गोवा: भाई बनाम भाऊ और कैप्टन बनाम डेम्पो के बीच बिछ चुकी है चुनावी बिसात

गोवा में लोकसभा चुनावों की जीवंत नाटकीयता के बीच, कुछ जाने पहचाने चेहरे तो कुछ नए दावेदार आगामी संसदीय चुनावों में अपनी धाक जमाने के लिए मुकाबले में हैं।

गोवा में मतदान 7 मई को होना है और चुनावी बिसात बिछ चुकी है।
गोवा में मतदान 7 मई को होना है और चुनावी बिसात बिछ चुकी है।
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आदित्य आनंद

जैसे लोकसभा चुनावों में मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, गोवा के सियासी फलक पर में कयासों का दौर शुरु हो गया है। अब जबकि एक महीना बचा है, इस तटीय राज्य की दोनों लोकसभा सीटों पर सियासी जंग तेज होने लगी है। इंडिया गठबंधन की तरफ से कांग्रेस और एनडीए की तरफ से बीजेपी आमने-सामने हैं और मुकाबला सीधा है। मशहूर पर्यटन स्थल गोवा में दोनों ही राजनीतिक विचारधाराएं अपने प्रभुत्व और वर्चस्व के लिए कमर कस चुकी हैं।

फिलहाल, गोवा की दोनों लोकसभा सीटों पर बराबर का बंटवारा है, जिसमें कांग्रेस और बीजेपी एक-एक सीट पर मजबूती से काबिज हैं। इस बराबरी से ही मुकाबले की आग और ज्यादा भड़की हुई नजर आती है, जिससे चौतरफा चुनावी टकराव की जमीन तैयार हो गई लगती है। जहां कांग्रेस बदलाव की वकालत करते हुए राष्ट्रीय के साथ स्थानीय मुद्दों को रेखांकित करती है, वहीं बीजेपी लगातार तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आने के लिए कमर कसे हुए है उसका आधार पीएम मोदी की एकमात्र कथित करिश्माई अपील ही है। गोवा में एक ही चरण में 7 मई को मतदान होना है और नतीजे 4 जून को घोषित होंग

गोवा चुनावों की जीवंत नाटकीयता में, कुछ जाने पहचाने चेहरे तो कुछ नए दावेदार आगामी संसदीय चुनावों में अपनी धाक जमाने के लिए मुकाबले में हैं। पूर्व नौसेना अधिकारी और कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विरियाटो फर्नांडीस दक्षिण गोवा सीट के लिए इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार हैं। इस सीट से फिलहाल गोवा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री  फ्रांसिस्को सरदिन्हा सांसद हैं।

उन्हें चुनौती देने के लिए पल्लवी डेम्पो मैदान में हैं। वे डेम्पो इंडस्ट्रीज की कार्यकारी निदेशक हैं, और हाल ही में बीजेपी में शामिल होकर राजनीति में उतरी हैं। उनके राजनीति में कदम रखने को लोगों ने काफी रोचक समझा है और उन्हें लेकर कई तरह के कयास भी हैं। बीजेपी की तरफ से टिकट दिए जाने को लोग कार्पोरेट उम्मीदवार के तौर पर देख रहे हैं, और इसे उन जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी माना जा रहा है जो पार्टी के हर समय जुटे रहे हैं। संभवत:  बीजेपी इस तथ्य को भुनाना चाहती है कि इस निर्वाचन क्षेत्र के 20 में से 18 खंडों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक हैं।

इस बीच उत्तर गोवा (नॉर्थ गोवा) से कांग्रेस ने अनुभवी राजनेता और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री रमाकांत खलप को उतारा है। उन्हें गोवा के लोग प्यार से "भाई" कहकर पुकारते हैं। उनका मुकाबला बीजेपी के श्रीपद नाइक से होगा, जो मोदी सरकार में ऱक्षा राज्यमंत्री हैं। उन्हें भी लोग भाऊ कहकर पुकारते हैं।

