साबरमती आश्रम समेत कई ट्रस्टों की जमीन कब्जाने की कोशिश में सरकार, गांधीवादी सकते में

देश के गांधीवादी इस खबर से भौंचक हैं किसरकार महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम पर कब्जा करने की तैयारी कर रही है। सरकारकी योजना सभी ट्रस्ट, संस्थान, उनकी भूमि और संपत्ति को कब्जे में लेने की है जो बीते 70 साल में सरकारी या बिनी किसी सरकारी सहायता के अस्तित्व में आई हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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आर के मिश्रा

साबरमती आश्रम को एक नोटिस दिया गया है जिसमें ट्रस्ट को सूचित करते हुए कहा गया है कि आश्रम में रहने वाले 200 के करीब लोगों को सरकार माकूल मुआवजा देगी और उनके लिए रहने को अपार्टमेंट्स देगी, बशर्ते वे संस्थान और उसकी भूमि पर नियंत्रण छोड़ दें। नोटिस के मुताबिक सरकार आश्रम को महात्मा गांधी को समर्पित विश्व स्तरीय स्मारक के रूप में विकसित करना चाहती है।

गांधीवादियों का आरोप है कि चूंकि साबरमती आश्रम प्राइम प्रॉपर्टी है, इसीलिए सरकार की इस पर नजर है। उनका कहना है कि जब यह आश्रम स्थापित हुआ था, तो यहां बंजर जमीन होती थी और 1917 से 1930 के बीच गांधी जी यहां रहे थे। सरकारी मदद या उसके बिना ही गांधीवादियों ने महात्मा गांधी की विरासत को तमाम दिक्कतों के बावजूद संजो कर रखा है, लेकिन सरकार को अब लगता है कि गांधीवादियों का काम खत्म हो चुका है।


सरकार के इस रुख से हैरान और रुष्ट गांधीवादियों का मानना है कि गांधी जी तो सरलता और मितव्ययिता की प्रतिमूर्ति थे, ऐसे में सरकार आलीशान स्मारक बनाकर गांधी जी के इस सिद्धांत को नष्ट करने की कोशिश कर रही है। इसी सिलसिले में गांधी जी के परपौत्र तुषार गांधी ने ट्वीट किया कि, “साबरमती आश्रम पर सरकारी कब्जा रुकना चाहिए...”


गांधीवादियों का गुस्सा आसानी से समझा जा सकता है। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के नाम पर 200 करोड़ की लागत से एक सभागार बनवाया था। काफी सजे-धजे इस केंद्र को महात्मा मंदिर के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसे सरकार ने एक निजी होटल कंपनी के हवाले कर दिया है।

इस कला एंव सभा केंद्र को चलाने में नाकाम रहने के बाद सरकार अब गांधीवादी ट्रस्टों और जमीनों को विश्व स्तर का बनाने के बहाने कब्जाना चाहती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गुजरात सरकार ने होटल व्यवसाय से जुड़ी बड़ी कंपनी लीला समूह के साथ 20 साल का अनुबंध किया है। कहा जा रहा है कि सरकार इसी कंपनी को सचिवालय के सामने वाली ट्रस्ट की जमीन देना चाहती है।

यह महज संयोग नहीं हो सकता कि लीला समूह ही महात्मा मंदिर के बराबर में नए सिरे से बने गांधीनगर रेलवे स्टोशन के के पास 300 कमरों का एक आलीशान होटल बना रहा है।

साबरमती आश्रम को गांधी आश्रम और हरिजन आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। एक जेल और श्मशान के बीच स्थित इस आश्रम की स्थापना एक बंजर जमीन पर 1917 में हुई थी। आश्रम की वेबसाइट के मुताबिक गांधी जी का मानना था कि एक सत्याग्रही इन दोनों जगहों में से किसी एक जगह जाना ही होता है।

साबरमती आश्रम प्रीजर्वेशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट यानी साबरमती आश्रम संरक्षण एंव स्मारक न्यास की अध्यक्ष इलाबेन भट्ट हैं। दूसरे ट्रस्टियों में कार्तिकेय वी साराभाई, डॉ सुदर्शन आयंगर, नितिन शुक्ला, अशोक चटर्जी और अमृत मोदी सचिव हैं। आश्रम की संस्थाओं में हरिजन आश्रम ट्रस्ट भी शामिल है जो विनय मंदिर के नाम से सेकेंडरी और उच्च शिक्षा के स्कूल और हरिजन लड़किओं के लिए होस्टल चलाता है। साथ ही एक महिला अध्यापन मंदिर भी जहां प्राथमिक शिक्षा के लिए शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है।

गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल, ग्रामोद्योग चलाता है और इसके उत्पादों में शामिल खादी, हाथ से बना कागज, साबुन, तेल आदि बेचता है। यहीं अंबर चरखा, कपड़ा बुनने की मशीन और उसके कलपुर्जे भी मिलते हैं।

खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति कपड़ा बुनने, सौर्य ऊर्जा और बायोगैस आदि के शोध और प्रशिक्षण का काम करती है, जबकि गुजरात हरिजन सेवक संघ अस्पृश्यता को खत्म करने के अभियान के अलावा पर्यावरणीय स्वच्छता संस्थान चलाती है और ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता के कार्यक्रम चलाती है।

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Published: 04 Oct 2019, 7:00 AM