कश्मीर को लेकर तेजी से बदले घटनाक्रम से घाटी में भ्रम और चिंता का कुहासा, नई घोषणाओं से बढ़ी आशंका

कश्मीर में दशकों से हिंसा और अस्तव्यस्त-भरी स्थितियों में रह रहे लोगों के लिए हाल की कई घटनाओं ने डर और चिंता में इजाफा ही किया है। पहले तो यहां सेना की अतिरिक्त बटालियन की तैनाती कर दी गई।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

कश्मीर में दशकों से हिंसा और अस्तव्यस्त-भरी स्थितियों में रह रहे लोगों के लिए हाल की कई घटनाओं ने डर और चिंता में इजाफा ही किया है। पहले तो यहां सेना की अतिरिक्त बटालियन की तैनाती कर दी गई। उसके बाद कुछ रहस्यात्मक सरकारी सर्कुलर सामने आए जिनमें कहा गया है कि यहां आने वाले दिन कठिनाई भरे होने वाले हैं। फिर, जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से पूरी कश्मीर घाटी के मस्जिद-मदरसों की लिस्ट और उनका विवरण देने के लिए सभी पुलिस अधीक्षकों को कहा गया। इनमें मस्जिद का नाम, वह किस विचारधारा से संबद्ध हैं, स्थानीय इमाम और इसके प्रबंधन प्रमुख के नाम बताने को कहा गया।

इस तरह की घटनाओं की वजह से यह संभावनाएं पैदा हुईं और इन्हें लेकर अफवाहें पैदा हुई हैं कि केंद्र सरकार विवादित अनुच्छेद 35ए को हटाने की कोशिश कर सकती है। यह अनुच्छेद ही जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिक को परिभाषित करता है जो उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा देता है।


डर का यह भाव कश्मीर में नया या अस्वाभाविक नहीं है। पिछले 70 साल में विभिन्न सरकारों के दौरान कई बार कई तरह के असंवेदनशील ढंग से जख्मों को हरा किया गया है और राज्य तथा राज्य से बाहर के निहित स्वार्थी तत्वों ने यह सुनिश्चित किया है कि घाटी में अनवरत अस्तव्यस्तता और डर का वातावरण बना रहे। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब से बनी है, डर के इस आलम ने पहले की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं।

अनुच्छेद 35ए हटाने और कश्मीर समस्या से निबटने के लिए सैन्य तरीका अख्तियार करने को और बढ़ाने को लेकर जो आशंकाएं तैर रही हैं, उसमें क्या कोई सच्चाई है? हाल के घटनाक्रम के आधार पर इस बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं और सरकार ने इस बारे में फैले कुहासे को दूर नहीं किया है। एक के बाद एक हो रही घटनाएं महज संयोग वाली हैं या इन सबके पीछे किसी खास तरह की योजना है? केंद्र सरकार ने इन सबको लेकर रहस्यमय चुप्पी साध रखी है जबकि स्थानीय स्तर पर अधिकारी स्पष्टीकरणों के नाम पर भ्रम ही बढ़ा रहे हैं।


10,000 सैनिकों की अतिरिक्त तैनाती के बाद और 25 हजार सुरक्षा बल घाटी में भेजे जाने और फिर सेना-वायुसेना को ऑपरेशनल हाई अलर्ट पर रखने के बीच मदरसों को लेकर पूरी जानकारी जुटाने को जम्मू-कश्मीर के पुलिस अफसरों ने ’रूटीन’ सिक्योरिटी ड्रिल कहा है। उनका कहना है कि पुलिस सभी धार्मिक स्थानों के रिकॉर्ड पहले भी रखती रही है। और यह भी कि घाटी में पहले से ही तैनात सैन्य बल की जगह लेने के लिए अतिरिक्त सैन्य बल बुलाया गया है।

