केरल से ग्राउंड रिपोर्ट: बारिश ने जब कहर बरपाना शुरू किया
बारिश 14 की रात में शुरु हुई थी। यह वैसी नहीं थी, जैसी हम दिल्ली या देश के दूसरे हिस्सों में देखते हैं। अतिश्योक्ति न समझा जाए, तो कहना होगा मानों बाल्टियां भर-भरकर जैसे कोई ऊपर से पानी फेंक रहा था। अगले 48 घंटे ऐसी ही टूटकर बारिश होती रही।
सिर्फ यह कह देना कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, काफी नहीं होगा। यह तो है ही, और केरल में तो यह सबको समझ भी आ गया है, शायद बाकी देश को कोई अंदाज़ा ही नहीं है कि इस तटीय राज्य में तबाही का मंजर कितना खौफनाक है।
8 अगस्त को बाढ़ शुरु ही थी। कोच्चि एयरपोर्ट कुछ घंटे के लिए बंद करना पड़ा था। केरल में यूं तो हमेशा अच्छी खासी बारिश होती है और हालात काबू में कर लिए जाते हैं, या कम से कम हम ऐसा ही समझते रहे हैं। देश के दूसरे हिस्सों की तरह यहां बारिश के दिनों में जिंदगी ठहर नहीं जाती। सिर्फ एक छाता लेकर हम रोज़मर्रा के काम निपटा देते हैं, हां कुछ दिक्कतें तो होती ही हैं। कोच्चि एयरपोर्ट जब कुछ घंटे बाद खोल दिया गया तो लगा कि सब ठीकठाक है, राहत, जहां से भी आनी है, आ जाएगी, बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए शिविर लगाए जाएंगे, कुदरत अपना गुस्सा कुछ हल्का कर लेगी। हर बार ऐसा ही तो होता रहा है।
लेकिन, इस बार कुदरत नाराज़ थी, बहुत नाराज़।
अनहोनी ने दरवाज़ों पर दस्तक देना शुरु कर दी। 15 अगस्त की सुबह तो पंपा नदी के नजदीकी मकानों में पानी दाखिल होने लगा। भोर में 4 बजते-बजते पानी घरों में घुस चुका था। फिर भी, सभी ने सोचा, कुछ देर की बात है, पानी घट जाएगा। पहले पंपा में बाढ़ आई भी तो नहीं थी कभी। दक्षिणी तट पर बसे अलापुज़ा में तो बाढ़ आने का अच्छा खासा इतिहास है, लेकिन केरल के दक्षिणी हिस्से बाढ़ से महफूज़ ही रहे हैं सदा। पुल्लाड, कोझीचेरी, रनी, इडुक्की और मुन्नार, न तो मैदानी इलाके और न ही ऊंचाई वाले इलाकों में कभी बाढ़ आई ही नहीं।
बारिश 14 की रात में शुरु हुई थी। यह वैसी नहीं थी, जैसी हम दिल्ली या देश के दूसरे हिस्सों में देखते हैं। अतिश्योक्ति न समझा जाए, तो कहना होगा मानों बाल्टियां भर-भरकर जैसे कोई ऊपर से पानी फेंक रहा था। अगले 48 घंटे ऐसी ही टूटकर बारिश होती रही।
15 अगस्त को तो पहाड़ी इलाके तक जाने वाले रास्ते बाढ़ से घिर चुके थे। कई जगह से जमीन खिसकने की खबरें आने लगीं। छोटी-छोटी नहरें-नदियां लबालब भर कर बाहर बहने लगीं। तब भी नहीं लगा कि पानी घरों में घुस जाएगा। क्या बच्चे, क्या बड़े, सबके सब पानी के इस खेल को देखने उमड़ से पड़े। किसी ने इससे पहले पानी के ऐसे बहाव को पहले नहीं देखा था जिससे समझ आता कि यह बहाव अपने साथ किन मंजरों को लेकर चला आ रहा है। पानी बढ़ता गया, घरों में आ गया, सड़कें-रास्ते बंद हो गए। लोगों ने अपना साजोसामान ऊपरी मंजिलों पर शिफ्ट कर दिया। उन्हें अब भी लगता था कि जल्द ही पानी घटेगा, हालांकि 24 घंटे से लगातार बारिश हो रही थी।
