पतंजलि से सैकड़ों किमी दूर-दूर तक गायब हुई ‘गिलोय’, इसी जंगली झाड़ से रामदेव ने बनाई है कोरोना की ‘दवा’!
बाबा रामदेव की पतंजलि ने लॉउनडाउन के दौरान हरिद्वार से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जंगली कहे जाने वाली झाड़- गिलोय की करोड़ों रुपये की खरीद की है। इसके बाद से कई किसान अब इस जंगली बेल की खेती के बारे में सोचने लगे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में नागल थाने के नन्हेड़ा गांव के बड़े किसान शाहवेज गाड़ा के घर पर पिछले महीने एक ही चर्चा चारों तरफ थी। यहां मौजूद उनके भांजे मोहम्मद उमर और अनीस बता रहे थे कि बाबा रामदेव की पतंजलि के लोग गांव-गांव घूम रहे हैं और गिलोय इकट्ठा कर रहे हैं। उमर बता रहे थे कि वे गिलोय के लिए एक हजार प्रति कुंतल दे रहे हैं। उमर बताते हैं यहां घर परिवार के ही लोग जमा थे, लेकिन ज्यादातर ने उनकी बात मजाक में उड़ा दी।
ठीक उसी समय पतंजलि कार्यालय से 112 किमी दूर मुजफ्फरनगर जनपद के एक संवाददाता ने अपने स्थानीय अखबार में वन विभाग की मदद से बड़े पैमाने पर हो रही गिलोय की तस्करी की ख़बर प्रकाशित होने के लिए भेजी, लेकिन उनके प्रभारी ने उस खबर को महत्वहीन मानकर तरजीह नहीं दी।
वहीं उस दौरान मेरठ के चमड़े के कारोबार से जुड़े आधा दर्जन व्यापारी अचानक से सक्रिय हो गए और गांव-गांव घूमकर गिलोय खरीदने लगे। ठेले ,रिक्शे और मोटरसाइकिल तक पर गिलोय ढोई जाने लगी और बड़ी-बड़ी गाड़ियां उन्हें हरिद्वार लेकर जाने लगी। आसपास के जंगलों से लेकर गांव-गांव और गली-गली तक से गिलोय गायब हो गई।
मुजफ्फरनगर में शर्मा धर्म कांटा चलाने वाले राहुल शर्मा बताते हैं कि लॉकडाऊन के दौरान ट्रकों की आवाजाही पर रोक नहीं थी। बड़ी संख्या में उन्होंने लोगों को गिलोय तुलवाते हुए देखा। शर्मा ने कहा कि पिछले दो महीने में यह काम बेहद तेजी के साथ हुआ और किसी ने भी यह नहीं बताया कि ऐसा क्यों किया जा रहा है!
आपको बता दें कि हजारों कुंतल यह गिलोय बाबा रामदेव की पंतजलि को भेजी जा रही थी। शुरू-शुरू में पतंजलि से एक कुंतल गिलोय के लिए 600 रुपये प्रति कुंतल दिए गए। उसके बाद यह रकम 1000 रुपये हुई और बाद में इसे 1600 रुपये तक कर दिया गया। यह जानकारी पतंजलि को गिलोय बेचने वाले केथोड़ा के एक व्यापारी आफताब ने दी। आफताब कहते हैं, मैं बस सोचता रह गया कि बाबा आखिर इतने गिलोय का क्या करने वाले हैं। मगर वो इसे कोरोना की दवाई बनाने में इस्तेमाल करेंगे, ऐसा कभी नहीं सोचा था।”
ऐसे में सवाल है कि आखिर इस जंगली बेल गिलोय में ऐसा क्या था! दरअसल बाबा रामदेव जिस दवाई कोरोनिल को बनाने का दावा कर रहे हैं, उसमें मुख्य तौर पर गिलोय का ही इस्तेमाल हुआ है। देहरादून के हकीम सरफराज प्रधान कहते हैं, "गिलोय' जंगल में उगने वाली एक बेल होती है, जो अक्सर पेड़ पर लटकी होती है। बरगद और पीपल के पेड़ पर आपने इसे देखा ही होगा। गिलोय बेहद गर्म होती है और इसे घोलकर पी लिया जाता है। इसे पीने से डेंगू बुखार तक ठीक हो जाता है। डायबिटीज नियंत्रित हो जाता है और प्लेटलेट्स बढ़ जाता है। इस गिलोय में एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं और इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करती है।"
गंगोह के किसान लोकेश गुर्जर कहते हैं कि लॉकडाउन के 3 महीने के दौरान आसपास के 100 किमी के इलाके में गिलोय नही बची है। अब ये गिलोय कोरोना का इलाज कर पाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता और बाबा का रिकॉर्ड देखते हुए भरोसा करते हुए भी डर लगता है। लेकिन यह सही है कि गांव-गांव बड़ी मात्रा में लोगों ने गिलोय काटकर पतंजलि भेजी है। वहां से अच्छा पैसा भी मिला है। इतनी बड़ी संख्या में गिलोय की खरीद यह भी बता देती है कि बाबा रामदेव की तैयारी बड़े स्तर पर चल रही थी। जब दुनिया को कोरोना की बीमारी का भी पूरी तरह अंदाजा नहीं था, तब से वो गिलोय खरीदने में जुट गए थे।
पतंजलि का दफ्तर गिलोय की खरीद के आंकड़ों के सबंध में तो कोई जानकारी तो नहीं देता है, मगर यह जरूर बता देता है कि सिर्फ लॉकडाउन में करोड़ों रुपये की हजारों कुंतल गिलोय खरीदी गई है। इसका प्रयोग वे दवाई बनाने में कर रहे हैं। खास बात यह है कुछ किसान अब गिलोय नाम वाली इस जंगली बेल की खेती के बारे में सोच रहे हैं। पहले यह बेल पूरी तरह से कबाड़ समझी जाती रही है। यही वजह है कि कल तक जिस गिलोय को कोई पूछता नहीं था, आज अचानक से यह दुर्लभ हो गई है।
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Published: 26 Jun 2020, 10:20 PM