उत्तर प्रदेश: गोरख-फिराक के शहर में भोजपुरिया शेक्सपियर
साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल द्वारा योगी के मंच से रविकिशन की तुलना भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर से करने पर बवाल मचा हुआ है। साहित्यकार देवेन्द्र आर्य ने इस मसले पर फेसबुक पर एक पोस्ट भी किया है। इसमें नाचने-गाने वाले व्यक्ति के लिए एक प्रचलित शब्द का उपयोग किया गया है।
दृश्य एकः
तारीख: 5 मई। स्थानः महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज। कार्यक्रमः बीजेपी का प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन
12 हजार प्रबुद्ध लोगों के जुटान के दावे से इतर कैंपस में 2 हजार लोगों की मौजूगी। इस कार्यक्रम में बीजेपी प्रत्याशी रविकिशन मौजूद नहीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करीब 35 मिनट मिनट बोलते हैं, पर एक बार भी प्रत्याशी का नाम नहीं लेते हैं। वैसे, यहां योगी एम्स, खाद कारखाना, फोर लेन हाईवे, अंडरपास, चीनी मिल सरीखी कई विकास योजनाओं की याद दिलाकर पूछते हैं, क्या ऐसा विकास कभी हुआ था? विकास पंसद है कि नहीं? और फिर, यह नसीहत देते हैं, जैसे मेरे चुनाव में जुटते थे, वैसे ही इस चुनाव में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जुटें।
दृश्य दोः
तारीख: 12 मई। स्थानः पिपराइच विधानसभा क्षेत्र का बरगदही बाजार।
पूर्व मंत्री जमुना निषाद के बेटे अमरेन्द्र निषाद अपनी बिरादरी के लोगों को निषाद पार्टी के एजेंडे की याद दिलाते नजर आते हैं। वह लोगों को समझाते नजर आते हैं कि गोरखनाथ मंदिर का प्रसाद पाकर बीजेपी के टिकट पर संतकबीर नगर से लड़ने वाले प्रवीण निषाद अब निषादों के हितैषी नहीं रहे। पहले निषाद पार्टी के लोग यह कहकर वोट मांगते थे कि जब गैर-बिरादरी में बेटी की शादी नहीं कर सकते हैं तो कैसे दूसरी बिरादरी के लोगों को वोट दे दें। भीड़ में मौजूद निषाद बिरादरी के लोग सहमति का सिर हिलाते हुए नजर आते हैं।
ये दो दृश्य यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि गोरक्षपीठ की धरती पर बीजेपी और गठबंधन प्रत्याशी का एजेंडा क्या है। विकास के मुद्दे और प्रशासनिक गठजोड़ से मुख्यमंत्री जहां पिछले साल हुई उपचुनाव की हार को जीत में तब्दील करने को ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे हैं, वहीं गठबंधन प्रत्याशी रामभुआल निषाद दलित, यादव और मुस्लिम वोटों को सहेजने के लिए छोटी-छोटी बैठकें करते दिख रहे हैं। इन सियासी कवायद के बीच बीजेपी के अंदर बाहरी और हेलीकॉप्टर प्रत्याशी को लेकर गुस्सा भी साफ दिख रहा है। कुल मिलाकर जिस प्रकार गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में जातीय गोलबंदी दिख रही है, उससे योगी का किला हिलता नजर आ रहा है। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले गोरखपुर सीट से ही सांसद रहे हैं।
यहां फिल्म स्टार बीजेपी प्रत्याशी रविकिशन शुक्ला और गठबंधन प्रत्याशी रामभुआल निषाद के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है, हालांकि कांग्रेस के मधुसूदन त्रिपाठी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। गोरखपुर सीट पर 19 लाख से अधिक वोटर हैं। गठबंधन 3 से साढ़े तीन लाख निषाद, 2 लाख मुस्लिम, 2 लाख दलित, डेढ़ लाख यादव वोटरों को सहेजने की कोशिशों में है तो वहीं बीजेपी दो लाख ब्राह्मण, 1.2 लाख कायस्थ, 1.5 लाख बनिया और करीब दो लाख राजपूत-सैथवार वोटों के भरोसे जीत का समीकरण बना रही है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी मधुसूदन त्रिपाठी ब्राह्मणों के साथ सवर्ण वोटों में अच्छी सेंधमारी कर बीजेपी की मुश्किलों को बढ़ाते दिख रहे हैं। बीजेपी प्रत्याशी रविकिशन खुद को माफिया सरगना श्रीप्रकाश शुक्ला के गांव मामखोर का बताकर स्थानीय होने का दावा कर रहे हैं लेकिन उनके बाहरी और गैर-राजनीतिक होने पर खूब चर्चा हो रही है।
जाने-माने साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल द्वारा योगी के मंच से रविकिशन की तुलना भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर से करने पर बवाल मचा हुआ है। साहित्यकार देवेन्द्र आर्य ने इस मसले पर फेसबुक पर एक पोस्ट भी किया है। इसमें नाचने-गाने वाले व्यक्ति के लिए एक प्रचलित शब्द का उपयोग किया गया है। आर्य का कहना है कि ऐसे एक व्यक्ति को भोजपुरी के शेक्सपियर की भिखारी परंपरा से जोड़कर महिमा मंडित करने की आपकी बौद्धिकता ले कर चाटूं क्या? आपकी भोजपुरियत और आचार्यत्व पर शर्म आती है गोरख और फिराक के शहर गोरखपुर को। यह गोरखपुर की साहित्य परंपरा के कृष्ण पक्ष का नया अध्याय है।
प्रबुद्ध वर्ग ही नहीं, संगठन से जुड़े लोगों को भी रविकिशन को प्रत्याशी बनाना जम नहीं रहा। दंत चिकित्सक डॉ सृजन श्रीवास्तव कहते हैं कि स्थानीय प्रत्याशी से जनता का जुड़ाव होता है, बाहरी प्रत्याशी को लेकर हर मंच पर दबाव बनाया जाना चाहिए ताकि बाहरी प्रत्याशी को उतारने से पहले बीजेपी लाख बार सोचे। हालांकि बड़ा वर्ग ऐसा है जो दो वर्ष के दौरान गोरखपुर में हुए विकास और योगी के चेहरे पर जीत का दावा कर रहा है। कई शिक्षण संस्थान संचालित करने वाले पवन दुबे कहते हैं कि फोरलेन, एम्स, खाद कारखाना, रामगढ़ झील का सुंदरीकरण, दुधिया रोशनी में नहाईं सड़कें विकास की कहानी कह रहे हैं। राजनीतिक और वैचारिक मतभेद को दरकिनार कर सभी को योगी के साथ खड़ा होना होगा।
दलित साहित्यकार अमित कुमार कहते हैं कि उपचुनाव में गठबंधन का लिटमस टेस्ट हुआ था। तब किसी को यकीन नहीं था कि गोरक्षपीठ के 29 वर्ष पुराने वर्चस्व को चुनौती दी जा सकती है। अब गोरखपुर सीट का समीकरण बदल चुका है। विधानसभाओं में स्थानीय क्षत्रपों का समीकरण भी बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ा कर रहा है।
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