चिकित्सकीय लापरवाही में एक्शन के नाम पर उसका खाता शून्य दर्शा रहा है।
जनवरी 2015 से 31 दिसंबर 2021 तक के तकरीबन सात साल के कालखंड में एक भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल किसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं पाया गया। यह इसलिए भी और गंभीर बात है कि इसी कालखंड ने कोरोना की तबाही भी आई थी, जिसमें पूरे प्रदेश के श्मशान घाट लाशों से पट गए थे। सरकार का स्वास्थ्य ढांचा ढह गया था। फिर भी सरकार को कोई जिम्मेदार नहीं मिला। इन सात सालों में प्राइवेट अस्पतालों में 68 शिकायतें सरकार ने चिकित्सकीय लापरवाही की दर्ज की हैं। इनमें सबसे ज्यादा 45 शिकायतें गुरुग्राम में मिली हैं। इसके बाद भिवानी में 3, फरीदाबाद में 1, जींद में 1, कैथल में 1, मेवात में 7, नारनौल, पंचकूला और पानीपत में 1-1, रेवाड़ी में 2 और सोनीपत में 5 मामले रिपोर्ट किए गए हैं।
आश्चर्य की बात है कि अंबाला, चरखीदादरी, फतेहाबाद, हिसार, झज्जर, करनाल, कुरुक्षेत्र, पलवल, रोहतक, सिरसा और यमुनानगर समेत 11 जिलों में किसी भी प्राइवेट अस्पताल में चिकित्सकीय लापरवाही का कोई मामला सामने नहीं आया है। इससे भी अधिक हैरान करने वाला दूसरा आंकड़ा है कि राज्य के महज एक सोनीपत के सरकारी अस्पताल में 4 मामले चिकित्सकीय लापरवाही के रिपोर्ट हुए हैं। मतलब प्रदेश के 22 में से 21 जिलों के किसी भी सरकारी अस्पताल में कोई चिकित्सकीय लापरवाही नहीं हुई है।
कमाल है इतनी शानदार स्वास्थ्य व्यवस्था वाला हरियाणा शायद अकेला प्रदेश होगा। साफ है कि प्रदेश अमृतकाल में है। इन सात सालों में चूक करने वाले अस्पतालों, व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई के सवाल पर सरकार का जवाब और दिलचस्प है। जवाब स्वास्थ्य मंत्री ने दिया है। उनका कहना है कि चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में कार्रवाई करना स्वास्थ्य विभाग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हालांकि, सरकारी चिकित्सकों द्वारा की गई चिकित्सकीय लापरवाही के खिलाफ कार्रवाई स्वास्थ्य विभाग की ओर से हरियाणा सिविल सेवा (दंड और अपील) नियमों के प्रावधानों के अनुसार की जाती है। सवाल बिल्कुल सीधा था, लेकिन जवाब कोई नहीं है। सरकार से सीधा पूछा गया था कि जिम्मेदार अस्पतालों और लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। अब इस जवाब के बाद यह क्यों न माना जाए कि सात साल में एक्शन के नाम पर सरकार का खाता खाली है। यदि ऐसा नहीं है तो सरकार आंकड़े उपलब्ध करवाती।
फरीदाबाद से कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा के सवाल पर विधानसभा में यह जवाब स्वास्थ्य मंत्री ने दिया है। राज्य में उप-स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सिविल हास्पिटल में मेडिकल, पैरा-मेडिकल स्टाफ नियुक्ति के मानदंड के सवाल का भी सरकार ने इसी तरह जवाब दिया है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने सदन में रखे अपने जवाब में कहा कि मेडिकल और पैरा-मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति संबंधित स्वास्थ्य संस्था की रिक्ति और आवश्यकता अनुसार कर्मचारियों के न्यूनतम कार्यकाल को बनाए रखने के प्रयासों के साथ की जाती है। यह जवाब सोनीपत के गोहाना से कांग्रेस विधायक जगबीर मलिक के सवाल पर था। खुद सरकार के आंकड़ों की जुबानी हरियाणा में स्वास्थ्य ढांचे की यही कहानी है। अब सरकार दावे कुछ भी कर ले, लेकिन तस्वीर आईने की तरह साफ है।
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