इस बार बंद और हड़ताल नहीं, मातम जैसा सन्नाटा रहा कश्मीर में, सरकार ने लोगों का विश्वास जीतने का मौका गंवाया
1990 के बाद कश्मीर में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को हड़ताल होती रही है। यह सिलसिला हर साल जारी रहा। इस बार भी हड़ताल की रिवायत कायम रही, लेकिन इस बार ऐसा तनाव पाया गया जो पहले कभी नहीं दिखा था।
घाटी में गणतंत्र दिवस पर क्या माहौल था, जानने के लिए 'नवजीवन' घाटी के कुछ लोगों से फोन वार्ता की।
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर के पूर्व हेड तथा कश्मीर के अति प्रतिष्ठित डॉक्टर गुलाम मोहम्मद मलिक ने नवजीवन को बताया, "सुबह से ही तमाम फोन सेवाएं सरकार की ओर से बंद कर दी गई थीं। शाम को साधारण संचार सेवाएं बहाल की गईं। सुरक्षा एजेंसियों की अतिरिक्त सख्ती और चौकसी के कारण लोग पूरी तरह अपने अपने घरों में कैद रहे। एकदम कर्फ्यू जैसा सन्नाटा था। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि तमाम किस्म के फोन इस तरह बंद कर दिए जाएं। नेट की कोई सुविधा आवाम को नहीं दी जा रही। हम पूरी दुनिया से कटे हुए हैं।"
कश्मीर के वरिष्ठ वामपंथी नेता और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के कश्मीर काउंसिल के सदस्य गुलाम मोहम्मद भट्ट के मुताबिक, "आज बहुत बड़ा मौका था कि सरकार राहत की घोषणाएं करके बदलाव की दिशा में नया दरवाजा खोल सकती थी, लेकिन उसने तो घाटी में पूरी तरह से फोन बंद कर दी। शाम को फोन खुले हैं और कई जगह अभी भी बंद हैं। गणतंत्र दिवस के दिन घाटी के लोग विभिन्न वजहों से पहले से भी ज्यादा दहशत मैं रहे। लगता है हुकूमत नहीं मानती कि कश्मीरियों के लिए गणतंत्र कोई मायने रखता है। आज ऐसे बहुत से कदम उठाए जा सकते थे जो भरोसा खो रहे लोगों को कहीं न कहीं आश्वस्त करते। बल्कि चौकसी के नाम पर सरकार के इस तरह के शक्ति प्रदर्शन ने कश्मीरियों में और ज्यादा नाउम्मीदी, बेयकीनी और घोर निराशा भरी है। मैं तो कहूंगा सरकार ने कश्मीरियों का दिल जीतने का एक बड़ा मौका आज गंवा दिया।"
नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक सक्रिय कार्यकर्ता अख्तर ज़ैदी कहते हैं, "घाटी के लोगों के लिए ऐसे गणतंत्र का क्या मतलब जिसमें उनके मूल अधिकार बेरहमी से कुचले जा रहे हों। जैसा सन्नाटा आज श्रीनगर और घाटी कहने शहरों--कसबों में था, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। आज हड़ताल नहीं कर्फ्यू का आलम था। नजर बंद नेताओं में से कुछ को रिहा करके कश्मीर में गणतंत्र को मजबूत किया जा सकता था लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।"
श्रीनगर के एक वरिष्ठ पत्रकार भी ऐसा मानते हैं। उनका कहना है, "सरकार कहती है कश्मीर में सब सामान्य है तो गणतंत्र दिवस पर फोनबंदी क्यों की गई। जम्मू कश्मीर के प्रमुख अखबार 'कश्मीर टाइम्स' की चर्चित संपादक अनुराधा भसीन ने 'नवजीवन' से कहा, " आज पूरे देश में डेमोक्रेसी को सेलिब्रेट किया जा रहा था लेकिन सरकार ने घाटी में फोन बंद करके लोगों को एक तरह से मातम में रखा। सरकार की कश्मीर संबंधी नीतियां समझ से परे हैं।
एक तरफ दुनिया भर में दावे किया जा रहे हैं कि अब कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं और दूसरी तरफ एहतियात के बहाने अचानक फोन बंद कर दिया जाते हैं। जब सब सामान्य है तो सरकार को आखिर खतरा किससे है? फोन खुले रहते तो क्या हो जाता?" अनुराधा भसीन भी मानतींं हैं कि गणतंत्र दिवस के मौके पर सरकार कुछ अहम घोषणाएं करके व उनपर फौरी अमल करके नई शुरुआत कर सकती थी।
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