इतिहास के पन्नों में अमिट इबारत लिख निकला किसानों का फतेह मार्च, कूच करते किसानों की हर तस्वीर कुछ कहती रही
किसानों का कहना था कि हमने इस सरकार को झुकाया नहीं है बल्कि तोड़ा है। इनका गुरुर टूटा है। अपने एक साल के सफर में इस आंदोलन ने केंद्र व प्रदेश की बीजेपी सरकार की हर तोहमत और दमन चक्र का अपने तरह से जवाब दिया है।
किसान आंदोलन ने इतिहास के पन्नों में नई इबारत लिख दी है। दिल्ली के बार्डरों से हरियाणा,पंजाब के लिए निकला किसानों का ‘फतेह मार्च’ जश्न से ज्यादा सात सौ किसानों की शहादत का दशकों तक सालने वाला दर्द अपने में समाए रवाना हुआ। तीन कृषि कानूनों पर मोदी सरकार को झुकाने के बाद घरों की तरफ कूच करने वाले हर किसान के शब्द इस दर्द को बयां कर रहे थे। सिंघू बार्डर से लेकर अंबाला के शंभू बार्डर तक किसानों का कारवां सरकार का उन पर मुट्ठी भर किसान होने की तोहमत का एक बार फिर जवाब भी दे रहा था।
25 नवंबर 2020 वह तारीख थी जब दिल्ली कूच करने वाले किसानों की राह में हरियाणा पुलिस ने कांटे ही कांटे बिछा दिए थे। बड़े-बड़े बैरिकेड, रेत की बोरियों से भरे ट्रक व भारी डंपर सड़कों पर खड़े कर दिए गए थे। सर्द मौसम में भी वाटर कैनन से पानी की बौछारें व पुलिस की लाठियां किसानों पर बरसी थीं। लेकिन एक साल बाद 11 दिसंबर 2021 वह तारीख है जब केंद्र की सरकार से जंग फतेह कर आ रहे किसानों पर फूलों की बारिश हो रही थी।
लेकिन किसान किसी मुगालते में नहीं है। दिल्ली से लौट रहे किसानों का कहना था कि मोदी सरकार का यह कोई ह्रदय परिवर्तन नहीं है बल्कि वह इस आंदोलन में इतनी बुरी तरह घिर गई थी कि उसके पास और कोई रास्ता बचा नहीं था। अभी भी हमें सावधान रहना होगा क्योंकि यह सरकार अपनी राज्य सरकारों के जरिये इन कानूनों को दोबारा लागू करने की कोशिश करेगी। केंद्र की सरकार बड़े उद्योगपतियों के शिकंजे में है।
किसानों का कहना था कि हमने इस सरकार को झुकाया नहीं है बल्कि तोड़ा है। इनका गुरुर टूटा है। अपने एक साल के सफर में इस आंदोलन ने केंद्र व प्रदेश की बीजेपी सरकार की हर तोहमत और दमन चक्र का अपने तरह से जवाब दिया है।
सुबह दिल्ली के सिंघू बार्डर से निकलने शुरू हुए किसानों के ट्रैक्टर दोपहर बाद दो बजे तक अंबाला के शंभू बर्डर तक पहुंच चुके थे, लेकिन दिल्ली की सीमा से ट्रैक्टरों के निकलने का सिलसिला बदस्तूर जारी था। मतलब तकरीबन दो सौ किलोमीटर के रास्ते में जिधर नजर डालो उधर ट्रैक्टर की कतारें और किसान यूनियन के झंडे ही नजर आ रहे थे। कहीं-कहीं तो हालात ऐसे थे कि जाम के चलते वाहन रेंग रहे थे। साथ में अंबाला-दिल्ली हाईवे पर साथ लगते गांव के गांव किसानों के स्वागत के लिए उमड़ आए थे, जो इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश की राजधानी की सीमाओं पर बैठे किसान मुट्ठी भर नहीं थे।
