राहुल गांधी मामले से गुजरात हाईकोर्ट जज ने किया खुद को अलग, बिना वजह बताए किया सुनवाई से इनकार

गुजरात हाईकोर्ट की जज न्यायाधीश गीता गोपी ने राहुल गांधी के मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने इसके लिए कोई वजह नहीं बताई है। राहुल गांधी की तरफसे बुधवार सुबह ही जस्टिस गोपी की कोर्ट में 29 अप्रैल को सुनवाई करने की मांग की थी।

सूरत कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी ने 25 मार्च को दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस की थी। (फोटो : Getty Images)
सूरत कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी ने 25 मार्च को दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस की थी। (फोटो : Getty Images)
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ आए मानहानि मामले में दोषसिद्धि पर रोक की मांग वाली याचिका गुजरात हाईकोर्ट में दाखिल की गई है। गुजरात के सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को मानहानि के मामले में दोषी करार दिया था। इसी फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। बुधवार को राहुल गांधी के वकील पंकज चंपानेरी जस्टिस गीता गोपी की कोर्ट में अर्जी देकर मामले पर तत्काल सुनवाई की अपील करते हुए 29 अप्रैल की तारीख तय करे की मांग की थी।

लेकिन जस्टिस गीता गोपी ने बिना कारण बताए इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। राहुल गांधी के वकील पंकज चंपानेरी का कहना है कि निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस गीता गोपी की अदालत में ही होती है। लेकिन बुधवार को उन्होंने इस मामले में यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया, “मेरे सामने नहीं...”

चंपानेरी ने कहा कि ऐसी स्थिति के बाद अब मामले को किसी अन्य कोर्ट में भेजने के लिए गुजरात हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को नोट भेजा जाएगा, और वही इस मामले की सुनवाई के लिए सिंगल बेंच तय करेंगे। राहुल गांधी की याचिका में कहा गया है कि सूरत कोर्ट के असंगत फैसले के कारण उन्हें अपरिवर्तनीय नुकसान हुआ है, जिसमें उनकी लोकसभा सदस्यता जाना भी शामिल है, इसीलिए इस फैसले पर रोक लगाई जाए।

बता दें कि राहुल गांधी ने 2019 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कर्नाटक के कोलार में मोदी सरनेम पर टिप्पणी की थी। इसे लेकर गुजरात के एक बीजेपी विधायक ने उन पर मानहानि का मुकदमा किया था जिसमें पिछले महीने सूरत कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई। इस फैसले के बाद राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करते हुए उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई। इसके फौरन बाद ही केंद्र सरकार ने सांसद के तौर पर उन्हें आवंटित सरकारी बंगला भी खाली करा लिया।

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