हरियाणा के तोशाम से ग्राउंड रिपोर्ट: चुनाव चौधरी बंसीलाल की विरासत के असली वारिस का भी है, लड़ाई हुई दिलचस्प

चुनाव चौधरी बंसीलाल की विरासत के असली वारिस का भी है, जिस पर कांग्रेस और बीजेपी से लड़ रही बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी के अपने-अपने दावे हैं। चचेरे भाई-बहन के बीच यह मुकाबला बड़ा दिलचस्प है। दोनों के बीच फैसला करना तोशाम के लोगों के लिए बड़ा मुश्किल काम है।

फोटो: सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा के तीन लालों में से एक पूर्व मुख्यमंत्री और विकास पुरुष कह जाते चौधरी बंसीलाल का गढ़ भिवानी जिले का तोशाम विधानसभा क्षेत्र है। अरावली पर्वतमाला की तोशाम पर्वत श्रेणी पर बसे राजस्थान की सीमा से लगते इस टाउन में यह महज विधायक का चुनाव नहीं है। चुनाव चौधरी बंसीलाल की विरासत के असली वारिस का भी है, जिस पर कांग्रेस और बीजेपी से लड़ रही बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी के अपने-अपने दावे हैं। चचेरे भाई-बहन के बीच यह मुकाबला बड़ा दिलचस्प है। दोनों के बीच फैसला करना तोशाम के लोगों के लिए बड़ा मुश्किल काम है। मतदाताओं के बीच इसको लेकर जमकर बहस और घमासान चल रहा है। बावजूद, इसके बीजेपी की पिछले 10 साल की सरकार के खिलाफ सवालों की फेहरिस्त लंबी है। 10 साल में बीजेपी की सरकार ने तोशाम में एक ईंट नहीं रखी। वहीं, बेरोजगारी के सवाल पर युवा बीजेपी की सरकार को सबक सिखाने के लिए बैठे हैं।

हरियाणा के तोशाम से ग्राउंड रिपोर्ट: चुनाव चौधरी बंसीलाल की विरासत के असली वारिस का भी है, लड़ाई हुई दिलचस्प

भिवानी जिले के तोशाम विधानसभा क्षेत्र का चुनाव हरियाणा के 5 सबसे दिलचस्प हलकों के चुनाव में से एक है। तोशाम के अपने गढ़ से चौधरी बंसीलाल कभी चुनाव नहीं हारे। उनकी विरासत संभाल रही बंसीलाल के छोटे बेटे चौधरी सुरेंद्र सिंह की पत्नी किरण चौधरी भी लगातार पिछले 4 चुनावों से यहां से जीत रही हैं। लेकिन बीजेपी में जाने के बाद उनके अपने लोग नाराज हैं। किसान आंदोलन का व्यापक प्रभाव भी है। बीजेपी ने किरण चौधरी को राज्यसभा में भेज दिया है। उनकी बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने उनके मुकाबले चौधरी बंसीलाल के बड़े बेटे बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) के पूर्व अध्यक्ष रणबीर महेंद्रा के बेटे बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष रहे अनिरुद्ध् चौधरी को उम्मीदवार बनाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। चचेरे भाई-बहन के बीच मुकाबले से सियासी तापमान चरम पर है।

तोशाम की हर दुकान-चौराहे पर चुनावी बहस बड़ी दिलचस्प है। कभी चौधरी बंसीलाल परिवार के धुर विरोधी रहे भिवानी से बीजेपी के सांसद धर्मवीर का भितरघात भी श्रुति चौधरी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हालांकि, किरण चौधरी के बीजेपी में आने के बाद बाहरी तौर पर धर्मवीर उनके साथ खड़े दिख रहे हैं। तोशाम में लोगों ने कहा कि श्रुति चौधरी जीतकर बीजेपी में स्थापित हो गईं तो धर्मवीर का बेटा कहां जाएगा, जिसके लिए धर्मवीर काफी समय से टिकट के लिए प्रयासरत रहे हैं।