वैसे तो नाइक कोई 6 बार रिकॉर्ड जीत हासिल कर चुके हैं, लेकिन खुलकर बोलने में उनकी झिझक और गोवा के मुद्दों को संसद में न उठा पाने को लेकर लोगों को उनसे शिकायत है। वहीं रमाकांत खलप 6 बार गोवा विधानसभा के सदस्य रहे हैं और इस दौरान वे विधानसभा में विपक्ष के नेता, डिप्टी चीफ मिनिस्टर, कैबिनेट मंत्री आदि रहे हैं। उन्होंने पहली बार 1996 में नॉर्थ गोवा से महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता था और केंद्र में कानून मंत्री बने थे। कानून मंत्री रहते उनके कार्यकाल में कई अहम कानून पास हुए, इनमें आर्बिट्रेशन एक्ट और कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर और सीआरपीसी में महत्वपूर्ण संशोधन हुए। खलप ने ही महिला आरक्षण बिल संसद में पेश किया था।

कैप्टन विरियाटो फर्नांडीस ने 2022 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर डाबोलिम से विधानसभा चुनाव लड़ा ता। वे सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। मेकेनिकल इंजीनियर और डबल एमबीए फर्नांडीस करगिल युद्ध के हीरों हैं। सेना छोड़ने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है।

दूसरी तरफ बीजेपी ने अपनी उम्मीदें पल्लवी डेम्पो पर लगा रखी हैं। बीजेपी को दक्षिण गोवा में फुटबॉल प्रेमियों और पल्लवी के परिवार का डेम्पो स्पोर्ट्स क्लब से जुड़ाव से फायदा मिलने की आस है। लेकिन कांग्रेस ने उनके मुकाबले सेना में सेवा देने वाले कैप्टन विरियाटो को मैदान में उतारकर राष्ट्रवादी दांव चल दिया है। कांग्रेस को कैप्टन विरियाटो के समर्पण और त्याग से उम्मीदें हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक गोवा की कुल आबादी करीब 16 लाख है और परिसीमन के मौजूदा नियमों के अनुसार गोवा दो लोकसभा सीटों में बंटा हुआ है। वैसे तो दो सीटों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, लेकिन तटीय इलाके के प्रतिनिधित्व के तौर पर गोवा महत्वपूर्ण माना जाता है।

जमीनी स्तर पर दक्षिण गोवा के मडकाइ, संवोर्डम, पोंडा, शिरोडा, सैंक्विम जैसे इलाकों में बीजेपी का गढ़ माना जाता है और मोरमुगाव तालुका के कुछ इलाके भी इसके प्रभाव वाले माने जाते हैं। लेकिन कुरचोरिम और कैनाकोना आदि में इसके सामने विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती भी है। वहीं कांग्रेस के वर्चस्व वाले इलाकों में उसके सामने मुश्किलें भी दिख रही हैं।

इन चुनौतियों के मद्देनजर बीजेपी ने अल्पसंख्या बहुल सालसेट इलाके में नजरें जमाई हुई है, जहां पार्टी को मत विभाजन से उम्मीदें हैं। वहीं बेनालिम, कर्टोरिम, नेवेलिम और कंकोलिम में भी बीजेपी रास्ता बनाने की कोशिश कर रही है, जहां इंडिया गठबंधन काफी मजबूत स्थिति में दिखता है।

ऐतिहासिक तौर पर देखें तो गोवा की दोनों सीटें अलग-अलग समय में विभिन्न राजनीति जुड़ावों से प्रभावित होती रही हैं। एकाध बार को छोड़कर नॉर्थ गोवा सीट एमजीपी और कांग्रेस के बीच ही रही है। 1999 में पहली बार बीजेपी ने यहां से जीत हासिल की थी, और तब से ही उसका यहां कब्जा है। इसी तरह दक्षिण गोवा सीट यूजीपी और कांग्रेस के बीत रही है, बीजेपी बस दो बार यहां से जीती है।

पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में श्रीपद नाइक ने नॉर्थ गोवा से जीत हासिल की थी जबकि दक्षिण गोवा सीट से कांग्रेस के फ्रांसिस्को सारदिन्हा जीते थे। अब जब एक बार फिर चुनावी घड़ी टिक-टिक कर रही है तो लोगों की यही आकांक्षा है कि संसद में और राष्ट्रीय स्तर गोवा की आवाज सुनी जानी चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी के लिए दक्षिण गोवा सीट जीतना मुश्किलों भरा काम है, खासतौर से तब जबकि धर्मनिरपेक्ष वोटों को बांटने की उसकी कोशिशें और रणनीति नाकाम रहती है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि मतदान से पहले के कुछ आखिरी दिन दोनों पार्टियों के लिए अहम होंगे।

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