16 अगस्त होते-होते केरल के दूसरे हिस्सों से तबाही की खबरें आने लगीं। अलुवा करीब-करीब डूब चुका था। आमतौर पर मामूली बारिश का साक्षी रहने वाला थिरुवनंतपुरम बाढ़ की चपेट में था। केरल का सबसे गर्म और गंदा इलाका पलक्कड पूरी तरह डूबा हुआ था। कन्नूर और मल्प्पुरम का राज्य के बाकी हिस्सों से संपर्क टूट गया। यहां कई इलाकों में लैंडस्लाइड हुआ और लोगों की जानें गईं। कन्नूर से आने वाली लैंडस्लाइड की तस्वीरों ने सबको दहला दिया। कोझीकोड भी गहरे पानी में नजर आने लगा। इडुक्की, मुन्नार और अटापाडी जैसे पहाड़ी इलाके भी कट गए, एकदम अलग-थलग पड़ गए। भूस्खलन ने सड़कों को तबाह कर दिया था और कोई रास्ता ही नहीं था वहां पहुंचने का।
तमिलनाडु के मुल्लापेरियार बांध से पानी नहीं छोड़ा जा रहा था, इसले पेरियार भी बाढ़ से घिर गया। नतीजा यह हुआ कि कोच्चि एयरपोर्ट और अलुवा पूरी तरह डूबे दिखने लगे। कभी-कभी ही बंद होने वाला कोच्चि एयरपोर्ट अब 26 अगस्त तक बंद रहेगा। अब उनके मुंह भी बंद हो गए थे, जो मानते थे कि ऐसा तो होता ही है।
इस बीच खबर आई कि कोच्चि के नजदीक मुवाटुपुजा बाढ़ में घिरा हुआ है, मीनाचिल नदी के किनारे बसा पाला पानी में है और यहां के लोकप्रिय विधायक के एम मनी का कोई अता-पता नहीं है।
करीब-करीब सभी नेता जहां तक संभव था बाढ़ में घिरे लोगों की मदद कर रहे थे, उन्हें राहत भिजवा रहे थे। यहां राजनीतिक फायदे की बात ही नहीं थी। लेकिन हां कुछ अपवाद थे। सबसे पहले मुद्दा उठाया वी एस अच्युतानंदन और कांग्रस नेता रमेश चेन्निथला ने। दोनों ने राज्य सरकार के नाकारेपन की बात की।
जल्द ही यह खबर भी आ गई कि अलापुजा जिले का चेंगानुर और वेनिकुलम, कोझेनचेरी, पल्लाड और नेल्लाड पंपा नदी के पानी में घिर चुके हैं। फरवरी-मार्च में तो पंपा नदी सूखी रहती है, इस हद तक कि यहां तो कार्यक्रम भी होते हैं। और अब वही नदी बाढ़ की विभीषिका लिए अपने तटबंध तोड़ चुकी थी। यह वह मौका था जब लोगों को लगा कि बारिश रुकेगी नहीं और अगर उन्होंने घर नहीं छोड़ा तो सब डूब जाएंगे।
मेरे ज्यादातर रिश्तेदारों के घर बाढ़ में घिर चुके थे। कुछ ने समझदारी दिखाई और वक्त रहते घरों से निकल गए। लेकिन काफी उस वक्त तक इंतज़ार करते रहे, जब तक कि पानी उनके सीनों तक नहीं पहुंच गया। गाड़ियां, जानवर तब तक किसी काम के नहीं रह गए थे। जानवर या तो मर गए थे या बह गए थे, गाड़ियां भी अपनी जगह छोड़कर तैर रही थीं।
हां, कुछेक जगहें थीं, जो बाढ़ से बची हुई थीं, लेकिन वह सिर्फ जमीनें थीं।
