हरियाणा के गोहाना से ग्राउंड रिपोर्ट: बीजेपी का जाटलैंड में संपूर्ण तौर पर कमल खिलाने का सपना कभी पूरा नहीं हुआ!

गोहाना में बेरोजगारी, किसान आंदोलन, महंगाई, अग्निवीर, ओेपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) और बीजेपी की सरकार में हर वर्ग पर बरसाई गई लाठियां जैसे सभी मुद्दे हैं।

फोटो: धीरेंद्र अवस्थी
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा के जाट लैंड की धमक केंद्र और राज्य की सत्ता ने पिछले 5 साल में खूब महसूस की है। अपने हक-हकूक के लिए जरूरत पड़े तो संघर्ष की इंतहा तक जाने से भी यह धरती गुरेज नहीं करती। अब बारी विधानसभा चुनाव की है। एक नई धमक और बयार इस वीर भूमि में महसूस हो रही है। यही वजह है कि जाटलैंड के नर्व सेंटर सोनीपत जिले के गोहाना में सियासी तपिश चरम पर है। शहर में घूमते प्रचार वाहन और उनमें लगे लाऊड स्पीकरों का शोर कानों को शून्य पर करने की स्थिति तक जा रहा है। गोहाना की अहमियत का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाट लैंड में पहली रैली यहीं की है।

भारतीय जनता पार्टी का जाट लैंड में विपक्ष का सफाया कर संपूर्ण तौर पर यहां कमल खिलाने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया। इस बार तो बीजेपी अपने इस सपने से और दूर जाती दिख रही है। इस भूमि की तासीर ही कुछ ऐसी है कि सत्ता की अकड़ यहां कभी बर्दाश्त नहीं की जाती। इस बात को बीजेपी शायद कभी समझ नहीं पाई। गोहाना में भी बड़ी शिद्दत से इस बात की तस्दीक होती है। बेरोजगारी, किसान आंदोलन, महंगाई, अग्निवीर, ओेपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) और बीजेपी की सरकार में हर वर्ग पर बरसाई गई लाठियां जैसे सभी मुद्दे यहां हैं। लेकिन असलियत में अंत में बात आकर अटक जाती है जाति पर। इससे भी आगे बात करो तो सरकार की पिछले 10 साल में रही अकड़ (गर्दन में सरिया) इस बार निकालने की बात लोग करते हैं।

हरियाणा के गोहाना से ग्राउंड रिपोर्ट: बीजेपी का जाटलैंड में संपूर्ण तौर पर कमल खिलाने का सपना कभी पूरा नहीं हुआ!

गोहाना शहर में एक मिठाई की दुकान चला रहे और अमेरिका की कंपनी में वर्क फ्रॉम होम कर रहे युवा वरुण अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि चुनाव के पहले तो इतने मुद्दे होते हैं, लेकिन चुनाव आते ही पता नहीं क्या हो जाता है कि बात जाति पर आकर अटक जाती है। पूरा चुनाव जाति पर आ गया है।

अर्बन और रूरल डिवाइड की बात करते हुए वरुण कहते हैं कि गांवों में कांग्रेस का समर्थन ज्यादा है, जबकि शहर में बीजेपी पा का। लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा से रोहतक में हारने वाले अरविंद शर्मा को यहां से उतारकर बीजेपी ने गैर जाट कार्ड खेला है। अरविंद शर्मा का बाहरी होना भी यहां एक मुद्दा है। कांग्रेस प्रत्याशी जगबीर सिंह मलिक स्थानीय हैं। आसानी से उन तक पहुंच और लोगों से उनके व्यक्तिगत संबंध उनके पक्ष में जा रहे हैं।


गोहाना के मुख्य बाजार में जूस की दुकान चला रहे युवा कपिल सरदाना कहते हैं कि नौकरी मिलने की उम्मीद टूटी तो थक कर अपनी दुकान का ही विकल्प था। उनके पिता स्थानीय और बाहरी प्रत्याशी के फायदे और नुकसान की बात पर मोहर लगाते हैं। कपड़े की दुकान चला रहे युवा रमन कहते हैं कि ऑनलाइन बिजनेस ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। कम से कम 25 प्रतिशत नुकसान इससे हो चुका हैं। चुनावी सवाल पर वह कहते हैं कि समर्थक तो बीजेपी का हूं, लेकिन सरकार कांग्रेस की आ रही है। पास में ही आजादी से पहले की अपनी दुकान पर बैठे सतीश कहते हैं कि कोरोना के बाद धंधा उठा नहीं। कोविड से पहले के मुकाबले महज 50 प्रतिशत धंधा बचा है। 8 लोगों का परिवार है। महंगाई बढ़ी है, लेकिन आय कम हो गई है। एक बात तो साफ समझ में आती है कि हर व्यक्ति दिल में दर्द दबाए बैठा है। शिकायत उसकी सरकार से ही है। बस, किन्हीं वजहों से उसने खामोशी ओढ़ रखी है।

