गंगा एक्सप्रेस-वेः कुंभ में डुबकी लगाकर योगी ने घोषणा तो कर दी, लेकिन बजट में दिखा दिया ठेंगा

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा प्रयागराज में चल रहे कुंभ में कैबिनेट बैठक करने और उसमें लिए गए फैसलों का प्रचार तो खूब हुआ, लेकिन उन फैसलों पर अब तक कोई अमल नहीं हुआ है। वहीं बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में जो वादे किए थे, उनका तो नाम भी नहीं लिया जा रहा।

फोटोः सोशल मीडिया
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रंजीव

बीजेपी सरकारों में मीडिया मैनेजमेंट और सुर्खियां बटोरने पर किस तरह खासा जोर रहता है, इसकी बानगी प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले के दौरान देखने को मिली। पिछले महीने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रयागराज में कैबिनेट की बैठक की। इस बैठक के पहले और बाद में खूब प्रचार किया गया कि किस तरह पहली बार कुंभ में प्रदेश किसी सरकार ने कैबिनेट की बैठक की और कई फैसले भी लिए। लेकिन अंततः हुआ क्या, यह भी जानने लायक है।

कुंभ में हुई इस कैबिनेट बैठक में कई नई परियोजनाएं शुरू करने का निर्णय लिया गया, जिनमें मेरठ से प्रयागराज तक 36 हजार करोड़ रुपये की लागत से 600 किलोमीटर लंबा गंगा एक्सप्रेस-वे बनाना भी शामिल है। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही जब सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अपना बजट पेश किया तो इसके लिए पैसे का प्रावधान ही नहीं किया। यानी, जिस परियोजना को कैबिनेट की बैठक के बाद खूब जोर-शोर से प्रचारित किया गया, उसकी हकीकत फिलहाल ऐलान तक ही सीमित है।

स्वाभाविक है कि ये सवाल उठने लगे हैं कि यह कब बनेगा और कैसे बनेगा। खास बात ये है कि मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी सरकार ने भी गंगा एक्सप्रेस-वे के नाम से ही एक परियोजना की पहल की थी। तब उसे नोएडा से बलिया तक बनाने का फैसला लिया गया था, जबकि योगी सरकार इसे मेरठ से प्रयागराज तक बनाना चाहती है। मायावती सरकार में काम शुरू होने के बाद बीच में रुक गया, लेकिन योगी सरकार ने तो घोषणा की, पर पैसों का बंदोबस्त नहीं किया।

मायावती शासन में नोएडा-बलिया गंगा एक्सप्रेस-वे बनाने का काम जयप्रकाश एसोसिएट्स (जेपी ग्रुप) को दिया गया था। प्रदेश सरकार और कंपनी के करार के मुताबिक, कंपनी को अपनी रकम से यह प्रोजेक्ट तैयार करना था और बदले में वह टोल वसूलती और रोड के किनारे मॉल, रेस्तरां और रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट्स विकसित करती।

साल 2008 के जनवरी में मायावती के 52वें जन्मदिन पर इसका शिलान्यास किया गया था। काफी जमीनों का अधिग्रहण भी हो चुका था, जिसको लेकर किसानों का काफी विरोध प्रदर्शन भी हुआ था। केंद्र में तब यूपीए की सरकार थी। इससे परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली जिससे काम आगे नहीं बढ़ पाया।

कई अन्य फैसले भी लटके

प्रयागराज में 29 जनवरी को हुई इस कैबिनेट बैठक में प्रयागराज में ही भारद्वाज मुनि के आश्रम का सौंदर्यीकरण, श्रृंग्वेपुर को धार्मिक पर्यटन घोषित कर उसका विकास करने, निषादराज पार्क का निर्माण, निषादराज और राम की मूर्तियां लगाने, प्रयागराज और चित्रकूट के बीच पहाड़ी नाम की जगह पर वाल्मीकि ऋषि के आश्रम और पार्क का सौंदर्यीकरण करने, रामायणशोध संस्थान की स्थापना करने आदि के फैसले हुए। लेकिन इनके लिए बजट में अलग से प्रावधान नहीं किया गया। हालांकि इसके लिए वित्तीय वर्ष के दौरान अनुपूरक बजट लाकर धन की व्यवस्था करने का विकल्प सरकार के पास है लेकिन फिलहाल वैसी कोई तैयारी नहीं दिख रही है।

सरकार के इस रवैये पर लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. डी आर साहू कहते हैं, “जो प्रचंड बहुमत वर्तमान सरकार को मिला है, उसे निहायत हल्के तरीके से लिया जा रहा है। सरकार को जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। लगता है कि ऐसी घोषणाएं 2019 के चुनाव की रणनीति का हिस्सा मात्र हैं। सरकार में आना और सरकार चलाने में अंतर है। जैसे गवर्मेंट है तो आप घोषणाएं कर देते हैं, लेकिन उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए गवर्नेंन्स जरूरी है।”

घोषणाओं के लिए धन की व्यवस्था समय पर न करने का यह मामला सिर्फ प्रयागराज की कैबिनेट बैठक से ही जुड़ा नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने संकल्प-पत्र में वादा किया था कि सरकार बनी तो कॉलेज में एडमिशन लेने वाले सभी युवाओं को मुफ्त लैपटॉप दिया जाएगा।

ऐसी ही एक घोषणा लघु और सीमांत किसानों को ब्याज मुक्त फसली ऋण देने की भी थी। सरकार का तीसरा बजट आ गया, लेकिन इन घोषणाओं पर अभी तक अमल नहीं हुआ है। परियोजनाओं के लिए बजटीय प्रावधान न करने की प्रवृत्ति पर अर्थशास्त्री प्रो. ए पी तिवारी कहते हैं, “शायद ऐसा इसलिए किया गया कि अभी इसके लिए बजट में प्रावधान करें तो बजट का आकार बढ़ जाता जो राजकोषीय घाटे में इजाफे को दिखाता। विकास के लिए परियोजनाएं तो होनी ही चाहिए लेकिन उनके लिए भौतिक बजटिंग पर जोर होना चाहिए, न कि वित्तीय बजटिंग पर।”

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