राष्ट्रीय मीडिया में अनाम सरकारी सूत्रों के हवाले से ये खबरें भी हैं कि कश्मीर घाटी में बड़े आतंकी हमले को लेकर खुफिया सूचना मिली है। संयोगवश अतिरिक्त सैन्य टुकड़ी की तैनाती राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के कश्मीर दौरे के दो दिनों बाद हुई है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार विजय कुमार के इस बयान ने एक अलग ही आयाम खोल दिया कि अतिरिक्त सैन्य बल अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर हैं। दो महीने तक चलने वाली अमरनाथ यात्रा के लिए 40,000 अतिरिक्त जवान पहले से ही तैनात हैं। वैसे, कुमार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए इस मामले से हाथ भी झाड़ लिए।


उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर डर या अफवाह फैला रहा है, तो मुझसे इस बारे में नहीं पूछना चाहिए। इस अफवाह का स्रोत क्या है? हर वक्त मेरा इस बारे में बोलते रहना उचित नहीं है।

क्या सरकार को अफवाहों को लेकर सच्चाई बताने की जिम्मदारी से छोड़ दिया जाना चाहिए? हाल में जो घटनाएं हुई हैं, उन पर अगर ध्यान दें, तो कहना होगा कि ऐसा करना उचित नहीं है। करीब दो हफ्ते से घाटी में हैरानी-परेशानी का आलम बन हुआ है। पहले तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अजीब ढंग से कहा कि आतंकियों को सुरक्षाबलों की जगह भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की हत्या करनी चाहिए। वैसे, बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें यह बात नहीं कहनी चाहिए थी, लेकिन इसके लिए उन्होंने खेद प्रकट नहीं किया। घाटी आए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद 35ए और 370 को जाना ही होगा।

आरपीएफ के अतिरिक्त सुरक्षा आयुक्त (बड़गाम) सुदेश नुग्याल ने कश्मीर में ’खराब होते जाने वाली कानून-व्यवस्था की स्थिति की संभावना’ के मद्देनजर अपने कर्मचारियों को कम-से-कम चार महीने के लिए राशन, सात दिनों के लिए पानी और लंबे समय तक कानून-व्यवस्था खराब रहने की वजह से वाहनों में तेल भरवाने का पूरा इंतजाम रखने को लेकर आदेश जारी किया। वैसे, इस पर हंगामा मचने के बाद उनका तबादला कर दिया गया।

लेकिन चूंकि यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल रहा, तो उससे भय फैला। राज्यपाल के सलाहकार को अपनी जिम्मेदारियों से हाथ झाड़ने की कोशिशों से पहले देखना चाहिए कि उनकी अपनी प्रशासनिक मशीनरी में अफवाह के स्रोत बने हुए हैं या नहीं।


जान-बूझकर या अनजाने में ही सही, सरकार ने इस तरह के उहापोह को जारी रहने दिया है। जिम्मेदारी लेने से मना कर यह भ्रम को और गहरा कर रही है। इसका लाभ पारंपरिक तौर पर प्रतिद्वंद्वी दो पार्टियां- पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस उठाने की कोशिश कर रही है। हाल के घटनाक्रम के मद्देनजर आने वाली चुनौतियों से निबटने के लिए वे वृहत्तर राजनीतिक नेटवर्क बनाने की कोशिश में हैं।

यह दूसरा मौका है जब उन्होंने हाथ मिलाए हैं। इससे पहले दिसंबर में सरकार गठन के लिए उन्होंने ऐसी कोशिश की थी। तब, इस वजह से बीजेपी के कान खड़े हो गए थे और उसने ठोस तर्क के बिना ही राज्यपाल के जरिये विधानसभा भंग करवा दी थी। उस वक्त बीजेपी अपने संभावित सहयोगी सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को साथ लाना चाह रही थी और अन्य पार्टियों से दलबदल कराकर गठबंधन सरकार बनाने की आशा कर रही थी। वैसे, हाल में लोन ने ’खतरनाक अभियान’ में लगे रहने को लेकर बीजेपी सरकार को लताड़ा है।

(लेखक कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक हैं।)

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Published: 02 Aug 2019, 6:17 PM