पत्रकारों पर नकेल कसने के लिए ‘फेक न्यूज़’ के नाम पर जारी फरमान मोदी सरकार ने लिया वापस
केंद्र की मोदी सरकार ने पत्रकारों पर नकेल कसने और उनके सूत्रों को डराने के लिए ‘फेक न्यूज’ के नाम पर एक नया फरमान जारी किया था, जिसे उन्होंने वापस ले लिया है।
केंद्र की मोदी सरकार ने पत्रकारों पर नकेल कसने और उनके सूत्रों को डराने के लिए ‘फेक न्यूज’ के नाम पर एक नया फरमान जारी किया था, जिसे उन्होंने वापस ले लिया है।
मोदी सरकार ने पत्रकारों पर नकेल कसने या यूं कहें कि अभिव्यक्ति की आजाजी का गला घोंटने की तैयारी कर ली थी। सरकार ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए बने नियमों में बदलाव कर दिए थे। इस बदलाव के तहत फर्जी खबर लिखने पर पत्रकार की मान्यता रद्द कर दी जानी थी। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि फर्जी खबर या ‘फेक न्यूज’ चलाने वालों की मान्यता स्थाई तौर पर रद्द कर दी जा सकती है। पत्रकारों में सरकार के इस नए फरमान को लेकर जबरदस्त रोष था। पत्रकारों की कई संस्थाओं ने इस मुद्दे पर बैठक बुलाकर चर्चा करने का ऐलान किया था।
फरमान के मुताबिक फर्जी न्यूज का मामला पहली बार सामने आने पर पत्रकार की मान्यता 6 महीने के लिए रद्द की जाती, दूसरी बार में यह समयसीमा एक साल की होती और तीसरी बार मामला खुलने पर पत्रकार की मान्यता स्थाई तौर पर खत्म कर दी जाती। फर्जी खबर या ‘फेक न्यूज’ की जांच प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन करने वाला था। प्रिंट मीडिया से जुड़ी खबर की जांच प्रेस काउंसिल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जांच ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन करने वाला था।
पत्रकारों ने कहा कि सरकार का यह कदम ‘फेक न्यूज’ रोकने की कोशिश कम, बल्कि पत्रकारों के सूत्रों को डराने का इरादा ज्यादा था। पत्रकारों के सूत्रों में सरकारी अफसर, एक्टिविस्ट और अन्य लोग होते हैं। कुछ पत्रकारों का कहना था कि सरकार चाहती है कि पत्रकार अब सिर्फ सरकार और कार्पोरेट घरानों के प्रेस रिलीज की प्रकाशित करें और खोजी पत्रकारिता बंद कर दें, ताकि सरकार के किसी भी गलत फैसले और नीति के बारे में लोगों को पता न चले।
सरकार के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली। कांग्रेस ने इसे नादिरशाही फरमान कहा था।
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