भदौड़ से ग्राउंड रिपोर्ट: चन्नी का सीएम फेस भारी पड़ा तो मालवा में ढह जाएगा केजरीवाल के सपनों का महल
पिछले 2017 के विस चुनाव में बरनाला जिले की तीनों विधानसभा सीटें अपने कब्जे में करने वाली आम आदमी पार्टी इस बार कड़े मुकाबले में फंस गई है। चन्नी के नाम पर बेहद पिछड़े इलाके भदौड़ के लोगों की कुलांचें मार रही आकाक्षाएं केजरीवाल के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बनती दिख रही हैं।
मुख्यमंत्री चरण जीत सिंह चन्नी का चेहरा चला तो मालवा के दम पर पंजाब की सत्ता का सपना देख रहे केजरीवाल का महल ध्वस्त हो जाएगा। बरनाला जिले की भदौड़ आरक्षित सीट से चन्नी को उतार कर कांग्रेस ने ऐसे ही ट्रंप कार्ड नहीं चला है। यह जमीन पर चलता भी दिख रहा है। पिछले 2017 के विस चुनाव में बरनाला जिले की तीनों विधानसभा सीटें अपने कब्जे में करने वाली आम आदमी पार्टी इस बार कड़े मुकाबले में फंस गई है। चन्नी के नाम पर बेहद पिछड़े इलाके भदौड़ के लोगों की कुलांचें मार रही आकाक्षाएं केजरीवाल के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बनती दिख रही हैं।
बरनाला रणनीतिक लिहाज से मालवा का बेहद अहम जिला है। इसको ऐसे समझ सकते हैं कि पंजाब के मालवा क्षेत्र के पांच जिलों की सीमाएं बरनाला को छूती हैं। ये जिले हैं बठिंडा, लुधियाना, मानसा, मोगा और संगरूर। इस तरह बरनाला समेत छह जिले मिलाकर तीन दर्जन से अधिक विस सीटें यहां से आती हैं। इस लिहाज से हम बरनाला को नर्व सेंटर कह सकते हैं। 69 सीटों वाले मालवा की इतनों सीटों वाला इलाका किसी भी पार्टी के लिए सत्ता में पहुंचने की सीढ़ी हो सकता है। बरनाला कांग्रेस की कमजोर कड़ी था। आम आदमी पार्टी ने पिछले तीन चुनाव 2014, 2017 और 2019 में इस इलाके में अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। बरनाला से जुड़ा संगरूर आप के सीएम चेहरा भगवंत मान का गढ़ भी है।
चमकौर साहिब के अलावा भदौड़ से भी चन्नी को उतारकर कांग्रेस ने अपने इस कदम से आप की राह मुश्किल कर दी है। चन्नी के यहां से उतरने से न सिर्फ बरनाला बल्कि आसपास के जिलों में भी इसका असर होने की अपेक्षा कांग्रेस की है। जाहिर है यदि कांग्रेस का सीएम फेस चला तो चंडीगढ़ दूर नहीं होगा। जमीन में इसका कुछ करंट दिख भी रहा है। भदौड़ के बाशिंदों के सपने देख इसकी तस्दीक हो रही है। चन्नी के सीएम बनने की स्थिति में उनकी ख्वाहिशों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि एक मुख्यमंत्री ही इसे पूरी कर सकता है। यहां लोगों से बात करते ही उनकी उम्मीदों के पंख लग रहे हैं।
गगनप्रीत सिंह, मार्केट कमेटी सदस्य साधुराम, भदौड़ के पूर्व कौसलर अशोक वर्मा, लेबर यूनियन प्रधान राम सिंह, सुरजीत सिंह नंबरदार और गोगी सिंह का कहना था कि यहां हॉस्पिटल है तो डॉक्टर नहीं है। अस्पताल में दवाएं नहीं हैं। यहां कोई इंडस्ट्री तो है नहीं, लिहाजा रोजगार की हालत बेहद खराब है। गांवों में यहां बैंक नहीं हैं। गांवों में भी डिस्पेंसरी है, लेकिन वहां भी डॉक्टर नहीं है। अस्पताल की इमारत तक जर्जर है। गांवों में वाटर सप्लाई में लीकेज है, जिससे पानी में रेत मिल जाती है। वही पानी लोग पीने के लिए मजबूर होते हैं।
