17वीं लोकसभा का सत्र आज से, सरकार के एजेंडे में तीन तलाक विधेयक शीर्ष पर, जेडीयू ने विरोध का कर दिया है ऐलान
आज (सोमवार, 17 जून) से 17वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरुहो रहा है। प्रोटेम स्पीकर तीन दिन तक इस लोकसभा के नवनिर्वाचित सांसदों को शपथग्रहण कराएंगे। इसे मॉनसून और बजट सत्र दोनों कहा जा सकता है। यह सत्र 40 दिन का होगा जिसमें संसद की 30 बैठकें प्रस्तावित हैं।
17वीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार सत्रह जून से आरंभ हो रहा है। प्रोटेम स्पीकर तीन दिन तक इस लोकसभा के नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ ग्रहण कराएंगे। मौजूदा सत्र एक तरह से बजट व मानसून सत्र के तौर पर साझा सत्र होगा। संसद भवन की सुरक्षा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आंतकी हमले की आशंका को देखते हुए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को अंतिम रूप दिया जा चुका है। 40 दिन तक खिंचने वाले इस सत्र की कुल 30 बैठकें प्रस्तावित की गई हैं। तीन माह तक चले लंबे चुनाव प्रचार व नई सरकार के गठन की प्रक्रिया के बाद शुरु हो रहा यह सत्र 26 जुलाई तक चलेगा।
संसद सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पहले तीन दिन तक सदस्यों की शपथ प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही लोकसभा स्पीकर का चुनाव होगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोंविद गुरुवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त सभा को संबोधित करेंगे। शुक्रवार को ही राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दोनों सदनों में चर्चा आरंभ हो जाएगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 5 जुलाई को वित्त मंत्री के तौर पर लोकसभा में बजट पेश करेंगी। इसके पहले 4 जुलाई को देश की मौजूदा आर्थिक दशा दिशा को लेकर आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा।
तीन तलाक पर सत्र आरंभ होते ही जोर आजमाइश शुरू
कांग्रेस के अलावा एनडीए के प्रमुख सहयोगी जनतादल यूनाइटेड समेत कई पार्टियों द्वारा तीन तलाक विधेयक के मसौदे के कई बिंदुओं पर आपत्तियां जताए जाने के बावजूद मोदी सरकार किसी भी सूरत में इस विवादास्पद विधेयक को संसद के इसी सत्र में जल्दी से जल्दी पारित करवाने की कोशिश करने में जुटी है। मोदी सरकार को राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इस कारण सरकार को इस विधेयक को लागू रखने के लिए दो बार आध्यादेश का सहारा लेना पड़ा है।
मुसलिम महिलाओं को उनके पतियों द्वारा तलाक देने को आपराधिक कृत्य घोषित कर ऐसे पुरुषों को तीन साल की सजा के कड़े प्रावधान के विरोध की वजह से मोदी सरकार संसद के पिछले सत्र में इस विधेयक को पारित नहीं करवा पायी थी।
कांग्रेस के रुख में नहीं कोई बदलाव- जेडीयू झुकने को नहीं तैयार
कांग्रेस ही नहीं बीजेपी की प्रमुख सहयोगी जेडीयू भी इस बात पर अडिग है कि तीन तलाक के दोषियों की सजा को आपराधिक श्रेणी में रखना किसी भी सूरत में व्यावहारिक कदम नहीं हो सकता। विधेयक का विरोध करने वाले दलों की मांग रही है कि विधेयक के कई पक्षों की गहराई से पड़ताल करने के लिए आवश्यक है कि इसे स्थायी संसदीय समिति के सुपुर्द किया जाना चाहिए।
बीजेपी विधेयक का विरोध करने वालों पर लगाती रही है तुष्टिकरण का आरोप
बीजेपी इस विधेयक को पारित करने की जिद करके शुरू से ही विपक्षी दलों को कटघरे में खड़ा करने की कोशिशों में जुटी रही है, ताकि तार्किक वजहों से सवाल उठाने वालों पर मुसलिम तुष्टिकरण का आरोप चस्पा कराने में आसानी हो। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक की प्रथा को अवैध करार देने के कदम का कांग्रेस समेत लगभग कई दलों ने स्वागत किया था। उनका विरोध सरकार द्वारा आध्यादेश के जरिए लाए गए विधेयक में तीन तलाक के दोषी मुसलिम पुरुषों को तीन साल की जेल की सजा के कड़े प्रावधान पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाए जाने को लेकर है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता व पार्टी के वरिष्ठ कानूनी सलाहकार अभिषेक मनु सिंधवी कहते हैं, "संसद और देश का बहुत सारा वक्त बच गया होता यदि तीन तलाक से प्रभावित महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के मुद्दे पर कुछ संजीदगी से रास्ता निकाला गया होता।"
मौजूदा स्वरूप में पारित करने का विरोध करेगा जेडीयू
तीन तलाक मामले पर बीजेपी के प्रमुख सहयोगी जेडीयू ने दो टूक कह दिया है कि विधेयक को मौजूदा स्वरूप में पारित किए जाने का विरोध होगा। पार्टी प्रवक्ता ने कहा है, "पिछले साल जिस प्रारूप में सरकार ने विधेयक को संसद में पारित कराने की कोशिशें की हैं वह हमें मंजूर नहीं है।" उनका कहना है कि यदि सरकार इसमें हमारे दल की भावनाओं को देखते हुए समुचित प्रावधान करने को राजी हो तभी हम इस पर विचार के बाद कोई निर्णय लेने की स्थिति में होंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 24 जनवरी 2013 (यूपीए शासन के दौर में) को भारतीय विधि आयोग को लिखे पत्र में कहा था कि समान नागरिक आचार सहिंता के दायरे में तीन तलाक जैसे मुद्दों पर सभी संबद्ध धार्मिक पक्षकारों के साथ गहराई से विचार विमर्श के बाद ही कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए। जेडीयू का मानना है कि इस तरह की कोई प्रक्रिया अपनाए बगैर विवाह, तलाक, गोद लेना, संपत्ति व उत्तराधिकार के बेहद जटिल संवेदनशील मामलों पर सोच समझकर कदम उठाए जाने की जरूरत है।
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