यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों का जंतर-मंतर पर अनशन, पीएम मोदी से पूछा- हमें ऐसे ही छोड़ना था तो बुलाया ही क्यों?
यूक्रेन के वेनिसिया से स्वदेश लौटीं तृषा सागर दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन गंगा के तहत हमें स्वदेश लाया गया, हम पीएम का शुक्रिया अदा करते हैं। लेकिन हम वापस आने के बाद ऐसी ही हमें छोड़ दिया। हमें वापस बुलाना ही नहीं चाहिए था।
यूक्रेन से करीब 3 महीने पहले लौटे भारतीय छात्र अपनी आगे कि पढ़ाई को लेकर काफी चिंतित हैं, उनके साथ उनके माता-पिता भी बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान हैं। स्वदेश लौटे भारतीय छात्र रविवार को अपनी मांगों और परेशानियों पर प्रधानमंत्री की नजर पड़े, इस मकसद से अनशन शुरू किया है। दिल्ली के जंतर मंतर पर यह छात्र अपने परिजनों के साथ अनशन पर बैठे। हालांकि पुलिस की तरफ से इजाजत न मिलने के कारण यह प्रदर्शन एक दिन का होगा और पुलिस की तरफ से 300 लोगों की इजाजत दी गई है।
पेरेंट्स एसोसिएशन ऑफ यूक्रेन एमबीबीएस स्टूडेंट्स की ओर से कहा गया है कि रविवार को छात्र और परिजन अनशन पर रहेंगे। संगठन ने कहा, "सरकार अब हमें आंदोलन करने पर मजबूर कर रही है। हम शांतिपूर्ण तरह से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते आए हैं, लेकिन सरकार अगर हमारी तरफ गौर नहीं करती है तो पेरेंट्स को आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ेगा।"
यूक्रेन के वेनिसिया से स्वदेश लौटीं तृषा सागर दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने कहा, "ऑपरेशन गंगा के तहत हमें स्वदेश लाया गया, हम प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा करते हैं। लेकिन हम वापस आने के बाद ऐसी ही हमें छोड़ दिया है तो हमें वापस बुलाना ही नहीं चाहिए था। यदि हम अपनी मांगो को लेकर नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के वरिष्ठ लोगों के पास जाते हैं तो वे लोग बदतमीजी से बात करते हैं, हमें नीचा दिखाया जाता है।"
उन्होंने कहा, "हमें यह कहकर शर्मिदा किया जाता है कि 'आप यहां पढ़ने लायक नहीं हो, आप यहां डॉक्टर नहीं बन सकते। आप हमसे पूछकर यूक्रेन नहीं गए थे।' हम उनसे यह पूछना चाहेंगे कि क्या विदेश जाने के दौरान इनकी इजाजत नहीं चाहिए होती है? क्या इन्हें पता नहीं होता कि हम उधर पढ़ाई के लिए जा रहे हैं? तब ये हमसे क्यों बदतमीजी करते हैं?"
यूक्रेन में छह सालों में मेडिकल की पढ़ाई पूरी होती है। इसके बाद छात्रों को एक साल के लिए अनिवार्य इंटर्नशिप करनी पड़ती है। फिर भारत में प्रैक्टिस करने और लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम की पात्रता के लिए एक साल की सुपरवाइज्ड इंटर्नशिप भी करनी पड़ती है। इनके बाद एफएमजी एग्जाम क्वालीफाई करना पड़ता है।
यूक्रेन के खार्किव में चौथे वर्ष की मेडिकल पढ़ाई कर रहे ऋत्विक वाष्र्णेय ने आईएएनएस को बताया, "अनशन पर बैठने को हमें अब मजबूर होना पड़ रहा है पिछले 3 महीने से हम भारत लौटे हुए हैं, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक कोई भी फैसला हमारी पढ़ाई को लेकर नहीं हुआ है। सरकार के जो मंत्री हमें लेने पहुंचे थे, उन्होंने हमसे वहां वादा किया था कि हम आपका भविष्य भी देखेंगे।"
उन्होंने कहा, "अभी तक हमारे पास किसी तरह की हमारे भविष्य को लेकर खबर नहीं आई है। सरकार यदि हमें एक निर्धारित समय दे दे तो हम थोड़ा संतुष्ट महसूस करें। लेकिन ऐसा सरकार की तरफ से नहीं हुआ है। हमारा एक डेलिगेशन एनएमसी भी गया, वहाँ भी संतुष्ट जवाब नहीं मिला।"
उन्होंने आगे कहा, "जिन छात्रों का आखिरी कुछ महीनों की पढ़ाई बची हो और अचानक उन्हें स्वदेश लौटना पड़े तो वे छात्र डिप्रेशन में चले जाते हैं। हमने अपनी मांगों को विधायकों सांसदों व अन्य अधिकारियों को पहले ही सौंप चुके हैं, वहीं हम धरना भी दे चुके हैं, लेकिन मजबूरन अब हमें अनशन पर बैठना पड़ रहा है।"
इससे पहले छात्रों और परिजनों ने नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय के गेट के बाहर शुक्रवार को प्रदर्शन किया था। पीएयूएमएस के राष्ट्रीय महासचिव पंकज धीरज ने बताया, "हम सब शांतिपूर्वक ढंग से देश के मेडिकल सेवा भविष्य को स्वदेश में ही अगली शिक्षा दिलवाने के लिए विगत ढाई माह से पीएम से मांग करते आ रहे हैं, अब सरकार को हमारी शांतिपूर्ण प्रक्रिया को गंभीरता से लेना चाहिए।"
"रविवार को देशभर के मेडिकल विद्यार्थी, दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर 'अनशन' शुरू करने जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी उस संबंधित पीआईएल में केंद्र सरकार को सकारात्मक व मानवीय दृष्टिकोण वाला जबाव भी 29 जून को दाखिल करना है।"
उन्होंने आगे कहा, "यूक्रेन-रूस युद्ध आपदा के बीच करीब तीन माह पहले छात्र जान बचाकर स्वदेश लौटे, उनको यहां तक लाने में सरकार ने मदद की, लेकिन अब उनकी आगे की पढ़ाई के बारे में सरकार को सोचना होगा। उन्हें भारत में ही मेडिकल की पढ़ाई करानी होगी।"
देश के अलग-अलग राज्यों में छात्रों की संख्या अलग है। दिल्ली में 150 मेडिकल के छात्र हैं, जो यूक्रेन युद्ध के कारण स्वदेश लौटे, हरियाणा 1400, हिमाचल प्रदेश के 482, ओड़िशा 570, केरल 3697, महाराष्ट्र 1200, कर्नाटक 760, उत्तर प्रदेश 2400, उत्तराखंड 280, बिहार 1050, गुजरात 1300, पंजाब 549, झारखंड 184 और पश्चिम बंगाल के 392 छात्र हैं।
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