अर्थव्यवस्था का खस्ता हाल, आंकड़ों की बाजीगरी कर असलियत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है सरकार
तीसरी तिमाही में सरकार ने बताया है कि विकास दर 4.7 फीसदी रही तो हम मानें कि आर्थिक हालत सुधरने के बजाए खराब ही हुए हैं। सरकार के पास इसका जवाब नहीं है। क्योंकि, सरकार वित्तीय प्रबंधन में पूरी तरह नाकाम रही है, अलबत्ता हेडलाइन प्रबंधन में इसका जोड़ नहीं मिलता।
केंद्र की मोदी सरकार के पास अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने की समझ भले ह न हो, लेकिन एक काम में उसे महारत हासिल है, और वह आंकड़ों की बाजीगरी यानी उनसे छेड़छाड़। शुक्रवार को सरकार ने विकास दर के तीसरी तिमाही के आंकड़े जारी किए र बताया कि इस तिमाही में जीडीपी 4.7 फीसदी रही। इन आंकड़ों से यह यह कन्फ्यूजन पैदा हो गया कि अर्थव्यवस्था सुधर रही है या बिगड़ रही है? लेकिन हकीकत यह है कि अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खस्ता है।
देश के आर्थिक विकास की दर 2019-20 की दूसरी तिमाही में 4.5 फीसदी थी जिसे सरकार ने अब 5.1 फीसदी कर दिया है। और अब तीसरी तिमाही में सरकार ने बताया है कि विकास दर 4.7 फीसदी रही तो हम मानें कि आर्थिक हालत सुधरने के बजाए खराब ही हुए हैं। सरकार के पास इसका जवाब नहीं है। क्योंकि, सरकार वित्तीय प्रबंधन में पूरी तरह नाकाम रही है, अलबत्ता हेडलाइन प्रबंधन में इसका जोड़ नहीं मिलता।
इन आंकड़ों पर सरकार की प्रतिक्रिया अपेक्षा के अनुरूप ही थी क्योंकि वह अब तक वही सब बोलती रही है। कुछ ‘ग्रीन शूट्स’ यानी उम्मीद की किरणें है जो सिर्फ वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को ही नजर आती हैं। वास्तविक दुनिया में कुछ भी होता रहे, वित्तमंत्री यहीं कहती रहेंगी कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन यह हकीकत है कि कम से कम 2024 तक तो हम वहां नहीं पहुंचने वाले।
शुक्रवार, 28 फरवरी को जारी हुए आंकड़े साफ संकेत दे रहे हैं कि आर्थिक अव्यवस्था का आलम है क्योंकि निजी खपत और निवेश दोनों में ही कमजोरी लगातार बनी हुई है और पहले से बुरी हालत हो गई है। यह भी असलियत है कि सरकार का अपना कर राजस्व भी सिकुड़ा है, जिसके नतीजतन आने वाले महीनों में सरकारी खर्च में और कमी देखने को मिलेगी, और इसका क्या असर होगा, आप अनुमान लगा सकते हैं।
सरकार के प्रेस सूचना विभाग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उनमें से कुछ आंकड़े तो नींद उड़ाने वाले हैं। इसमें बताया गया है कि वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में 17 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है, सीमेंट और स्टील में वृद्धि एक फीसदी से कम है और बाकी सेक्टर की हालत भी ऐसी ही है। अर्थ यह है कि अनौपचारिक क्षेत्र में मंदी का जो साया पड़ा था उसने अब धीरे-धीरे सभी क्षेत्रों को अपनी लपेट में ले लिया है।
अभी तो तीसरी तिमाही के इन आंकड़ों की गहराई से पड़ताल होनी है, लेकिन जो कुछ नजर आ रहा है उससे साफ पता चलता है कि मंदी आ चुकी है। सरकार का अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में विकास दर 5 फीसदी के आसपास रहेगी, इस तरह यह बीते 11 सालों की सबसे कम विकास दर साबित होगी। और, अगले साल की तस्वीर तो अभी से धुंधली नजर आने लगी है।
दिसंबर के आंकड़े बता ते हं कि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में सिकुड़न जारी है, हालांकि मंदी की प्रक्रिया इस क्षेत्र में थोड़ी सुस्त हुई है। और इसका कारण है इस क्षेत्र का आकार कम होना। ध्यान रहे कि अगर लगातार दो तिमाही तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र कमजोरी दिखाता है तो इसका यही मतलब है कि लोग खरीदारी नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनके पास इसके लिए पैसे ही नहीं हैं।
हां, अगर कहीं से कुछ उम्मीद है तो वह है कृषि क्षेत्र जिसने बीते साल के मुकाबले करीब 3.7 फीसदी जीवीए का योगदान दिया है। आम दिनों में यह एक अच्छी खबर हो सकती थी, लेकिन ध्यान रखना होगा कि यह सिर्फ महंगाई के दोहरे अंकों में पहुंचने का असर है। किसानों के फायदे की कीमत शहरों का मध्यवर्ग चुकाता है, और जब महंगाई गिरेगी तो कृषि क्षेत्र का क्या होगा, अंदाजा लगा सकते हैं। और फिर, असली परीक्षा तो तब होगी जब सर्दियों की फसल अगले एक दो महीनों में बाजार मे आएगी।
सरकार फिलहाल आर्थिक उभार की हेडलाइन मैन्यूफैक्चर करने की कोशिश कर रही है, यानी आंकड़ों की बाजीगरी के जरिए असली तस्वीर पर पर्दा डाल रही है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है, और एक न एक दिन देश को खुद ही असलियत सामने खड़ी नजर आएगी।
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