‘ऑल वेदर रोड’ के नाम पर गंगा का हो रहा सत्यानाश, लाखों पेड़ बर्बाद, आपदा को दिया जा रहा निमंत्रण
पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर ने कई जगहों पर गंगा नदी में पानी के सूखने पर कहा कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है जलग्रहण क्षमता की कमी है। हमारे यहां जब बारिश होती है तो जलग्रहण में उसके पानी को रोकने, उसे जमा करने और उसका पुनर्भरण करने की क्षमता कम हो रही है।
देश की सबसे विशाल और पवित्र मानी जाने वाली नदी गंगा की हालत खस्ता है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद और साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रिवर्स एंड पीपुल्स के संयोजक हिमांशु ठक्कर का कहना है कि चार धाम यात्रा के लिए बन रहा चार लेन वाला ‘ऑल वेदर रोड’ सिर्फ और सिर्फ आपदा को निमंत्रण है। उनका कहना है कि 'ऑल वेदर रोड' के नाम पर पूरी गांगा घाटी का सत्यानाश हो रहा है। लाखों पेड़ बर्बाद हो रहे हैं, यह सिर्फ और सिर्फ आपदा को एक निमंत्रण है।
पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर ने कहा कि गंगा के सूखने के पीछे सबसे बड़ा कारण है जलग्रहण क्षमता की कमी, हमारे यहां जब बारिश होती है तो जलग्रहण में उसके पानी को रोकने, उसे जमा करने और उसका पुनर्भरण करने की क्षमता कम हो रही है। उन्होंने कहा, “इसके साथ ही वनों की कटाई, आद्र भूमि, स्थानीय जल निकायों में कमी की वजह से भी नदियों का पानी सूख रहा है। दूसरा कारण है कि बांधों और मोड़ों (डाइवर्जन) के कारण पानी बड़े पैमाने पर मुड़ रहा है जिससे गंगा का बहाव कम हो रहा है। तीसरा कारण है भू-जल का प्रयोग। उसकी वजह से भी गंगा नदी में पानी कम हो रहा है और चौथा कारण जलवायु परिवर्तन है, जिसकी वजह से वाष्पीकरण और पानी का उपयोग दोनों ही बढ़ रहा है, जिसके कारण गंगा का पानी सूख रहा है।”
मौसम विभाग के पूर्व डीजी हिमांशु ठक्कर ने गंगा के सूखने से लोगों के रोजगार पर पड़े प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा, “गंगा करीब 5 देशों और 11 राज्यों में बहती है, जिससे करीब 40 से 50 करोड़ लोगों का भरण पोषण होता है। गंगा पर लोगों की अलग-अलग तरीके से निर्भरता है, जो लोग नदी के साथ-साथ उसकी सहायक नदियों में मत्स्य पालन पर निर्भर थे, बड़े पैमाने पर उनकी आजीविका खत्म हो चुकी है, क्योंकि मछली पालन व्यापक स्तर पर तबाह हो गया है। क्योंकि बहुत सारी मछलियों की प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं। इसके साथ ही नदी के ना बहने के कारण, जो स्थानीय लोग नदियों में नौवहन करते थे, उन पर काफी असर हुआ है। जो लोग नदी पर ही पूर्ण रूप से निर्भर थे, उनका जीवन काफी प्रभावित हुआ है और आगे भी भविष्य को लेकर खतरा बरकरार है।”
इसके अलावा नदी जल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि अगर गुणवत्ता खराब होगी तो जो लोग नदी के पानी के ऊपर निर्भर हैं, चाहे खेती के लिए हों, उद्योग के लिए हों या फिर घरेलू उपयोग के लिए, उनके लिए बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है और आगे के दिनों में यह खतरा और बढ़ता जाएगा।
हिमांशु ठक्कर ने गंगा को बचाने के उपाय बताते हुए कहा कि अगर गंगा को बचाना है तो हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि किन-किन कारणों से गंगा पर गलत असर हो रहा है। दूसरा, गंगा में जो प्रदूषण आ रहा है उसे बंद करना होगा। सरकार तो पिछले 30-35 साल से गंगा एक्शन प्लान के नाम पर गंगा को बचाने का प्रयास कर रही है लेकिन उसमें कुछ सफलता अभी तक हासिल नहीं हुई है। प्लान को सफल बनाने के लिए उन्हें पूरे नियमों को बदलना पड़ेगा। चाहे वह गंगा एक्शन प्लान हो या फिर नमामि गंगे दोनों को ही ठीक करना होगा।
उन्होंने कहा, “नदी में पानी हमेशा बहते रहना चाहिए, तो हमें जल संसाधन का पूरा प्रबंधन बदलना होगा और वर्षा जल संग्रह को प्राथमिकता देनी होगी। इसके साथ ही फसल पद्धति में भी बड़े स्तर पर बदलाव लाना होगा और इस तरह की फसलों को कैसे कम किया जाए यह देखना होगा और भू-जल स्तर के नियमन को बेहतर करना होगा।”
श्रद्धा के नाम पर गंगा में प्लास्टिक की थैलियों और दूसरी चीजों को बहाने से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गंगा हमारे देश में बड़ी पूजनीय मानी जाती है। उन्होंने कहा, “धर्म, संस्कृति में इसका बड़ा स्थान है, हमारे त्योहारों में इसका ऊंचा स्थान है लेकिन दिक्कत यह है कि जो धार्मिक संस्थाएं हैं और जो धर्म से जुड़े हुए लोग हैं उनका गंगा को ठीक करने में कोई योगदान नहीं है, उनकी तरफ से कोई प्रयास नहीं होता। शंकराचार्य हों या कुम्भ मेले, जितनी धार्मिक संस्थाएं हैं, किसी ने गंगा को साफ रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।”
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