महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख 14 महीने बाद जेल से रिहा, वसूली मामले में मिली बड़ी राहत
महाराष्ट्र की तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार को हिलाकर रख देने वाले वसूली कांड में अनिल देशमुख की पिछले साल नवंबर में गिरफ्तारी हुई थी। देशमुख पर आरोप था कि उन्होंने गृह मंत्री रहते सचिन वाजे को ऑर्केस्ट्रा बार से हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूल करने को कहा था।
महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख करीब 14 महीने सलाखों के पीछे बिताने के बाद बुधवार को आर्थर रोड सेंट्रल जेल से जमानत पर रिहा हो गए। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मंगलवार को जमानत देने के अपने आदेश पर रोक बढ़ाने की केंद्रीय जांच ब्यूरो की याचिका खारिज करने के बाद 73 वर्षीय देशमुख को जेल से रिहा कर दिया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संतोष चापलगांवकर की एकल-न्यायाधीश अवकाश पीठ ने नियमित अदालत के पिछले आदेश की पृष्ठभूमि के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि हिरासत के विस्तार के लिए कोई याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। इसके बाद देशमुख के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया।
बुधवार शाम करीब 4.55 बजे जेल से बाहर आए अनिल देशमुख का राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सैकड़ों नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शानदार स्वागत किया। कार्यकर्ताओं की भीड़ द्वारा स्वागत से अभिभूत देशमुख ने हाथ लहराकर सभी का धन्यवाद किया। इस दौरान उन्होंने कई नेताओं औऱ कार्यकर्ताओं से हाथ मिलाकर भी उनका आभार जताया।
इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 दिसंबर को ही अनिल देशमुख को जमानत दे दी थी, लेकिन तब सीबीआई को आगे की कार्रवाई करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया था। उन 10 दिनों में सीबीआई की सुप्रीम कोर्ट में देशमुख की जमानत को चुनौती देने की तैयारी थी। लेकिन छुट्टियां शुरू हो जाने के कारण वहां मामले की सुनवाई जनवरी से पहले संभव नहीं होते देख सीबीआई ने फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसे झटका लगा और देशमुख के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया।
महाराष्ट्र की तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार को हिलाकर रख देने वाले वसूली कांड में अनिल देशमुख की पिछले साल नवंबर में गिरफ्तारी हुई थी। असल में अनिल देशमुख पर आरोप था कि उन्होंने महाराष्ट्र के गृह मंत्री रहते हुए सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे को ऑर्केस्ट्रा बार से हर महीने 100 करोड़ रुपये की वसूली कर उन्हें देने का आदेश दिया था। इस पूरे मामले में विवाद इतना बढ़ गया था कि तत्कालीन मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह की कुर्सी भी चली गई थी।
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