एक अलग ही मंजर नजर आया। हर नजारा सरकार को जवाब था। पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र व अंबाला के शंभू बार्डर पर किसानों पर बरसते फूल, डीजे की धुनों पर नाचते युवा भी सरकार को अपने तरीके से जवाब दे रहे थे। हर तस्वीर ऐतिहासिक थी। कुछ खास थी। जो अपने आप सब कुछ बयां कर रही थी। किसानों का स्वागत करने और इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से बच्चों के साथ पूरे के पूरे परिवार आए हुए थे। एक साल से चंडीगढ़ के चौराहों पर किसानों के समर्थन में खामोशी से आंदोलन कर रहे छात्र, युवा, बच्चे और बुजुर्ग भी इन खास पलों के साक्षी बनने के लिए आए हुए थे। वहां आए तमाम परिवार ऐसे भी थे, जिनका किसान आंदोलन से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन किसानों के जश्न में शरीक होने की चाहत लिए वहां सुबह-सुबह ही पहुंच गए थे।
सिंघू बार्डर पर अपने तरह का माहौल था। किसानों ने एक साल में अपना पूरा संसार यहां बसा लिया था। यहां अपनी बनाई झोपडि़यां तोड़ते हुए भी उनकी भावनाएं छलक रही थीं। उनका कहना था कि खुशी से ज्यादा उन्हें दर्द है। सात सौ से ज्यादा किसानों की शहादत का दर्द तो ऐसा है, जो पीढि़यों तक सालता रहेगा। देश के प्रधानमंत्री की ओर से उन्हें आतंकवादी और आंदोलनजीवी जैसे शब्दों से नवाजे जाने की तकलीफ भी उनके दिलों में थी। उनका कहना था कि जब हम आए थे तो सरकार के प्रति आक्रोश से भरे थे और जब जा रहे हैं तो खुशी के साथ सीने में अथाह दर्द समेटे हैं। इस आंदोलन में किसी ने अपना बाप खोया, किसी ने बेटा तो किसी ने भाई। यदि वह आज साथ होते तो इसकी खुशी ही अलग होती।
हरियाणा-पंजाब सीमा पर अंबाला जिले का शंभू बार्डर वह बिंदू था, जहां दिल्ली कूच करते किसानों और पुलिस के बीच पहला टकराव हुआ था। आज यहां डांस करती महिलाएं और उमड़े हुजूम के बीच किसान कह रहे थे कि हमने दिल्ली कूच के वक्त ही ऐलान किया था कि या तो हमारी जीत होगी या हमारी लाशें वापस आएंगी। आज हमारे संकल्प की जीत हुई है। हमने छह महीने की तैयारी के साथ दिल्ली कूच किया था, लेकिन वहां पहुंचकर सरकार के रवैये ने हमें सालों डटे रहने का संकल्प लेने के लिए मजबूर किया, जिसकी वजह से सरकार झुकी।
इस आंदोलन ने कई और आयाम भी तय किए हैं। आंदोलन के दौरान न जाने कितने परिवारों के बीच रिश्तेदारियां हो गई हैं। न सिर्फ पंजाब और हरियाणा के बीच भाईचारे की मिसाल कायम हुई है बल्कि हिंदुओं और सिखों के बीच भी ऐसे संबंध बने हैं, जो दशकों तक सामाजिक सद्भाव के वाहक बनेंगे। यूपी के किसानों की बनाई गई छवि की दीवारें भी टूटी हैं। यूपी के किसानों का बार-बार धन्यवाद कर रहे पंजाब के किसान इस बात की तस्दीक कर रहे थे।
लेकिन इस एक साल में किसानों का सरकार से भरोसा बुरी तरह टूट गया है। जंग के बाद योद्धाओं की तरह वापसी कर रहे किसानों का कहना था कि आंदोलन सिर्फ स्थगित हुआ है। सरकार ने यदि वादे पूरे नहीं किए तो हम फिर वापस आएंगे।
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढू़नी का कहना है कि सरकार ने जो हमारे सीनों में दर्द दिया है वह हमेशा सताता रहेगा। हरियाणा के दूसरे छोर पर पंचकूला-शिमला हाईवे पर स्थित टोल पर साल भर से पक्का मोर्चा लगाए बैठे किसान गुरजंट सिंह, गुरमेल सिंह, मिलनप्रीत सिंह, विक्की मलिक और तरुणजीत ने भी कहा कि सरकार ने वादे पूरे नहीं किए तो हम फिर मोर्चा लगाने से पीछे नहीं हटेंगे।
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