कोरोना: समय रहते पीएम ने सुन ली होती विपक्ष की बात, तो शायद अलग होते आज हालात, क्या ‘न्याय’ अपनाएगी सरकार!
कोरोना का प्रकोप आज भयावह रूप ले चुका है। पूरा भारत लॉकडाउन के तहत बंद हो गया है। कई राज्यों में कर्फ्यू है। लेकिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है। सवाल है कि जब विपक्ष और खासतौर से राहुल गांधी इस बारे में निरंतर चेता रहे थे, तो सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही?
स्थिति विकट है, या यूं कहें कि फिलहाल हाथ से बाहर जा चुकी है। पूरा देश बंद हो चुका है। जमीन से लेकर पटरी तक, और गलियों से लेकर हवा तक आवागमन के संसाधन थम चुके हैं। अस्पतालों के दरवाजें पर भी पहरा है और सिर्फ गंभीर रोगियों के लिए ही रास्ता दिया जा रहा है। विपक्ष चिल्ला-चिल्लाकर कोरोना के कहर से आगाह कर रहा था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी फरवरी की शुरुआत से ही इस बीमारी को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे थे। लेकिन. अहंकार और आत्ममुग्धता में लीन मोदी सरकार को संकट की आहट तक नहीं सुनाई दी।
आखिरकार जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो, प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही ताली-थाली बजाने का जो नुस्खा समझाया, उसने जनता कर्फ्यू की खुद ही धज्जियां उड़ा दीं। लोग एक जश्न की तरह सड़कों पर निकलकर ताली-थाली पीटने लगे।
लोकतंत्र में सरकार का काम शासन चलाना है, उसकी जिम्मेदारी है कि किसी भी संकट के समय वह संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करे, दुनिया के अन्य देशों में इस संकट पर क्या हो रहा है उसका अध्ययन करे, अपने यहां की परिस्थितियों के अनुरूप नीति निर्धारण करे। लेकिन दुर्भाग्य से मोदी सरकार ऐसा कुछ करती नजर नहीं आई। यह जानते बूझते कि कोरोना जैसे विनाशकारी संकट के समय कोई भी कदम उठाने से पहले विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए, सरकार ने और खासतौर से प्रधानमंत्री ने देश को ताली-थाली में उलझा दिया।
वास्तविकता यह है कि किसी को पता नहीं है कि इससे निबटा कैसे जाए, न कोई दवा है और न कोई टीका। रोकथाम के लिए टीका बनाने में कम से कम दो साल का वक्त लगेगा, तो दवा बनाने में कुछ और ज्यादा। ऐसे में इस महामारी की रोकथाम करना सबसे अहम जरूरी कदम था, जो बीमार हो गए हैं उन्हें दूसरों से अलग रखना था। लेकिन प्रसार रोकने और इलाज की व्यवस्था करने के लिए कदम उठाने में काफी देर कर दी गई।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी फरवरी माह की शुरुआत से कह रहे हैं कि यह भयावह संकट है, जिसे रोकने के लिए सरकार को व्यापक नीति बनानी चाहिए। लेकिन सरकार ने नहीं सुनी। सरकार ने तो शुरु में इसे विदेश से आने वाली समस्या ही माना और सारा ध्यान अंतरराष्ट्रीय परिवहन के नियंत्रण पर लगा दिया। लेकिन इस दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था का आकलन करने और उसे मजबूत बनाने में किया जा सकता था, वह सरकार ने नहीं किया।
देशभर में लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार से आग्रह किया कि गरीबों, मजदूरों, दिहाड़ी कामने वालों, छोटे दुकानदारों, एमएसएमई के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। लेकिन सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी। कहने को तो एक कोरोना टास्क फोर्स बना दिया गया, लेकिन इस टास्क फोर्स ने शनिवार से अब तक क्या किया, कुछ नहीं पता।
सीपीएम नेता सीतराम येचुरी भी मजदूरों और कामगारों के हितों की रक्षा के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही उनकी नजर कोरोना की मार झेल रहे छोटे उद्यमियों पर भी है ।
कुछ राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर गरीबों, मजदूरों आदि के लिए आर्थिक व्यवस्थाएं करने का ऐलान किया है। लेकिन राज्यों के संसाधन सीमित होते हैं, ऐसे में उन्हें केंद्र सरकार की मदद चाहिए होती है, पर सरकार ने तो बीते 6 साल में किसी विशेषज्ञ से सलाह नहीं ली, विपक्ष के सुझावों को दरकिनार किया और अपनी मनमानी करती रही। कोरोना के संकट में भी स्थिति यही है।
विशेषज्ञ अब उस योजना का जिक्र कर रहे हैं जो इस महामारी के भयावह संकट में सबसे कारगर साबित हो सकती है। वह है न्याय,,,न्याय कांग्रेस की योजना है और लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी के घोषणा पत्र के मुख्य वादों में सर्वोपरि है। राहुल गांधी के दिमाग की उपज न्याय ही इस संकट की घड़ी में राहत दे सकती है।
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