इससे इतर बीजेपी की राज्य में पिछले 10 साल से चल रही सरकार के खिलाफ आक्रोश भी गहरा है। रोजगार-ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) जैसे मुद्दे ईवीएम तक पहुंचे तो बीजेपी के लिए किला फतह करना दूर की कौड़ी हो जाएगी। वैसे भी बीजेपी यहां से कभी चुनाव नहीं जीती है। नौकरी के लिए हरियाणा की प्रशासनिक राजधानी का दर्जा प्राप्त पंचकूला में ठोकरें खाने वाले युवा जवाब देने के लिए वक्त का इंतजार कर रहे हैं। हरियाणा कौशल रोजगार निगम के जरिए ठेके पर सरकारी नौकरी की व्यवस्था को अपनी उपलब्धि बताकर ढोल पीटने वाली बीजेपी सरकार पर युवाओं को धोखा देने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। ओपीएस के लिए लाठियां खाने वाले सरकार के कर्मचारी भी बुरी तरह बिफरे हुए हैं। ॉ

तोशाम के चौराहे पर ही राज्य की सत्ता को पिछले 10 साल से चला रही बीजेपी के खिलाफ गुस्से का पिटारा खुल गया। एक मेडिकल स्टोर चला रहे दिनेश मानो गुस्से से भरे हुए बैठे थे। पंचकूला में दिनेश ने नौकरी के लिए रातें गुजारी हैं। उनका दर्द यह है कि सरकार ने तो धोखा दिया ही, मीडिया ने भी साथ नहीं दिया। दिनेश कहते हैं कि पत्रकार आते थे। हमारी बात नोट करके भी ले जाते थे, लेकिन न तो किसी टीवी चैनल ने दिखाया न किसी अखबार ने प्रकाशित किया। हमारे सवाल से पहले दिनेश ने खुद एक सवाल दाग दिया। बात प्रकाशित करने की शर्त पर वह बोलना शुरू करते हैं। वह कहते हैं हरियाणा कौशल रोजगार निगम एक दिखावा है। कौशल निगम के जरिये ठेके पर नौकरी ज्वाइन करने वाले कई लोगों को महज तीन महीने बाद ही हटा दिया गया। सरकार दावा करती है कि कौशल निगम के जरिये ठेके पर नौकरी पाने वाले 1.20 लाख लोगों की नौकरी उसने सुरक्षित कर दी है। लेकिन एक भी ऐसे कर्मचारी को इसका पत्र नहीं मिला। सरकार झूठ बोल रही है।

दिनेश खुद अपना उदाहरण देते हुए कहते हैं कि पंचकूला में हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के सामने उन्होंने प्रदर्शन किए हैं। दसियों रातें वहां प्रदर्शन करते हुए गुजारी हैं। कर्मचारी चयन आयोग चेयरमैन के उन्होंने पैर तक पकड़े हैं। इसके बावजूद सरकार को तरस नहीं आया। पुलिस उन्हें हटा देती थी, लेकिन वह फिर वहां पहुंच जाते थे। सैकड़ों टीचर संस्कृत के हटा दिए गए। इन हटाए गए टीचरों में उनकी पत्नी ज्योति भी शामिल थीं। एक साल पत्नी को हटाए हुए हो गया। ग्रुप डी में ज्वॉइन करने वालों को 6 महीने से स्टेशन नहीं मिला। पिछले 4 महीने से वेतन नहीं दिया गया। सीईटी (कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट) के फार्म 2021 में भरे गए थे। अभी तक युवा धक्के खा रहे हैं।

दिनेश कहते हैं फैमिली आईडी के आधार पर दिखाए गए लोगों के उत्थान के सरकार के आंकड़े भी झूठे हैं। फैमिली आईडी के बेस पर दिखाया जा रहा है कि इतने लोगों को नौकरी दी, लेकिन वास्तविकता में उनमें से बड़ी तादाद में लोगों को नौकरी से हटाया जा चुका है। दिनेश का मीडिया के रवैये को लेकर भी दर्द झलका। ब्राम्हणों के बीजेपी समर्थक होने के सवाल पर वह खुद का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मैं भी ब्राम्हण हूं। मैं अकेला नहीं हूं। लोग वक्त का इंतजार कर रहे हैं।


नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर तोशाम में सरकारी कर्मचारी कहते हैं कि जो ओपीएस देगा, हम उसका साथ देंगे। युवाओं में रिजल्ट न निकलने को लेकर नाराजगी थी। तोशाम में दलितों से जुड़े एक मंदिर में भाईचारे के बच्चों के लिए चल रही फ्री कोचिंग में युवा राहुल कहते हैं कि करीब 50 बच्चे यहां परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। बमुश्किल एक या दो बच्चों ने सीईटी के बाद नौकरी ज्वाइन किया होगा। तोशाम में लगी चौधरी बंसीलाल की प्रतिमा के सामने जूस बेच रहे पवन और अजय कहते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी का नया और युवा चेहरा होने से लोगों में आकर्षण है। बीजेपी और कांग्रेस, दोनों प्रत्याशियों के चौधरी बंसीलाल का वारिस होने से लोगों में कंफ्यूजन भी है।

वहीं सांगवान गांव के नरेंद्र सांगवान कहते हैं कि पिछले 10 साल में बीजेपी सरकार ने तोशाम में एक ईंट नहीं रखी। इतने लंबे वक्त के बाद हर व्यक्ति में बदलाव की चाहत है। पूर्व सेना अध्यक्ष व केंद्र में मंत्री रहे जनरल वीके सिंह के गांव बापौड़ा की चौपाल पर बैठे लोगों के बीच चुनावी बहस भी इस बात की तस्दीक कर रही थी कि मुकाबला दिलचस्प है। भीम सिंह, किशन और रामकृष्ण में से हर किसी का मत अलग था, लेकिन एक विषय पर तीनों एकमत थे। वह यह कि जनरल वीके सिंह ने इस गांव में कुछ नहीं करवाया। बापौड़ा के अनिल वाल्मीकि बदलाव की बात कर इस पर मोहर लगा रहे थे कि दलित भाईचारे में जबर्दस्त डिवीजन है। 12-13 हजार वोट वाले बापौड़ा की एक बात और दिलचस्प है कि जाट बाहुल्य तोशाम के इस गांव में एक भी जाट परिवार नहीं रहता। राजपूत बिरादरी के बिंजेंदर तंवर कहते हैं कि उनके समाज के मतों में भी बटवारा है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों को बराबर अनुपात में मत जा सकते हैं।

गांव खरकड़ी सोहान के बलवान कहते हैं कि किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने से लोग नाराज हैं। बीजेपी से सबसे बड़ी नाराजगी किसान आंदोलन में उसका रवैया है। दलितों में चमार बिरादरी में संविधान मुद्दे का जबर्दस्त असर है। कभी यह जाति बीएसपी की कट्टर समर्थक होती थी। बीजेपी की धर्म की राजनीति से लोग सहमत नहीं हैं। गांव के ही सोनू बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा मानते हैं। चौधरी बंसीलाल के गांव गोलागढ़ में चुनावी बहस इतनी गर्म है कि लगता है फैसला यहीं हो जाएगा। गांव के लोग श्रुति व अनिरुद्ध् के बीच बंटे हुए हैं। चौधरी बंसीलाल के रिश्ते में पोते लगते चंदर सिंह भी इस बात की तस्दीक करते हुए कहते हैं कि पूरा गांव बटा हुआ है। हालांकि, तकरीबन 2000 वोट वाले गोलागढ़ के 26 वर्षीय युवा सरपंच संदीप गांव की समस्याओं की एक पूरी फेहरिस्त रख देते हैं, जिन पर वह सरकर से गुहार लगाते रहे। संदीप गांव में स्टेडियम, लाईब्रेरी व जिम नहीं होने की बात करते हैं। वह कहते हैं कि गांव के 95 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। पानी की गंभीर समस्या है। पशु अस्पताल व छोटी पीएचसी की बिल्डिंग डैमेज है। पीएचसी तो धर्मशाला में चल रही है। बस स्टैंड पर बनाई गई चौधरी बंसीलाल धर्मशाला की इमारत भी डैमेज है।

संदीप बताते हैं कि 2023 में पंचायत से प्रस्ताव पास कर सरकार को भेजे थे, लेकिन पंचायत को ग्रांट न मिलने से कोई काम नहीं हो पाया। पंचकूला में सरपंचों पर बरसी पुलिस की लाठियों के वक्त संदीप भी मौजूद थे। राज्य सरकार के पंचायतों के अधिकार छीन लेने के खिलाफ सरपंच पंचकूला में प्रदर्शन कर रहे थे। यह सभी स्थितियां इस बात की गवाही दे रही हैं कि तोशाम का चुनाव दिलचस्प है।