 72 वर्षीय घड़ीसाज जय भगवान मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मानते हैं। बीजेपी की सरकार के राज में पनपे एक नए धंधे से कभी उसके बड़े समर्थक रहे कारोबारी वर्ग में गहरा आक्रोश है। इस नए धंधे का नाम है रंगदारी। इस नए धंधे का ग्रोथ रेट इतना जबर्दस्त है कि जीडीपी का आविष्कार करने वाला भी शर्मा जाए। दिन दूना रात चौगुणा हरियाणा में यह तरक्की की राह पर है। इस धंधे की तरक्की का ट्रिगर प्वाइंट गोहाना ही बना था। पूरे हरियाणा में लोगों के मुंह में अपनी 300-300 ग्राम की एक-एक जलेबी की मिठास घोलने वाले गोहाना के मातूराम हलवाई की दुकान पर दिन-दहाड़े बदमाशों ने फायरिंग की थी। मकसद, रंगदारी मांगना था। मातूराम हलवाई हरियाणा में इतना मशहूर हैं कि इस वारदात से सभी चकित थे। इस घटना की गूंज विधानसभा तक सुनाई दी थी। उस वक्त यह बात निकल कर आई थी कि गोहाना में शायद ही कोई मध्यम दर्जे का कारोबारी भी बचा होगा, जिसके यहां रंगदारी की कॉल न आई हो। कॉल करने वाले इतने बेखौफ होते थे कि वह कॉल होल्ड कर कहते थे कि बड़े से बड़े पुलिस अधिकारी से मेरी बात करवा दो। कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हालात अभी भी संभले नहीं हैं। रंगदारी की कॉल अभी भी रुकी नहीं हैं। लोगों को लगता है कि सरकार को बताएं तो मुश्किल न बताएं तो मुश्किल। लोग कहते हैं कि सरकार चाहे तो गुंडा तत्व एक दिन में खत्म हो जाएं, लेकिन वह चाहती ही नहीं है।

नाम न छापने की शर्त पर गोहाना में कई लोगों ने यह बात कही कि पता नहीं कब गोहाना ही छोड़ना पड़ जाए। मातूराम हलवाई के पोते नीरज गुप्ता कहते हैं कि हर दिन किसी अज्ञात भय के साये तले गुजरता है। गोहाना शहर में कारोबारी वर्ग के बीच यह बड़ा चुनावी मुद्दा है। कई लोग दावा करते हैं कि 50 फीसदी तक बनिया और पंजाबी समाज के लोग इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ जा सकते हैं। बस, वह डर कर चुप बैठे हैं।

गोहाना की नई अनाज मंडी में मिले पंजाबी समाज के तिलक राज कहने लगे पूरा चुनाव जाति पर आ गया है। मंडी में चाय की दुकान चला रहे गढ़ी गांव के नरेंद्र कहने लगे कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला कड़ा है। वहीं, बरौदा के सतीश ने एक नया चैप्टर खोल दिया। वह कहने लगे कि बीजेपी प्रत्याशी अरविंद शर्मा ने पिछले चुनाव का कई गाड़ियों का भुगतान नहीं किया है। वह उन्हें ढूंढ रहे हैं।


गोहाना में एक और दर्द सामने आया। यह दर्द था मारवाड़ी और बागड़ी जैसी घुमंतू जातियों का। इन जातियों के युवा और महिलाएं कहती हैं कि पुश्तें गुजर गईं, लेकिन एक छत नहीं नसीब हुई। इस पूरे समाज का कहना है कि हमें कुछ नहीं चाहिए। बस, एक छत की व्यवस्था कर दो। बेशक, 30 गज का ही प्लाट सरकार दे दे। गोहाना की कृष्णा कालोनी में इनकी बस्ती है। ये अपने आप को राणा प्रताप का वंशज मानते हैं और बेहद स्वाभिमानी होते हैं। इन लोगों के बीच पहुंच कांग्रेस के 6000 रुपये मासिक पेंशन के वादे की अहमियत समझ में आई। इनके चेहरों की चमक यह बता रही थी कि इस वादे ने उनमें जिंदगी की एक नई उम्मीद जगा दी है। तमाम महिलाओं ने शिकायत की कि उन्हें राशन तक नहीं मिलता। घुमंतू जातियों की पूरी बस्ती के प्रधान संदल का कहना था कि 6 महीने से उन्हें भी राशन नहीं मिल रहा है।

