ग्राउंड रिपोर्टः ‘बवाली’ हो गईं बाजार में सब्जी की कीमतें, दाम को लेकर मारपीट के बन रहे हालात
मंडी में फल और सब्जी के व्यापारी बताते हैं कि सब जमाखोरी का खेल है। मंडी में ही सब्जी कम आ रही है। दूसरी तरफ अब बड़े किसान भी खुद स्टॉक करने लगे हैं। इसके अलावा उत्पादन भी कम हुआ है। किसानों की रुचि भी कमजोर हुई है, जिसके बाद ये हालात पैदा हुए हैं।
मुजफ्फरनगर के मीरापुर के रहने वाले यूनुस सलीम जामा मस्जिद इलाके में सब्जी की एक दुकान पर जोर लगाकर बहस कर रहे हैं। आसपास कुछ लोग इकठ्ठा हो गए हैं। यूनुस का कहना है कि उन्होंने आधा किलो साग लिया है। दुकानदार के लड़के ने उसे 70 रुपये किलो बताया। इसी साग पर उसने पानी का छिड़काव कर दिया। पानी के बाद इसका वजन बढ़ गया। वह कहते हैं, “मैं पहले ही महंगा देखकर कम में गुजारा कर रहा हू, पर अब 100 ग्राम वजन पानी का बढ़ जाएगा।”
बहस के बाद यूनुस जब चले जाते हैं तो दुकानदार मोनू कहते हैं, "साग महंगा है, खरीददार नहीं मिलता तो रखा हुआ खराब हो जाता है और उसे साफ करते हैं तो वजन कम हो जाता है। पानी से थोड़ा लाइफ बढ़ जाती है और कुछ औसत भी आ जाता है। ग्राहक हमारी परेशानी को समझता नहीं है। हमें नुकसान कहीं से तो निकालना होगा।"
एक दूसरे सब्जी वाले दुकानदार के यहां एक बुर्कानशीं औरत पूछती हैं, "भाई सबसे सस्ती सब्जी कौन सी है!” यह बेहद अजीबोगरीब सवाल है। अब पसंद से नहीं, जरूरत से सब्जी खरीदी जा रही है। दुकानदार बताता है कि ऐसे तो मूली सबसे सस्ती है, जो अभी 10 रुपये किलो है और जिसे अधिकतर लोग सलाद में खाते हैं। महिला आलू की कीमत जानना चाहती है और हैरतजदा हो जाती है। आलू 40 रुपये किलो है। नया आलू 60 रुपये बिक रहा है।
आलू सब्जियों का राजा है और उसका लगभग हर सब्जी के साथ गठबंधन होता है। 25 साल से सब्जी बेचने वाले इरशाद कहते हैं कि उन्होंने इतना महंगा आलू कभी नहीं बेचा। टमाटर और प्याज 60 रुपये से 80 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं, मगर वो पहले भी इसी कीमत पर पहुंच चुके हैं। आजकल चिंता तो आलू बढ़ा रहा है।
मीरापुर जैसे कस्बों में सब्जी की कीमत का गणित कुछ इस तरह हैः भिंडी 40 रुपये, टमाटर 60 रुपये, शिमला मिर्च 120 रुपये, चने का साग 70 रुपये, लौकी 40 रुपये और बैगन 40 रुपये है। शहरों में आप इस कीमत में 10 फीसद का इजाफा कर सकते हैं। एक आम गृहणी गीता शर्मा बताती हैं कि सस्ती तो दाल भी नहीं है। कीमत तो उसकी भी आसमान छू रही है। सब्जियों के दाम तो अक्सर घटते-बढ़ते रहते हैं, मगर आलू पर जबरदस्त महंगाई है, जबकि वो सबसे बड़ी जरूरत की सब्जी है।
मंडी में फल और सब्जी के व्यापारी हाजी अनवर कहते हैं कि सब स्टॉकिंग का खेल है। मंडी में सब्जी कम आ रही है। उत्पादन भी कम हुआ है। किसानों की रुचि कमजोर हुई है और बड़े किसान खुद स्टॉक करने लगे हैं। अनवर बताते हैं कि आलू की कुछ साल पहले बुरी गत हुई थी। आलू को सड़कों पर फेंका जा रहा था। इस बुरे हश्र के बाद आलू किसानों ने उसमें रुचि लेनी कम कर दी, जिसके बाद यह हालात पैदा हुए हैं।
एक और गृहणी शैली (24) बताती हैं कि पहले समस्या पकाने के लिए सब्जी के चुनाव की रहती थी, लेकिन अब तो विकल्प ही नहीं है। कम सब्जी में अधिक पानी मिलाकर बजट को उपयोगी बना रहे हैं। अजीब स्थिति है कि कामकाज प्रभावित हो गए हैं और खाने-पीने की चीजों पर कीमत बढ़ गई है। शैली एक निजी स्कूल में टीचर हैं और कहती हैं, “तनख्वाह आधी हो गई है तो सरकार को खाने -पीने की वस्तुओं की कीमत को भी आधा करना चाहिए था, मगर वो तो दोगुनी हो गई है।”
इसी दौरान सब्जी खरीदने पहुंचे रविन्द्र कुमार 15 मिनट सिर्फ भाव पूछने पर खर्च करते हैं और उसके बाद घरवाली से सलाह पर वापस चल देते हैं। रविन्द्र खुद किसान हैं और वो कहते हैं, "अब मन बना रहा हूं कि अपनी जमीन के एक हिस्से पर सब्जी की ही खेती करूं, कम से कम बाजार से खरीदनी तो नहीं पड़ेगी।"
इलाके के ही एक स्थानीय स्कूल के प्रधानचार्य दीपक धीमान तो ऐसा 6 महीनों से कर रहे हैं। वो कहते हैं, “पहले तो ऐसा इसलिए शुरू किया था कि ताकि बाहर न जाना पड़े और मिलावट से छुटकारा मिल जाए, मगर सब्जी पर आई महंगाई को देखते हुए यह तीर निशाने पर लग गया है।
कांग्रेस के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी और युवा किसान नेता पंकज मलिक कहते हैं कि मंहगाई सर चढ़ गई है। टमाटर की कीमतों पर चिमटे-तसली लेकर सड़क पर उतरने वाली मैडम आज सरकार में हैं। अब एक टमाटर नहीं, सब सब्जियों पर महंगाई की आफत है। मोदी सरकार के नए कृषि कानून हालात को और बिगाड़ देंगे। पैसे वाले लोग स्टॉक जमा कर लेंगे और अपनी मर्जी से मनमाने दाम पर बेचेंगे। यह सिर्फ ट्रेलर है। किसान बुरी तरह हिम्मत हार चुका है और उसकी उत्पादन में रुचि कम हो रही है। किसान को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।
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Published: 27 Oct 2020, 5:06 PM