दिल्ली सरकार का ग्रीन बजट और प्रदूषण ही प्रदूषण
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर गंभीर होने पर सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल, पड़ोसी राज्यों में फसल अपशिस्ट जलाए जाने को कारण बताते हैं और जब कुछ करना हो, तो ऑड-इवन से आगे उन्हें कुछ समझ में नहीं आता।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार ने 22 मार्च को जब दिल्ली का बजट पेश किया तो इसका प्रचार पहले ग्रीन बजट के तौर पर किया गया। इसमें परिवहन, विद्युत, पर्यावरण और पीडब्लूडी से संबंधित 26 कार्यक्रमों का प्रावधान किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे दिल्ली के नागरिकों को वायु प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी। बारीकी से देखने पर यह तथाकथित ग्रीन बजट महज एक दिखावा से अधिक कुछ नहीं है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण ही एक समस्या है, ऐसा नहीं है। यहां जल प्रदूषण, पानी की कमी, कचरे का प्रबंधन, शोर और दूसरी अनेक समस्याएं हैं और ये सभी समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हैं। इन पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। यमुना के प्रदूषण पर ग्रीन ट्रिब्यूनल लगातार दिल्ली सरकार को फटकार लगाता रहा है। शोर से सुनने की क्षमता खोते लोगों की सबसे बड़ी संख्या दिल्ली में है और कचरे के सबसे ऊंचे पहाड़ भी यहीं हैं।
दिल्ली में 16 किलोमीटर लंबे साइकिल ट्रैक पर सौर लैंप लगाए जाएंगे। सीएनजी कारों के पंजीकरण पर 50 प्रतिशत छूट दी जाएगी। लगभग 1000 सरकारी भवनों में प्रदूषण का हाल बताने वाले डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएंगे। रेस्त्रां को कोयला छोड़ बिजली या गैस से भट्टी चलाने पर आर्थिक सहायता दी जाएगी। वायु प्रदूषण के स्त्रोतों का पता करने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की सहायता से अध्ययन किया जाएगा और वायु प्रदूषण स्तर के पूर्वानुमान का तरीका खोजा जाएगा। विद्युत् बसें और फीडर बसें खरीदी जाएंगी और जो उद्योग गैस का उपयोग करेंगे, उन्हें एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी।
दिल्ली के प्रदूषण की जटिलता के बीच ये सारे उपाय नाकाम ही लगते हैं। दिल्ली में जहांगीर पुरी से धीरपुर तक दलदली भूमि थी। भूमि दलदली थी, इसलिए वहां से धुल नहीं उड़ती थी। अब यह भूमि समतल कर दी गयी है और कभी निरंकारी सम्मलेन तो कभी दिल्ली सरकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। वर्तमान में भी यहां पर हज ट्रांजिट कैंप स्थापित है। जहां कभी धूल नहीं उड़ती थी, वह पूरा क्षेत्र अब हल्की हवा में भी पूरी तरह धूल से भर जाता है।
पिछले तीन-चार वर्षों से वायु प्रदूषण के लिहाज से आनंद विहार का क्षेत्र सबसे अधिक प्रदूषित रहा है, पर दिल्ली सरकार की कोई योजना यहां का प्रदूषण कम करने के लिए नहीं है। जब एक क्षेत्र का प्रदूषण कम नहीं हो रहा है तो पूरी दिल्ली में सरकार क्या करेगी, यह समझ पाना कठिन नहीं है। प्रदूषण के स्त्रोतों को पता करने की बात तो कही जा रही है, पर केजरीवाल तो ऐसे बात करते हैं, जैसे उन्हें सब पता है। जब प्रदूषण का स्तर गंभीर हो जाता है, तब मुख्यमंत्री जी पड़ोसी राज्यों में फसल अपशिस्ट जलाने को दोषी बताते हैं और जब कुछ करना होता है तब ऑड-इवन से आगे उन्हें कुछ समझ नहीं आता। ऑड-इवन लागू करना यानी वाहनों के उत्सर्जन को प्रदूषण का बड़ा स्त्रोत मानना है। पहली बार जब ऑड-इवन लागू किया गया था, तब प्रदूषण का स्तर पहले से अधिक हो गया था, पर केजरीवाल को प्रदूषण स्तर में 50 प्रतिशत की कमी नजर आ रही थी।
दिल्ली में भू-जल का दोहन अत्यधिक हो रहा है। यमुना में मिलने वाले नालों में गंदे पानी की मात्रा बढ़ रही है। तालाबों को नष्ट किया जा रहा है और कचरे को जलाया जा रहा है। दिल्ली में पानी की कमी भी हो रही है, पर इन सब समस्याओं पर सरकार का ध्यान नहीं है। यह कैसा ग्रीन बजट है जो इन सारी समस्यायों पर कुछ कहता ही नहीं है।
दिल्ली सरकार यदि दिल्ली जल बोर्ड, पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट और प्रदूषण नियंत्रण कमेटी पर अंकुश लगा दे तो बहुत सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। दिल्ली जल बोर्ड यमुना के प्रदूषण को रोकने में पूरी तरह विफल रहा है। यही नहीं तालाबों को भी नष्ट कर रहा है। धीरपुर में एक तालाब को पूरी तरह से पाट कर उसे समतल कर दिया गया। प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के अधिकारी या तो अक्षम हैं या फिर पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, तभी प्रदूषण नियंत्रित नहीं हो रहा है।
देश के किसी भी महानगर में इतनी जगह से धुआं निकलता नहीं दिखाई देता, जितना दिल्ली में सामान्य तौर पर दिखता है। पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट की परियोजनाओं के ठेकेदार आसपास की घासों और झाड़ियों को जला कर साफ करते हैं और इन परियोजनाओं में धुल नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं किया जाता।
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