हरियाणा: ऐसी सरकार जिसे पता ही नहीं व्यवस्था के अंग क्या कर रहे? नायब सिंह सैनी का नौसिखियापन हुआ उजागर
नायब सिंह सैनी का नौसिखियापन उस समय उजागर हो गया जब उन्होंने 24 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी देने की घोषणा कर दी। तुरंत ही यह बात भी सामने आ गई कि एमएसपी तय करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को जैसे इसका बिलकुल भी अंदाज नहीं था कि क्या होने वाला है। 16 अगस्त को सुबह मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि उन्होंने कम वर्षा के मुआवजे के तौर पर किसानों को दी जाने वाले बोनस की कुल 525 करोड़ रुपये की रकम उनके खातों में पंहुचा दी है। उसी दिन दोपहर तीन बजे चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी कि विधानसभा की सभी 90 सीटों के लिए 1 अक्तूबर को एक चरण में मतदान होगा।
पांच साल पहले 2019 में मतदान 21 अक्तूबर को हुआ था। नतीजों की घोषणा 24 अक्तूबर को हुई थी। मुख्यमंत्री ने 27 अक्तूबर को शपथ ले ली थी जबकि नए विधायकों ने आठ दिन बाद पांच नवंबर को सदस्यता की शपथ ली। तीन दिन के विधानसभा सत्र का वह पहला दिन था। यानी वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 5 नवंबर तक चल सकता था। इसीलिए समय से पहले चुनाव की घोषणा ने मुख्यमंत्री तक को हैरत में डाल दिया। यह उम्मीद नहीं थी। इसका अंदाज इससे भी लगा सकते हैं कि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले किसी तरह फटाफट अधिकारियों के ट्रांसफर की एक सूची जारी कर दी गई। 17 अगस्त को मतदाताओं को लुभाने के लिए कुछ घोषणाएं करने के लिए कैबिनेट की बैठक होनी थी लेकिन अब यह नहीं हो सकती थी। सरकार ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी कर दिया जाएगा लेकिन इस बाबत नोटीफिकेशन भी जारी नहीं हो सकता था। यह ऐसी सरकार साबित हुई जिसे पता ही नहीं था कि व्यवस्था के दूसरे अंग क्या कर रहे हैं। भाजपा की 10 साल पुरानी राज्य सरकार पर अपने आप में यह सबसे बड़ी टिप्पणी है।
इसके मुकाबले 10 साल बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद बांध रही कांग्रेस ज्यादा तैयार दिखाई दी। 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही कांग्रेस नेता मैदान में डट गए थे। उसके कार्यालयों में टिकटार्थियों की भीड़ तभी से लगने लगी थी। अब पार्टी को दो हफ्ते के अंदर ही सारी तैयारियों को अंतिम रूप देना होगा। पार्टी की जमीनी सक्रियता कईं दिन पहले ही दिखाई देने लगी थी। सांसद दीपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा अपने-अपने इलाके में चुनावी यात्राएं निकालने में व्यस्त हो गए थे। इन यात्राओं में जुट रही भीड़ ने पार्टी के आत्मविश्वास को काफी बढ़ा दिया है।
राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष उदय भान बताते हैं कि पार्टी ‘जन मिलन समारोह’, ‘हाथ से हाथ जोड़ो अभियान’, ‘विपक्ष आपके समक्ष’ जैसे अभियानों से लगातार मतदाताओं के संपर्क में है। दीपेंद्र हुड्डा की हरियाणा मांगे हिसाब यात्रा और कुमारी शैलजा की संदेश यात्रा तो चल ही रही हैं। इसके साथ ही भूपेंद्र हूड्डा और उदय भान का घर-घर कांग्रेस, हर घर कांग्रेस अभियान भी जनवरी से ही चल रहा है।
शैलजा और दीपेंद्र की यात्राएं अलग-अलग चल रहीं थी, इसे लेकर बीजेपी ने दोनों में मतभेद की बातें शुरू कर दीं थीं जबकि सच यह है कि पार्टी के नेता मतभेद दरकिनार करके प्रचार में जुटे थे। इस सबसे परेशान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह राज्य भर में झूठ फैला रही है। उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा से 10 सवाल पूछे हैं कि हुड्डा ने अपने 10 साल के कार्यकाल में क्या किया।
जवाब में हुड्डा कहते हैं कि कांग्रेस ने किसानों के कर्ज माफ किए, बिजली के बिल माफ किए, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिलवाया लेकिन बीजेपी ने किसानों को लाठियां और गोलियां ही दीं। 4 अक्तूबर को चुनाव नतीजे आने हैं। हुड्डा ने नारा दिया है- अक्तूबर चार, बीजेपी बाहर। उनका कहना है कि इस सरकार ने पिछले 10 साल में प्रापर्टी आईडी, फेमली आईडी और मेरी फसल मेरा ब्योरा जैसी बेमतलब की योजनाएं लागू कीं। इसलिए अपने कामों की बात करने के बजाय मेरे कार्यकाल पर सवाल पूछ रहे हैं।
वह बताते हैं कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में पंचकूला में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, कुरुक्षेत्र में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, करनाल में कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज, सोनीपत में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, आईआईटी विस्तार केन्द्र और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी जैसे संस्थान स्थापित किए। कांग्रेस सरकार ने राज्य में 12 सरकारी विश्वविद्यालय, 45 सरकारी कॉलेज, छह मेडिकल कॉलेज, चार थर्मल पॉवर प्लांट और एक परमाणु विद्युत प्लांट स्थापित किया।
