मध्य प्रदेश: बीजेपी के 20 साल के रिपोर्ट कार्ड का अर्धसत्य, राज्य के लोग ही बता रहे हैं शिव'राज' की हकीकत

बीजेपी ने पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश में पार्टी के 20 साल के शासन का रिपोर्ट कार्ड तो जारी कर दिया, लेकिन इसमें किए गए दावों की पोल अब राज्य के लोग ही खोल रहे हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले सप्ताह शिवराज सरकार के 20 साल का रिपोर्ट कार्ड जारी किया था
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले सप्ताह शिवराज सरकार के 20 साल का रिपोर्ट कार्ड जारी किया था
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काशिफ काकवी / पूजा

सोशल मीडिया दोधारी तलवार है। इससे प्रचार-प्रसार की सुविधा तो मिल गई है लेकिन यह भी हुआ है कि किसी भी किस्म के दावों पर आदमी अपनी तुलना तुरंत करने लगता है और इसी आधार पर तय कर लेता है कि दावा कितना सही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल पहुंचकर 'गरीब कल्याण महाअभियान' नाम से दिया गया 32 पेज का 2003-2023 रिपार्ट कार्ड जारी तो कर दिया, लेकिन इनसे संबंधित वीडियो ही अब बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं।

अमित शाह के दस्तावेज में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री आवास योजना से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में लगभग 44 लाख गरीब परिवारों को पक्का घर मिला है। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत बनाए गए आवासों की संख्या में मध्य प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है। लेकिन इस बारे में वीडियो देखते-सुनते हुए जगह-जगह लोग खुद ही इसकी असलियत बता रहे हैं।

सिवनी जिले की लावीसर्रा पंचायत के देवसिंह वरकड़े को ही लें। उन्हें वर्ष 2020 में आवास स्वीकृत हुआ था लेकिन अभी तक वह पूरा नहीं हुआ है, प्लास्टर का काम बाकी है। उन्हें तीन किस्तों में 1 लाख 20 हजार रुपये मिले और कमीशन वगैरह देने के बाद राशि इतनी कम हो गई कि घर पूरा बनवाना असंभव हो गया, तो उन्होंने एक प्राइवेट बैंक से कर्ज लिया। फिर भी, काम अधूरा ही है।

यह आम बात है कि अतिरिक्त राशि के लिए कर्ज हासिल करने के एवज में लोगों ने अपने घर की महिलाओं के जेवर तक गिरवी रखे हैं या फिर, कहीं से कर्ज न मिलने पर लोग अपने मवेशी तक बेच दे रहे हैं। अब जैसे, बैतूल के केकड़िया कलां गांव के मिश्रीलाल विश्वकर्मा को ही लें। वह महज दीवारें खड़ी कर सके हैं, अब उन्हें छत डालने की हिम्मत नहीं हो रही है क्योंकि वह 1 लाख रुपये ब्याज पर उठा चुके हैं। मंडला जिले के दुपट्टा गांव के ज्ञान सिंह तो सिर्फ दीवारें ही खड़ी कर पाए हैं क्योंकि उन्हें कहीं से भी कर्ज नहीं मिल रहा है।


वैसे, इस तथाकथित रिपोर्ट कार्ड का सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसमें यह दावा तो किया गया है कि स्वच्छ सर्वेक्षण-2022 में मध्य प्रदेश को स्वच्छता में देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य चुना गया है लेकिन इसमें शौचालय निर्माण की संख्या का कहीं जिक्र तक नहीं किया गया है। ऐसा लगता है कि अब बीजेपी को यह बात समझ में आ गई है कि शौचालयों के निर्माण की योजना का अंततः क्या हश्र हुआ है।