कई स्कूल-कॉलेजों में छात्र फंसे हुए थे, अस्पतालों में मरीज फंसे थे। भोजन खत्म होने लगा था, बिजली भी जा चुकी थी, और पानी, वह तो सिर्फ बह रहा था, डरा रहा था। अस्पतालों में वेंटिलेटर बंद करना पड़े थे। सभी मोबाइल नेटवर्क नाकाम हो चुके थे। हां, परंपरागत बीएसएनएल जरूर काम कर रहा था। लेकिन लोगों को फोन लग नहीं रहे थे। जब लोग अपने माता-पिता, भाई-बहनों, रिश्तेदोरों, पड़ोसियों की खैर-खबर नहीं ले पाए, तो घबराहट बढ़ने लगी। हां, कुछेक न्यूज चैनल इमरजेंसी फोन नंबर जरूर दिखा रहे थे, जिससे लोगों को कुछ राहत मिल रही थी।
16 अगस्त की शाम भी भारी बारिश के बीच ही हुई। बारिश की तड़तड़ाहट के बीच हम सोने चले गए। लेकिन, 17 अगस्त की सुबह कुछ खुशगवार नजर आई। बारिश थम चुकी थी। इडुक्की बांध के साथ ही केरल के कुछ और हिस्सों में बारिश थमने की खबरें मिलीं। पथानमथिट्टा अब भी पानी से घिरा हुआ था, लेकिन हां कुछ राहत जरूर दिख रही थी।
लेकिन, यह अहसास अब दिल में घर करने लगा था कि बिजली, पानी, मोबाइल नेटवर्क, सब बंद है। केरल के बाकी हिस्सों में क्या हालात हैं, पता कैसे चलेगा। वे दुकानें भी खाली हो चुकी थीं, जिन पर कभी-कभार ही खरीदारी होती थी। मेडिकल स्टोर भी बंद थे। राहत शिविरों में लोगों को तादाद बढ़ती जा रही थी। लेकिन कहीं-कहीं पानी नहीं था। हां, खाना सबको मिल रहा था। शौच की व्यवस्था भी सही नहीं थी।
इस सबके बीच, सैन्य बलों की मदद से सरकारी सहायता पहुंचाई जा रही थी। केरल में पिछले करीब दो महीने से लगातार बारिश हो रही है। इस साल यहां 257 फीसदी अधिक बारिश हुई। लेकिन 9 अगस्त और 15 अगस्त की बारिश तो मानो आसमान ही टूट पड़ा था। इन दो दिनों में 352 एमएम बारिश हुई, जबकि आमतौर पर इन तारीखों पर 98 एमएम के आसपास बारिश होती रही है।
फंसे लोगों को निकालने, राहत पहुंचाने के लिए हैलीकॉप्टर, मेकेनाइज़्ड बोट आदि लगाए गए। मछुआरों ने भी मदद में हाथ बंटाया। पुलिस वाले और सरकारी अफसर-कर्मचारी बिना रुके मदद में जुटे रहे। फिर भी सब जगह राहत और मदद नहीं पहुंच पा रही थी। आम लोग भी हाथ बंटा रहे हैं।
इस सबके बीच केंद्र सरकार सिर्फ बयानबाज़ी ही करती नजर आई। इसके चलते मुख्यमंत्री पी विजयन को आम लोगों से मदद की गुहार करनी पड़ी। सिर्फ समझने के लिए यह जान लेना जरूरी है कि केंद्र सरकार एक प्रतिमा पर 3000 करोड़ खर्च कर रही है, जबकि केरल के लिए पहले 100 करोड़ और फिर 500 करोड़ की राहत का ऐलान किया।
मौसम विभाग का कहना है कि रविवार तक बारिश थम जाएगी। लेकिन इससे मुसीबतें कम नहीं होंगी। बल्कि और मुसीबतें सामने आएंगी। बारिश रुकने पर भी अलापुजा बाढ़ से घिरा रहेगा, वहां महीनों तक किसी राहत की उम्मीद नहीं दिखती। इसके साथ ही शुरु होगा पानी से होने वाली बीमारियों का कहर, जिनमें हैजा, डेंगू और चिकनगुनिया भी हैं। उन लोगों को राहत और मुआवज़ा देना होगा, जिनका सबकुछ इस प्रलय में तबाह हो गया है। इस सबके बीच कम से कम 6 महीने लग जाएंगे, जब केरल के हालात सामान्य कहे जा सकेंगे।
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Published: 18 Aug 2018, 4:25 PM