किसान आंदोलन के 100 दिन: किसानों का संकल्प- 500 दिन भी लग जाएं तो भी कृषि कानून वापस कराकर ही लौटेंगे
किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे हो रहे हैं, क्या इस मौके पर कोई खास तैयारी की जा रही है, इस पर किसान कहते हैं, हम तारीखें या दिन नहीं गिन रहे, जब तक कृषि कानून वापस नहीं होते, और इसमें 100 क्या 500 दिन भी लग जाएं तो हम हटने वाले नहीं हैं।
सिंघु बॉर्डर...दिल्ली-सोनीपत सीमा का यह बॉर्डर बीते 100 दिन से किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र बना हुआ है। धरना स्थल पर पहले दिन यानी 26 नवंबर 2020 जैसी ही चहल-पहल है, किसानों के टेंट हैं, ट्रैक्टर-ट्रॉलियां हैं, लंगर हैं, नारे हैं, अस्थाई अस्पताल है...इस सबसे बढ़कर जो है वह है किसानों का संकल्प, केंद्र सरकार के लाए तीनों कृषि कानून वापस कराकर ही खेतों में लौटना है।
पिछले साल 26 नवंबर को जब सिंघु बॉर्डर पर किसानों का धरना शुरु हुआ था तो दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की तरफ आने वाले रास्ते पर बैरिकेड और अवरोधक तो लगाए थे, लेकिन लोगों को पैदल और कुछ विशेष मामलों में अपने वाहन से जाने की इजाजत थी। लेकिन अब धरना स्थल से कोई 4-5 किलोमीटर पहले से ही लोगों की आवाजाही एकदम बंद कर दी गई है। हमें पुलिस ने बताया कि अगर आपको धरनास्थल पर जाना है तो करीब के गांव का चक्कर लगाकर जाना होगा। मजबूरी में हमने यही रास्ता चुना, लेकिन बमुश्किल अभी डेढ़ दो किलोमीटर ही गए होंगे कि गांव की सड़क पर भी बड़े-बड़े बोल्डर लगा दिए गए ते जहां से बैट्री रिक्शा भी नहीं जा सकता था। वहां से हमने बैरिकेड के दूसरी तरफ जाकर रिक्शा लिया और आखिरकार करीब 6 किलोमीटर का चक्कर काटकर हम धरना स्थल पर पहुंचे।
हमें लगा था कि इन पाबंदियों के चलते किसानों के धरना स्थल पर कम लोग दिखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं था। यहां दूर-दूर तक ट्रैक्टर-ट्रॉलियां, किसानों के कैंप-तंबू, लंगर आदि पहले की ही तरह थे। किसानों की संख्या भी पहले ही जैसी थी। इतना ही नहीं, धर्ना स्थल के मुख्यमंच पर लगा टैंट और भी बड़ा और हवादार बना दिया गया है और उसमें बैठने के लिए बिछाए गए टेंट वाले कार्पेट केसाथ ही लिटलॉन (गद्देदार शीट) भी लगा दी गई है।
जो लोकल बाजार एकदम सिंघु बॉर्डर पर लगता था, वह वहां से उठकर अब धरने के बीच में ही किसानों के तंबुओं के आगे आ गया है। इनमें ज्यादातर स्थानीय दुकानदार हैं जो आसपास के गांवों के हैं, और कुछ दिल्ली से भी आते हैं। इनका कहना है कि किसानों ने ही उन्हें यहां अपनी दुकाने लगाने को कहा है ताकि उनके कारोबार पर असर न पड़े। इनमें कोई चप्पलें बेच रहा है, कोई किसान आंदोलन के नारे लिखी टी-शर्ट, कोई मोबाइल चार्जर तो कई कुछ और बेच रहा है। सबका धंधा भी ठीक-ठाक चल रहा है।
आगे बढने पर हमें किसान मजदूर एकता अस्पताल दिखा। यह करीब तीन चार तंबुओं में लगा अस्पताल है। इसमें ओपीडी है, लैब है, फार्मेसी है, डॉक्टर हैं। इतना ही नहीं गंभीर मरीजों को भर्ती करने की भी व्यवस्था है। करीब 8 बेड का अस्पताल है। अब तो इस अस्पताल ने बाकायदा एक तंबू में फर्श पर टाइल्स लगवा दीं हैं ताकि ‘इन-पेशेंट’ यानी भर्ती किए गए मरीजों की देखभाल आदि में दिक्कत न हो। यहां के इंचार्ज डॉक्टर अवतार सिंह ने बताया कि उन्होंने नवंबर में सिर्फ अपने साथी के साथ मिलकर लोगों की जांच और कुछ मामूली दवाएं देने का काम शुरु किया था। लेकिन फिर इन्होंने लाइफ केयर फाउंडेश के सहयोग से बाकायदा अस्पताल शुरु कर दिया।
