किसान आंदोलनः बेनतीजा रही आज की भी बैठक, सरकार और किसान नेताओं के बीच हुई गर्मागरम बहस
दिल्ली के विज्ञान भवन में आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच आज हुई आठवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा खत्म हो गई। बैठक में सरकार के रवैये से नाराज एक किसान नेता ने नोट में लिखा- या मरेंगे या जीतेंगे।
विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली के विज्ञान भवन में आज हुई आठवें दौर की बैठक भी बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई है। आज की बैठक में फिर अगली बैठक की तारीख मिली है। अब 15 जनवरी को एक बार फिर इस मसले पर सरकार और किसान नेताओं के बीच बैठक होगी।
मिली जानकारी के अनुसार आज की बैठक में सरकार ने एक बार फिर साफ कर दिया कि वो कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी। वहीं किसानों ने भी फिर स्पष्ट कर दिया कि तीनों कृषि कानूनों के वापस हुए बिना वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। सरकार के रवैये से नाराज एक किसान नेता बलवंत सिंह ने बैठक के अंदर से ही कागज पर एक नोट लिखकर प्रदर्शित किया, जिसपर लिखा था- मरेंगे या जीतेंगे।
आज की बैठक के दौरान भी सरकार ने एक बार फिर एमएसपी पर लिखित आश्वासन और तीनों कृषि कानूनों पर एक संयुक्त कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसे किसान नेताओं ने भी फिर से खारिज कर दिया और कानूनों की वापसी की मांग पर कायम रहे। बैठक के बाद किसान नेता हन्नान मोल्ला ने कहा कि “आज की चर्चा काफी गर्म रही। हमने कहा कि हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा कुछ नहीं चाहते। हम किसी भी अदालत में नहीं जाएंगे, यह या तो रद्द किया जाएगा या हम लड़ना जारी रखेंगे। 26 जनवरी को हमारी परेड योजना के अनुसार होगी।”
बैठक से निकले भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि कानून निरस्त होने से पहले किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं। हम फिर से 15 तारीख को आएंगे। हम कहीं नहीं जा रहे हैं। सरकार संशोधनों के बारे में बात करना चाहती थी। हम क्लॉज वार चर्चाएं नहीं करना चाहते हैं। हम बस नए कृषि कानूनों को निरस्त करना चाहते हैं।
गौरतलब है कि केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 45 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी है। गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार और किसानों के बीच अब तक आठ दौर की वार्ता हो चुकी है। पिछली वार्ताओं में सरकार बिजली बिल और पराली जलाने के मुद्दे पर किसानों की मांग मान गई थी, लेकिन एमएसपी और विवादित तीनों कृषि कानूनों पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। जबकि किसानों ने साफ कर दिया है कि कृषि कानूनों को रद्द कराए बिना वे वापस नहीं जाने वाले।
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