सपना, अमित, सरोज, पायल, हवा सिंह और 70 वर्षीय सरूपी सिंह के एक जैसे सवाल थे। युवा शाहिल और मोहित कहने लगे कि मजबूरी में पढ़ाई छोड़ ऑटो चलाने लगे। पूरी बस्ती का यह भी दर्द था कि पिछले पूरे दस साल की सरकार में कोई उनका हाल जानने नहीं आया। सभी के अपने-अपने मुद्दे हैं। शहर के मुद्दे गावों से अलग हैं। गांवों में सुर सरकार के खिलाफ अधिक तेज हैं। किसान आंदोलन से लेकर अग्निवीर तक का प्रभाव गांवों में है। इस पूरे क्षेत्र में सुबह-शाम बच्चे सेना में भर्ती के लिए बड़ी तादाद में सड़कों में दौड़ते दिख जाते थे। आज यह संख्या नगण्य है। यही वजह है कि  25 सितंबर को गोहाना में जाट लैंड के 22 विस प्रत्याशियों के लिए पीएम मोदी ने सभा की, लेकिन इसके असर पर प्रश्नचिन्ह हैं।  

गोहाना के समीकरण                                          

कांग्रेस ने 5 बार के विधायक जगबीर सिंह मलिक को यहां से उम्मीदवार बनाया है, जबकि 4 बार सांसद रह चुके और 2024 लोस चुनाव रोहतक में दीपेंद्र हुड्डा से हारने वाले डा. अरविंद शर्मा को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया है। अरविंद शर्मा तीसरी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। बीएसपी के सीएम कैंडिडेट भी रहे हैं, लेकिन कभी विधानसभा नहीं पहुंच पाए। गोहाना में बीजेपी उम्मीदवार के सामने कई चुनौतियां हैं। एक तो इस विस क्षेत्र में बीजेपी कभी चुनावी मुकाबले में नहीं रही। दूसरा यह जाट बाहुल्य क्षेत्र है। किसान आंदोलन के बाद भारी नाराजगी है। तीसरा उन पर बाहरी प्रत्याशी का ठप्पा है। बीजेपी के स्थानीय नेता और पदाधिकारी बाहरी को टिकट देने का विरोध कर रहे थे। स्थानीय नेता दिल्ली तक जाकर अरविंद शर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर चुके हैं।

गोहाना विस में हुए 14  चुनावों (उपचुनाव समेत) में से 8 चुनाव यहां कांग्रेस के पक्ष में गए हैं। कांग्रेस के जगबीर सिंह मलिक यहां से सिटिंग एमएलए हैं। जेजेपी ने कुलदीप मलिक, आप ने शिव कुमार रंगीला और इनेलो गठबंधन से बीएसपी ने दिनेश मलिक को चुनाव मैदान में उतारा है।


गोहाना विधान सभा क्षेत्र में कुल 1 लाख 94 हजार मतदाता हैं। इनमें तकरीबन 92 हजार वोट जाट समुदाय और 1 लाख वोट नॉन जाट समुदाय के हैं। पूरे क्षेत्र में एक भी ऐसा बड़ा गांव नहीं है, जहां ब्राह्मण समाज के 4-5 हजार वोट हों। गोहाना में ब्राह्मण और इससे जुड़े अन्य वर्गों की वोट का आंकड़ा तकरीबन 10 हजार के आसपास माना जाता है। एससी और बीसी समाज के करीब 65-70 हजार वोट हैं। यहां कांग्रेस-बीजेपी में सीधा मुकाबला है। शेष दलों की चर्चा भी कोई नहीं कर रहा।

जाट वोटों में मलिक गोत्र का अच्छा प्रभाव है। जगबीर मलिक लगातार 4  चुनाव जीत चुके हैं। बीजेपी के खिलाफ गहरी एंटी इनकंबेंसी है। कांग्रेस की सरकार बनने की चर्चा लोग खुलकर कर रहे हैं। गोहाना शहर का वोट बीजेपी के पक्ष में जाता रहा है। एक बार जरूर बीजेपी शहर में पिछड़ी है। इस बार भी मुद्दों का पिटारा है। बीजेपी गोहाना से कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकी है। 1967 और 1968  में ब्राम्हण समाज से रामधारी गौड यहां से चुनाव जीते थे। इसके बाद से यहां ब्राह्मण समाज से कोई विधायक नहीं रहा है। 1967 से अब तक 10 बार जाट समाज से ही विधायक बना है।

गोहाना को जिला बनाने की मांग लंबे समय से हा रही है। बाइपास की घोषणा 2015 में तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर ने की थी, लेकिन आज तक कुछ नहीं है। रेलवे लाइन फाटक मुक्त शहर की मांग है।