हाल यह है कि बालाघाट जिले की गढ़दा पंचायत के बुरैना गांव में रहने वाले खुशयाल मर्सकोले-जैसे लोग तो इस योजना की बात करने पर उखड़-से जाते हैं। वह कहते हैं कि उनके पिता तो अब इस दुनिया में नहीं हैं; उनके नाम पर वर्ष 2020 में शौचालय बनना था। पंचायत के लोगों ने राशि निकाल ली लेकिन आज तक शौचालय नहीं बना। मर्सकोले बताते हैं कि पंचायत वाले कहते रहे कि आज शौचालय बना देंगे, कल बना देंगे लेकिन आखिरकार नहीं बनाया। गांव में जिनके घर बनाए गए हैं, उनमें से 75 प्रतिशत जर्जर हो चुके हैं, उनका उपयोग ही नहीं हो रहा है। लोग बाहर शौच करने जा रहे हैं।

दरअसल, मध्य प्रदेश में, इस योजना को लेकर खूब गोरखधंधा हुआ। बैतूल जिले के खड़काढ़ाना, बुचाखेड़ा में वर्ष 2018-19 में चार ग्रामीणों के नाम से रुपये निकाल लिए गए, पर शौचालय नहीं बने। बाद में शिकायत भी हुई तो बस इतना हुआ कि सरपंच सचिव पर 48 हजार रुपये की रिकवरी निकालकर खानापूर्ति कर दी गई। हकीकत में यहां भी कई ग्रामीणों ने सरकार द्वारा बनवाए शौचालय का उपयोग करना छोड़ दिया है क्योंकि ये जर्जर हो चुके हैं।

रिपोर्ट कार्ड में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत 82 लाख से अधिक महिलाओं को रसोई के काले धुएं से छुटकारा मिलने का दावा भी किया गया है। लेकिन इसकी असलियत का पता सरकार को भी है। रसोई गैस की कीमत जिस तरह दिन दूनी, रात चौगुनी दर से बढ़ी है, उससे किसी को भी अंदाजा हो सकता है कि लोग गैस की रीफिलिंग करा ही नहीं रहे हैं।


छिंदवाड़ा जिले के खूटिया गांव की सरूपवती आदिवासी, घर में लकड़ी वाले चूल्हे पर खाना पकाती हुई।
छिंदवाड़ा जिले के खूटिया गांव की सरूपवती आदिवासी, घर में लकड़ी वाले चूल्हे पर खाना पकाती हुई।

छिंदवाड़ा के खूटिया गांव में रहने वाली सरूपवती आदिवासी तो इसकी एक उदाहरण मात्र है। वह अब भी चूल्हे पर ही खाना पका रही है। उसके पति इंदरलाल तुमड़ाम कहते हैं कि गांव  ही नहीं, आसपास के लोगों का भी यही हाल है। इसी गांव के चंदरलाल आदिवासी ने तो घर में एक छपरा ही लकड़ी सुरक्षित करने के लिए बना रखा है। ये जंगल से लकड़ी बीनकर न लाएं तो इनके घर खाना ही पकना मुश्किल हो जाता है।

प्रदेश के आम लोगों का क्या हाल है, यह रिपोर्ट कार्ड में खुद ही बयान किया गया है। इसमें कहा गया है कि पिछले 5 वर्षों में मध्य प्रदेश के 1 करोड़ 36 लाख से अधिक लोग गरीबी से मुक्त हुए हैं। लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि गरीब कल्याण अन्न योजना से 5 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है।

राज्य की अनुमानित आबादी 8.5 करोड़ है। ऐसे में सरकार खुद ही मान रही है कि आधी से अधिक आबादी को अब भी अन्न देना पड़ रहा है क्योंकि उनके पास रोजी-रोजगार नहीं है। तब ही तो पूर्व वित मंत्री और कांग्रेस नेता तरुण भनोत कहते हैं कि 'बीजेपी अर्धसत्य बोल रही है।'

शिवराज सरकार यूपी और उत्तराखंड की तरह मध्य प्रदेश में भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात तो करती है लेकिन इनसे संबंधित परियोजनाओं में जिस तरह निर्माण की गुणवत्ता को ठेंगे पर रखा जा रहा है, उसका एक उदाहरण तो महाकाल लोक ही है जहां अभी मई माह में ही आंधी में सात में से छह ऋषियों की प्रतिमाएं तितर-बितर हो गईं और इस मुद्दे पर सरकार की सार्वजनिक तौर पर लगभग छीछालीदर ही हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अक्टूबर में ही इस योजना के पहले चरण का उद्घाटन किया था। इस रिपोर्ट कार्ड में ओंकारेश्वर में एकात्म धाम का निर्माण करने और वहां आदिगुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा, अद्वैत वेदांत संस्थान, अद्वैत वन विकसित किए जाने की बातें भी की गई हैं। इसके लिए यहां 1,300 पेड़ काट दिए गए जिसे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) फरवरी में ही 'अवैध' बता चुका है।