डॉक्टर अवतार सिंह बताते हैं कि यहां आने वाले ज्यादातर किसानों को मामूली मौसमी बीमारियों की ही शिकायत रहती है, जिसका भरपूर इलाज किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल के लिए अब करीब तीन एमबीबीएस डॉक्टरों को रखा गया है, साथ ही प्रतिष्ठित अस्पतालों के विशेषज्ञ डाक्टरों के साथ संपर्क कर गंभीर मामलों में उनकी राय ली जाती है।
सिंघु बार्डर पर मौजूद किसान मुख्यत: तीनों कृषि कानूनों की वापसी की अपनी मांगों को लेकर ही डटे हैं, लेकिन हाल के दिनों में जो कुछ हुआ उसे लेकर उनके कई सवाल है। उनके सवाल हैं कि आखिर अहम मुद्दों पर अपनी ही सरकार से सवाल पूछना किया राष्ट्र विरोधी काम है? क्या किसानों को बुरा भला कहना और बेइज्जत करना सही है? मंच के नजदीक मौजूद किसान नरिंदर सिंह कहते हैं कि सरकार हमारे ऊपर कानून तोड़ने का आरोप लगाती है, लेकिन जब खुद ही संविधान का उल्लंघन करे तो इसका क्या किया जाए? वे कहते हैं कि जिस तरह से इन कानूनों को हमारे ऊपर थोपा गया है वह क्या सही है।
इसी दौरान पंजाब के सरहिंद से सिंघु बॉर्डर के लिए चला युवाओं का एक जत्था भी सिंघु बॉर्डर पहुंचा। इस जत्थे में करीब 50 लड़के-लड़कियां शामिल हैं। एस-टू-एस (यानी सरहिंद से सिंघु) यूनिटी टॉर्च रिले के नाम से इन लोगों ने अविराम करीब 200 किलोमीटर का रास्ता तय किया। इस जत्थे की अगुवाई करने वाले
कनाडा निवासी करम मान और विकी मान के नेतृत्व में पंजाबी यूनिवर्सिटी की छात्राएं एक मार्च को रिले टॉर्च रन पर निकले। पैदल और साइकिल के साथ रास्ते में भी किसानों के समर्थन में आगे बढ़े युवाओं का स्वागत किया गया। करम बाथ और विक्की मान ने बताया कि उनका इरादा किसानों के आंदोलन के प्रति समर्थन और रास्तें में लोगों को कृषि कानूनों के बारे में जागरुक करना था। विक्की मान ने कहा कि, “इस मार्च के जरिए हमने एकजुटता का संदेश दिया है और लोगों को बताया है कि किसान ही देश की रीढ़ हैं।” वहीं जत्थे में शामिल पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा पिंकी ने बताया कि वैसे तो उन्हें खेलों में काफी मेडल मिले हैं, लेकिन जिस दिन यह कृषि कानून वापस हो जाएंगे, वही उनके लिए सबसे बड़ा मेडल होगा।
सिंघु बॉर्डर पर अनुशासन बना रहे और किसी किस्म की गड़बड़ी न हो इसके लिए वॉलंटियर्स की टीम बनाई गई है। इस टीम में शामिल धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि वे 26 नवंबर से ही यहां हैं और अनुशासन का काम संभालते हैं। उनका कहना है कि उनके माता-पिता गांव में हैं, और वे इन तीन महीनों में एक बार भी गांव नहीं गए। उनके मुताबिक यहां जमीन बचाने की लड़ाई है।
क्या पुलिस-प्रशासन की पाबंदियों और सरकारी प्रभाव वाले मीडिया की खबरों से धरना स्थल पर लोगों का आना कम हुआ है, इस पर किसान रेजु सिंह कहते हैं कि मीडिया में जैसे ही खबरें चलती है कि किसानों की संख्या कम हो रही है, तो और अधिक किसान यहां पहुंच जाते हैं।
किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे हो रहे हैं, क्या इस मौके पर कोई खास तैयारी की जा रही है, इस पर अवतार सिंह कहते हैं, हम तारीखें या दिन नहीं गिन रहे, किसी का बर्थडे नहीं है, हम तो यहां तब तक हैं जब तक कृषि कानून वापस नहीं होते, और इसमें 100 क्या 500 दिन भी लग जाएं तो हम हटने वाले नहीं हैं।
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