तोशाम के चुनावी समीकरण

चौधरी बंसीलाल की विरासत कांग्रेस प्रत्याशी अनिरुद्ध चौधरी के पास जाएगी या भाजपा से उतरी श्रुति चौधरी बनेंगी हकदार। बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी का संघर्ष बड़़ा दिलचस्प है। हालांकि, बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महिंद्रा और सुरेंद्र सिंह भी आमने-सामने हो चुके हैं, जिसमें सुरेंद्र सिंह को जीत मिली थी। सुरेंद्र सिंह की हैलीकॉप्टर क्रैश में डेथ होने के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी तोशाम से चुनाव लड़ रही हैं। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस छोड़ने वाली किरण चौधरी को बीजेपी राज्यसभा सदस्य बना चुकी है। किरण चौधरी अब अपनी बेटी श्रुति को राज्य की सियासत में स्थापित कर अपनी विरासत सौंपना चाहती हैं। श्रुति के सामने उनके ताऊ के बेटे अनिरुद्ध चौधरी हैं, जिनके कंधों पर यहां कांग्रेस के वर्चस्व को कायम रखने की जिम्मेदारी है। यहां चुनाव श्रुति के लिए नहीं बल्कि उनकी मां किरण चौधरी के लिए चुनौती है। बीजेपी में जाने के बाद उनके काफी समर्थक भी उनका साथ छोड़ चुके हैं। श्रुति भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस से सांसद रह चुकी हैं। तोशाम में एक तीसरा चुनावी कोण भी है, जो चुनाव को और दिलचस्प बना रहा है। बीजेपी के बागी पूर्व विधायक शशि रंजन परमार निर्दलीय तैदान में हैं। 2019 के विस चुनाव में कांग्रेस की किरण चौधरी के सामने बीजेपी से शशि रंजन परमार ही थे। शशि रंजन परमार को करीब 56 हजार वोट मिले थे। राजपूतों की पंचायत के बाद उन्हें निदर्लीय मैदान में उतारा गया है। तोशाम में तकरीबन 14-15 हजार वोट राजपूतों के हैं। जितने वोट शशिरंजन को मिलेंगे उतना वह श्रुति चौधरी का नुकसान करेंगे। चौधरी बंसीलाल के परिवार व राजपूतों के बीच 36 का आंकड़ा माना जाता है। शेष प्रत्याशियों की चर्चा भी नहीं है।

 भाई-बहन श्रुति चौधरी और अनिरुद्ध चौधरी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अनिरूद्ध चौधरी राजनीतिक सफर की शुरुआत कर रहे हैं। बंसीलाल यहां से जीतकर चार बार मुख्यमंत्री बने और करीब 12 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। वह 1967 में पहली बार विधायक बने थे। चौ. बंसीलाल के अलावा तीन बार उनके पुत्र चौ. सुरेंद्र सिंह जीते तो चार बार उनकी पुत्रवधु किरण चौधरी विधायक बनीं। 2005 से किरण चौधरी यहां से विधायक हैं। भाजपा का कमल यहां कभी नहीं खिला। 2 लाख से अधिक मतों वाले इस विस क्षेत्र के 109 गांवों में जाटों के कुल मत तकरीबन 70,000 के आसपास माने जाते हैं। तोशाम में कांग्रेस दफ्तर के इंचार्ज मंजीत मान चुनावी गणित समझाते हैं। उनका दावा है कि चौधरी बंसीलाल के समर्थक अनिरुद्ध् के साथ हैं। तोशाम में ऐसे 40-50 गांव हैं, जहां बंसीलाल के समर्थक बड़ी संख्या में हैं। अनिरुद्ध् के पहली बार चुनाव लड़ने से वह मानते हैं कि लॉयबिलिटी नहीं है। ओबीसी में भी 25 प्रतिशत वोट अनिरुद्ध् को मिलने का दावा वह करते हैं। दलितों में चमार भाईचारे के 80 प्रतिशत वोट मिलने का दावा है। वहीं बैठे इसी बिरादरी से आते रिटायर्ड एनएसजी कमांडो इस बात की पुष्टि करते हैं। तोशाम के तकरीबन 10-12 हजार वोटों में से भी वह अच्छे मत मिलने का दावा करते हैं।

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