भारत हितरक्षा अभियान के कार्यकर्ता डॉ. सुभाष बारोड़ तो यह भी बताते हैं कि 'ओंकारेश्वर में अभयघाट से लेकर मूर्ति स्थान तक 20 मीटर चौड़ी और 1.2 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने के लिए पेड़ ही नहीं काटे गए बल्कि पहाड़ का स्वरूप ही बदल दिया गया। मूर्ति स्थल के सामने म्यूजियम बनाने के लिए पांच हेक्टेयर जमीन साफ की, वहां की चट्टानों और पेड़ों को काटा गया। प्राकृतिक पहाड़ पर 10 हजार से अधिक पेड़ों को काट दिया गया। इसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी।' वैसे भी, पर्यावरण को लेकर शिवराज सरकार न्यूनतम चिंता करती है। हीरा खनन के नाम पर बक्सवाहा जंगल के 2.5 लाख पेड़ों की कटाई को लेकर चल रहे संघर्ष की वजह से अभी काम भले ही धीमा करना पड़ा हो, यहां खतरा तो बना ही हुआ है।

राजस्व जुटाने के खयाल से इस प्रकार के अनाप-शनाप फैसले लेने की असली वजह यह है कि आर्थिक तौर पर प्रदेश सरकार लगातार मुश्किल में है।

रिपोर्ट कार्ड में दावा किया गया है कि शिवराज शासनकाल में राज्य 'बीमारू' के दर्जे से बाहर आ गया है और राज्य की अर्थव्यवस्था चमक रही है। लेकिन भोपाल के वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार शशिकांत द्विवेदी समझाते हैं कि इसमें किस तरह सिर्फ आंकड़ों और शब्दों का खेल किया गया है। उनका कहना है कि '2008 में मध्य प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 1 लाख करोड़ था जो 2023-24 में 13 लाख करोड़ हो गया है। मतलब, यहां हर साल 1 लाख करोड़ की तीव्र वृद्धि हुई है। यह दुनिया में कहीं संभव नहीं है। दरअसल, सरकार लगातार भारी कर्ज ले रही है और यह बढ़ोतरी इसीलिए बिल्कुल नकली है।'

पूर्व मंत्री तरुण भनोत तो कहते हैं कि 'राज्य के हर व्यक्ति पर 50,000 रुपये से अधिक का ऋण है। राज्य की माली हालत इसी से समझी जा सकती है कि अभी 30 जून को सरकार ने 41 विभागों को वित्त विभाग की अनुमति के बिना किसी आवंटित राशि के खर्च से मना कर दिया। इसका मतलब यह है कि विभाग कल्याणकारी योजनाओं के लिए ये पैसे खर्च नहीं कर सकते। और तो और, पिछले दो-तीन महीने से काफी सारे कर्मचारियों के वेतन के भुगतान के लिए फंड नहीं है।'


कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा कहते हैं कि 'सच्ची बात यह है कि मध्य प्रदेश विफल राज्य की श्रेणी में है और इसकी वजह यह है कि यहां भ्रष्टाचार चरम पर है।' इसे उजागर करने के खयाल से ही 8 अगस्त को कांग्रेस ने 'घोटाला शीट' जारी की है। तन्खा कहते हैं कि 'बीजेपी के दावे कितने नकली हैं, इसका उदाहरण यही है कि बीजेपी सरकार ने कई निवेश सम्मेलन किए और करोड़ों डॉलर के निवेश प्रस्तावों का दावा किया। ये अगर जमीन पर उतरे होते, तो मध्य प्रदेश के शहर बेंगलुरु और हैदराबाद-जैसे आईटी हब हो गए होते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया।'

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