भदौड़ में गवर्नमेंट डिग्री कालेज और मेडिकल कालेज होना चाहिए। यहां बड़ी तहसील होनी चाहिए, जिसमें एसडीएम बैठे। एसडीएम के नहीं बैठने से तपा जाना पड़ता है। इतनी लंबी फेहरिस्त होने का मतलब है कि मुख्यमंत्री चेहरे का कार्ड काम कर रहा है। भदौड़ मालवा का वह इलाका है, जो तुलनात्मक नजरिये से आज भी पिछड़ा है। बरनाला हाईवे से निकल बेहद तंग सड़कों से गुजरते हुए भदौड़ पहुंचने पर इस बात का अहसास हो जाता है कि यहां के लोगों को एक बड़े चेहरे की दरकार है। इसीलिए लोगों ने यह बात भी जाहिर कर दी कि चन्नी मुख्यमंत्री बनेंगे तो ही इस क्षेत्र की यह उम्मीदें पूरी होंगी। इस हल्के में भदौड़ और तपा दो नगर कौंसिल हैं। जमीन पर कुछ और फैक्टर भी काम कर रहे हैं।
लोगों की बीजेपी से नाराजगी है। गगन प्रीत का कहना था कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में सात सौ किसान शहीद हो गए। कानून तो वापस हो गए, लेकिन फसलों का एमएसपी नहीं मिला। महंगाई के हाल इतने खराब हैं कि डीजल, पेट्रोल, सिलेंडर व सरसों का तेल सीमा से बाहर महंगे हो गए। लोग जीएसटी को महंगाई की एक बड़ी वजह मानते हैं। सरकारी मुलाजिमों के सवाल पर लोग कहने लगे कि वह अच्छी सैलरी पाते हैं। काम के नाम पर कुछ नहीं करते। इसके बाद भी सरकार को ब्लैकमेल और करते हैं।
अकाली दल की बात करने पर लोगों का कहना था कि वह तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ रही है। बेअदबी और नशा अकालियों के खिलाफ एक मुद्दा है। कैप्टन अमरिंदर के सवाल पर लोगों का कहना था कि उन्होंने कोई काम नहीं किया। नौकरी के इंतजार में लोगों की उम्र निकल गई। भदौड़ बाजार में ही मिले भोला सिंह, मेजर सिंह और धन्ना सिंह का कहना था कि चन्नी ने तीन महीने में ही सभी का फायदा करवाया। कोई बड़ा-छोटा नहीं देखा। बिजली का बिल दो हजार आता था। वह माफ हो गया। भोला सिंह ने कहा कि कैप्टन से तो लोग बहुत नाराज हैं। भदौड़ मुख्य अड्डे पर जूस की दुकान चला रहे राजकुमार का कहना था कि मुकाबला तो यहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच ही है।
इसी बीच वहां आए गुरमेल और रिपिंदर का कहना था कि चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है चन्नी का जोर बढ़ रहा है। हालांकि, मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच काफी कड़ा है। अकालियों के सवाल पर कहने लगे कि वह तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ रहे हैं। किसानों के बने संयुक्त समाज मोर्चा के सवाल पर गुरमेल सिंह का कहना था कि किसानों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था। किसान नेताओं का सम्मान उनकी उसी भूमिका में है। लोग उनको सियासत में नहीं देखना चाहते। कैप्टन अमरिंदर का तो लोग नाम ही सुनने के लिए तैयार नहीं थे। यहां एक बात बिल्कुल साफ हो गई कि 22 किसान संगठनों को मिलाकर बना संयुक्त समाज मोर्चा वोट कटवा की भूमिका में ही ज्यादा नजर आ रहा है। दूसरी बात अकाली दल अपनी प्रासंगिकता खोता दिख रहा है।
