देश के विकास की झूठी तस्वीर पेश की सरकार ने, जीडीपी 7 नहीं 4.5 फीसदी थी, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार की रिपोर्ट
देश में विकास की रफ्तार 7 फीसदी नहीं बल्कि 4.5 फीसदी रही है और मौजूदा सरकार ने इसे 2.5 फीसदी बढ़ाकर बताया है। यह दावा किया है पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने। उन्होंने कहा है कि जिस आधार पर विकास दर मापी गई वह खराब ही नहीं टूटा हुआ था।
देश की तरक्की की असली रफ्तार कितनी है इसे लेकर काफी समय से विवाद जारी है। जीडीपी के आंकड़ों को लेकर विशेषज्ञ सवाल उठाते रहे हैं। अब पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। सुब्रमण्यन के मुताबिक इन वित्तीय वर्षों में विकास दर 2.5% बढ़ाकर प्रदर्शित की गई। वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान जहां विकास दर का आधिकारिक आंकड़ा 7 फीसदी बताया गया है, लेकिन सुब्रमण्यन के अनुसार जीडीपी का असल आंकड़ा करीब 4.5 फीसदी था।
अरविंद सुब्रमण्यन ने हावर्ड यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित कराया है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस रिसर्च पेपर में ही देश की जीडीपी को लेकर यह दावा किया गया है। सुब्रमण्यन ने इस पेपर में कहा है कि जीडीपी के गलत मापन का सबसे बड़ा कारण मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर रहा। सुब्रमण्यन ने अपनी बात समझाते हुए कहा कि साल 2011 से पहले मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन, मैन्यूफैक्चरिंग उत्पाद और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और मैन्यूफैक्चरिंग निर्यात से संबंधित होता था, लेकिन बाद के सालों में इस में काफी गिरावट आयी है।
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन की रिसर्च के मुताबिक जीडीपी ग्रोथ के लिए 17 अहम आर्थिक बिंदु होते हैं, लेकिन एमसीए-21 डाटाबेस में इन बिंदुओं को शामिल ही नहीं किया गया। अरविंद सुब्रमण्यन ने देश के आर्थिक विकास के लिए बनायी जाने वाली नीतियों पर भी सवाल उठाए हैं। उनके मुताबिक, “भारतीय नीतियों का वाहन एक ऐसे स्पीडोमीटर के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है जो न सिर्फ गलत है बल्कि टूटा हुआ है।“
गौरतलब है कि अरविंद सुब्रमण्यन ने पिछले साल एक बयान में नोटबंदी को भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका बताया था। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस वक्त नोटबंदी का ऐलान किया था उस समय अरविंद सुब्रमण्यन ही देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बीते दिनों देश के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) ने वित्तीय वर्ष 2016-17 का एक आंकड़ा पेश किया था। अंग्रेजी अखबार द मिंट में प्रकाशित एक खबर में कहा गया था कि एनएसएसओ ने अपनी रिपोर्ट के एमसीए-21 डाटाबेस में जिन कंपनियों को शामिल किया था उनमें से 38 फीसदी कंपनियां या तो अस्तित्व में ही नहीं था या फिर उन्हें गलत कैटेगरी में डाला गया था। ध्यान रहे कि देश की विकास दर मापने में एमसीए-21 डाटाबेस की अहम भूमिका होती है।
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