सुर में सुर न मिलाने वाले अफसरों से एक-एक कर बदला ले रही सरकार
सतीश चंद्र वर्मा गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। पिछले दस साल के दौरान उनकी तैनाती पूर्वोत्तर और कोयम्बटूर में रही। 12 साल तक उन्हें कोई प्रमोशन नहीं दिया गया और रिटायरमेंट से एक महीने पहले 30 अगस्त को उन्हें सेवा से हटा दिया गया।
प्रधानमंत्री अफसरों को नसीहत देते रहे हैं कि वे निडरता और निष्पक्षता के साथ काम करें। लेकिन कैसे? जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात में थे, तब जिस भी अधिकारी ने सरकार के सुर में सुर नहीं मिलाया, उसका दंड उन्होंने भोगा। कई अफसर तो अभी तक इसे झेल रहे हैं। गुजरात काडर के आईपीएस सतीश चंद्र मिश्रा ताजा मिसाल हैं। पहली कड़ी में पढ़िए किस तरह सतीश चंद्र मिश्रा को रिटायरमेंट से ऐन एक महीने पहले बरखास्त कर दिया गया। अगली कड़ी में बताएंगे अन्य अफसरों के बारे में जो बीते करीब बीस साल से इस बदले की कार्यवाही का निशाना बने हैं।
प्रोफेशनलिज्म यानी पेशेवराना अंदाज और निष्पक्षता पर प्रधानमंत्री ने जिस तरह जोर दिया है, उस पर गुजरात कैडर के आईपीएस अफसरों का एक वर्ग हैरानी में है। गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकारें उनके पीछे पड़ी रहीं और इन अधिकारियों को लगता है कि उनके साथ अन्यायपूर्ण तरीके से व्यवहार किया गया। वे कहते हैं कि बदला लेने की सरकारी प्रवृत्ति का हालिया ‘शिकार’ बने हैं सतीश चंद्र वर्मा। सरकार के असंगत और अकारण क्रोध से न्यायपालिका अब तक वर्मा की रक्षा नहीं कर सकी है।
सतीश चंद्र वर्मा गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। पिछले दस साल के दौरान उनकी तैनाती पूर्वोत्तर और कोयम्बटूर में रही। 12 साल तक उन्हें कोई प्रमोशन नहीं दिया गया और रिटायरमेंट से एक महीने पहले 30 अगस्त को उन्हें सेवा से हटा दिया गया।
2004 में तीन अन्य लोगों के साथ मुंबई की युवती इशरत जहां को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया था। इन लोगों पर पाकिस्तानी आतंकी होने के आरोप लगाए गए और बताया गया कि ये लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात पहुंचे थे। पर इस मुठभड़े के झूठा होने के आरोप लगाए गए और गुजरात हाईकोर्ट ने इन आरोपों की जांच के लिए बनी विशेष जांच टीम (एसआईटी) में एक सदस्य के तौर पर वर्मा को भी शामिल किया। सतीश चंद्र वर्मा के लिए तभी से मुश्किलों का दौर शुरू हो गया।
दरअसल, इस मामले ने तब गंभीर मोड़ ले लिया जब अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एस पी तमंग ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में इस मुठभड़े को झूठा बताया। उसके बाद एसआईटी ने इस मामले की जांच की और बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने। दोनों टीमों ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के निष्कर्षों की पुष्टि की और कई पुलिस वालों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाने की सिफारिश की। सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की लेकिन मुकदमे में कभी सुनवाई शुरु नहीं पाई, क्योंकि राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद होनहार अधिकारी वर्मा को निशाने पर ले लिया गया। उनका पूर्वोत्तर बिजली आपूर्ति कॉरपोरेशन (एनईईपी) में मुख्य सतर्कता अधिकारी के तौर पर पूर्वोत्तर तबादला कर दिया गया। भ्रष्टाचार को लेकर एक गंभीर रिपोर्ट में उन्होंने केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू और उनके रिश्तेदारों के नाम लिए। इसके तत्काल बाद उनका सीआरपीएफ के आईजी के तौर पर त्रिपुरा और बाद में कोयम्बटूर तबादला कर दिया गया। इस बीच उनके परिवार को गांधीनगर के सरकारी मकान को खाली करने को मजबूर कर दिया गया, हालांकि पूर्वोत्तर में तैनाती की वजह से वह इस सुविधा के हकदार थे।
‘मीडिया से बात करने’ और अन्य आरोपों में उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही भी शुरू कर दी गई। विभागीय कार्यवाही के खिलाफ वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। उन्होंने अदालत को बताया कि इशरत जहां मामले में उनकी गवाही की वजह से उन्हें शिकार बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने 30 अगस्त को कोर्ट को सूचना दी कि वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्यवाही पूरी हो गई है और इसमें की गई सिफारिश के आधार पर उन्हें सेवा से हटा दिया गया है। 19 सितंबर के बाद इस बरखास्तगी के साथ सरकार को आगे बढ़ने की अनुमति देने वाले हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
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