भदौड़ हल्का 1967 में बना था। 12 बार चुनाव हो चुके हैं। यहां सबसे ज्यादा 7 बार अकाली दल जीता है। दो बार कांग्रेस और 1-1 बार आप, बीएसपी व सीपीआई ने जीत दर्ज की है। आम आदमी पार्टी ने भदौड़ से लाभ सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जबकि शिरोमणि अकाली दल ने सतनाम सिंह को उतारा है। 2014 में भदौड़ सीट से आप के टिकट पर जीते पीरमल सिंह भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, जिसका फायदा भी कांग्रेस को हो सकता है। 2017 में आप प्रत्याशी पीरमल सिंह ने अकाली दल के बलवीर घुन्नस को 20784 मतों से हराया था। यहां के जातीय समीकरण भी चन्नी के लिए मुफीद हैं। यहां कुल मतदाता 1 लाख 57 हजार 324 हैं। इसमें से 60 हजार के लगभग एससी भाईचारे के वोट हैं। इनमें आधे से अधिक रामदासिया सिख हैं। लगभग 40 हजार जट्ट सिख वोट हैं। बाकी वोट हिंदू व ओबीसी के हैं। करीब 56 गांवों वाले भदौ़ड़ विस क्षेत्र में ग्रामीण मतदाता बेहद अहम हैं।
भदौड़ से 2014 लोस चुनाव, फिर 2017 विधानसभा और 2019 में फिर लोकसभा चुनाव में आप को यहां से बढ़त मिली थी। चन्नी फैक्टर ने बरनाला जिले की सभी सीटों पर मुकाबले को कैसे टफ बना दिया है यह महलकलां हल्के के गांव चुंग की चौपाल पर बैठे लोगों ने भी जाहिर कर दिया। यहां बैठे गुरप्रीत सिंह, संदीप, करनैल और नाजर सिंह कहने लगे कि चन्नी को तो मौका नहीं मिला। फिर भी बिजली बिल माफ हुए तो हमें सीधे फायदा हुआ। संदीप ने बताया कि यहां मौजूद डिस्पेंसरी बंद है। स्कूल महज पांचवीं तक है। तेल महंगा होने से लोगों की कमर टूट गई है। रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। मुख्यमंत्री को इन पर काम करना चाहिए। संदीप ने बताया कि तकरीबन 1200 मतदाताओं वाले इस गांव में 300 के करीब दलित भाईचारे के लोग हैं। किसानों की पार्टी की कोई चर्चा होने की बात संदीप ने नकारी। महलकलां भी आरक्षित सीट है। 2012 में पहली बार यह हलका बना था। 2012 में कांग्रेस, 2017 में आप यहां से जीती थी। यही हाल बरनाला विस सीट का भी दिखा। बरनाला हाईवे पर ढाबा चला रहे अच्छेराम ने बताया कि मुकाबला यहां कड़ा है। लोग कांग्रेस और आप की ही ज्यादा चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस ने बरनाला से पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल के बेटे मनीष बंसल को उतारकर मुकाबले को कड़ा बना दिया है।
बरनाला एक ऐसा शहर है, जहां हिंदू आबादी भी अच्छी है। यहां से आप के मौजूदा विधायक मीत हेयर, शिअद के पूर्व विधायक मलकीत कीतू के बेटे कुलवंत कांता, कांग्रेस के मनीष बंसल व भाजपा के धीरज दधाहूर के बीच मुकाबला है। यहां से संयुक्त समाज मोर्चा ने आप के पुराने वर्कर जसवीर खेड़ी को उतार दिया है। किसानों का बड़ा समूह उनके साथ हैं। इससे आप के लिए और मुश्किल हो गई है। मालवा से आप का प्रभाव कम करने के लिए ही कांग्रेस ने चन्नी को यहां से उतारा है। चन्नी यहां के लोगों को कह रहे हैं कि भदौड़ से सीएम जाएगा तो यह क्षेत्र वीआईपी बन जाएगा। राज्य और राजधानी में सम्मान मिलेगा। लोगों के बीच इसकी चर्चा भी काफी है। चन्नी इस आरक्षित सीट के साथ मालवा में प्रभाव छोड़ते भी नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में मालवा बेल्ट में कुल 69 सीटों में से 40 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि आप के खाते में 18 सीटें गई थीं। मालवा क्षेत्र के 69 में से 18 सीट आरक्षित हैं। इनमें से 2017 में कांग्रेस और आप दोनों को 9-9 सीटें मिली थीं।
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