हवा कांग्रेस की तरफ बहने का संकेत इससे भी मिलता है कि 90 सीटों के लिए कांग्रेस में 2,556 टिकटार्थिैयों की अर्जियां पहुंची हैं। वह भी तब जब इन अर्जियों के साथ सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 20,000 रुपये और दलित, पिछड़े और महिला उम्मीदवारों को 5,000 रुपये फीस जमा करनी थी। जबकि भाजपा ने टिकटार्थियों की संख्या का खुलासा नहीं किया है। मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के सरकारी कार्यक्रमों को छोड़ दें, तो भाजपा का कोई चुनावी अभियान भी अभी तक जमीन पर नहीं उतरा है।
बीजेपी के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी 2019 के विधानसभा चुनाव में उस समय ही दिख गई थी जब पार्टी को सिर्फ 40 सीटें ही मिलीं थीं। यानी बहुमत से छह सीटें कम। इसके बाद उसे दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी जिसके 10 विधायक थे। इसके लिए दुष्यंत चौटाल को उपमुख्यमंत्री का पद देना पड़ा। इसकी तुलना हम अगर उसके कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव से करें, तो वहां बीजेपी को सभी 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं थीं जबकि बाकी नौ सीटें निर्दलीय और अन्य की खाते में गई थीं। पार्टी के नेता भी मानते थे कि इन खराब नतीजों का कारण मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का ढुलमुल कामकाज है लेकिन उन्हीं को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया। हालांकि, इस साल की शुरुआत में उन्हें कहा गया कि वह अपना वारिस चुनें और बाहर का रास्ता नापें। उन्होंने अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी नायब सिंह सैनी को वारिस चुना और कई मजबूत दावेदार नजरंदाज हो गए।
बीजेपी को उम्मीद थी कि वह सैनी को चुनकर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने पाले में ले आएगी लेकिन जो हुआ, उससे पिछड़े वर्ग के लोग खुश नजर नहीं आ रहे हैं। राज्य में 30 प्रतिशत आबादी पिछड़े मतदाताओं की है। उनमें सैनी जाति के मतदाता सिर्फ 1 प्रतिशत ही हैं। इनमें सबसे बड़ी आबादी अहीरों की हैं जो मानते हैं कि राव इंद्रजीत सिंह मुख्यमंत्री के लिए ज्यादा अच्छा विकल्प हो सकते थे। नायब सिंह सैनी ने अपनी टीम बनाने के बजाय उन्हीं अफसरों से राजकाज आगे बढ़ाया जिन्हें मनोहर लाल खट्टर ने चुना था। एक फर्क जरूर पड़ा है कि जहां खट्टर कार्यकर्ताओं से दूर रहते हैं, सैनी सबसे मिलते हैं। पिछले पांच महीनों में वह राज्य के सभी जिलों में गए हैं। इस सब का क्या असर पड़ेगा, यह अभी देखा जाना बाकी है।
उनका नौसिखियापन उस समय उजागर हो गया जब उन्होंने 24 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी देने की घोषणा कर दी। तुरंत ही यह बात भी सामने आ गई कि एमएसपी तय करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है। इसके आगे उनकी भद तब और पिटी जब यह पता चला कि जिन 24 फसलों पर एमएसपी को घोषणा की गई है, उनमें से कुछ तो राज्य में होती ही नहीं हैं। बीजेपी के खिलाफ माहौल तो 2021-22 के किसान आंदोलन के समय से ही बनना शुरू हो गया था। इस आंदोलन में पंजाब के किसान जत्थे बनाकर आगे बढ़ रहे थे और हरियाणा के किसान उनके आंदोलन की सारी व्यवस्थाएं कर रहे थे। हरियाणा पुलिस ने इस किसानों का जिस तरह से दमन किया उसने राज्य सरकार को काफी अलोकप्रिय बना दिया।
बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और विवादास्पद अग्निपथ योजना इस राज्य में बहुत बड़ा मुद्दा बन चुकी है। हालांकि, अग्निपथ योजना केन्द्र सरकार की है लेकिन इसका असर बीजेपी की राज्य सरकार पर पड़ना भी तय है क्योंकि हर साल हरियाणा के हजारों लोग सेना में भर्ती होने के लिए जाते हैं।
महिला पहलवानों के साथ व्यवहार को लेकर केन्द्र सरकार के रवैये ने राज्य में बीजेपी की अलोकप्रियता को और बढ़ा दिया है। आंदोलन करने वाले सभी पहलवान हरियाणा के ही थे। मौका पड़ने पर सरकार ने जिस तरह अपनी बेटियों का साथ नहीं दिया, उसे लेकर ग्रामीण इलाकों में काफी नाराजगी पहले से ही थी जहां कुश्ती काफी लोकप्रिय खेल है। तमाम बाधाओं के बावजूद विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक जाने वाले भारतीय दल में जगह बनाने में कामयाब रहीं। फाइनल में पहुंचने तक उसने जो मेहनत की और जज्बा दिखाया वह भी सराहा गया। दुर्भाग्य से फाइनल में उसे डिस्क्वालीफाई होना पड़ा। विनेश फोगट जब पेरिस से लौटीं, तो दीपेंद्र हुड्डा उसका स्वागत करने के लिए गए, पर बीजेपी नेता नदारत थे। बाद में बीजेपी ने इसके राजनीतिकरण का भी आरोप लगाया। विनेश को देखने और उसका स्वागत करने के लिए दिल्ली से उसके गांव बलाली तक इतने लोग उमड़े कि घर पहुंचने में उन्हें 13 घंटे का समय लगा। दूसरी ओर भाजपा समर्थकों ने विनेश को ट्रोल किया। उसे हरियाणा के लोग भूलेंगे भी नहीं और माफ भी नहीं करेंगे।
(हरियाणा से हरजिंदर की रिपोर्ट)
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