लॉकडाउन में पहाड़ों पर भूखे-प्यासे फंसे प्रवासी मजदूर, तो मदद के लिए आगे आया हिमाचल का ये मशहूर स्कूल

हिमाचल प्रदेश के प्रतिष्ठित लारेंस सनावर स्कूल की पहले से चली आ रही एक परंपरा है, जिसमें टीबी मरीजों और अनाथालयों को समय-समय पर मदद दी जाती है और स्कूल के बच्चों को कमजोर वर्ग के जरूरतमंदों को अपने हाथों से भोजन देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

फोटोः भारत डोगरा
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भारत डोगरा

सुमित्रा मुर्मू झारखंड से गड़खल (हिमाचल प्रदेश का सोलन जिला) तक आई थी, क्योंकि उसे अपने परिवार के लिए कुछ पैसे कमाने की सख्त जरूरत थी। कुछ दिनों तक उसके लिए हालात ठीक थे, क्योंकि उसे एक निर्माण मजदूर के तौर पर काम मिल गया था। लेकिन लाॅकडाउन लागू होने के बाद न तो रोजगार बचा न ही भोजन। भूख से त्रस्त अपनी बेटी को देखने की हिम्मत उसमें नहीं थी। तभी किसी ने उसे बताया कि इस पंचायत क्षेत्र के एक प्रतिष्ठत लारेंस सनावर स्कूल द्वारा फंसे हुए मजदूरों को खाद्य सामग्रीे के बैग वितरित किये जा रहे हैं।

लगभग 140 मजदूरों के साथ सुमित्रा को भी एक बड़ा खाद्य सामग्री का बैग मिला, जिसमें 10 किलो चावल, 5 किलो आटा, 3 किलो दालें, 3 किलो खाद्य तेल, 3 किलो चीनी, 2 किलो नमक था। सुमित्रा ने मन ही मन तेजी से आकलन किया कि उपहार के रूप में मिली चीजें इतनी हैं कि लाॅकडाउन की अवधि बीतने के बाद भी कुछ बच ही जाएगा। यह सोचते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई कि अब वह कुछ मीठा भी बना सकेगी जिसका आग्रह उसकी बेटी कई दिन से कर रही थी।

लॉकडाउन में पहाड़ों पर भूखे-प्यासे फंसे प्रवासी मजदूर, तो मदद के लिए आगे आया हिमाचल का ये मशहूर स्कूल

सरफराज यहां कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए आया था, पर लाॅकडाउन में फंस गया। खाद्य सामग्री मिलने से उसकी कई समस्याएं खत्म हो गईं, जो आने वाले दिनों में बहुत विकट होने वाली थीं। उसे खुशी थी कि राहत वितरण में कोई भेदभाव नहीं हो रहा था और सभी को बहुत गरिमापूर्ण ढंग से समान राहत मिला। उसे खाद्य सामग्री के साथ मास्क, साबुन और सैनेटाइजर बांटने की विद्यालय की सोच भी अच्छी लगी। एक सफाई मजदूर टेक चंद ने कहा कि उसका परिवार 3 दिनों से भूखा था। यदि यह राहत सामग्री उसे नहीं मिलती तो आने वाले दिनों में समस्याएं बहुत तेजी से विकट हो जातीं।

कसौली के पर्यटन क्षेत्र के इस अर्द्ध-शहरी पंचायत क्षेत्र में स्थानीय लोग निर्माण और सफाई आदि के कामों के लिए मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान से आए प्रवासी मजदूरों पर आश्रित हैं। अप्रत्याशित लाॅकडाउन इन प्रवासी मजदूरों के लिए बहुत समस्याएं लेकर आया और विभिन्न चर्चाओं में इन समस्याओं पर बात भी हुई।

यही समय था जब स्कूल अधिकारियों ने गड़खल-सनावर पंचायत के प्रधान राजेन्द्र शर्मा से फंसे हुए प्रवासी मजदूरों और अन्य जरूरतमंदों तक राहत पंहुचाने के लिए अपने उपाय बताते हुए संपर्क किया। पंचायत ने प्रवासी मजदूरों और अन्य जरूरतमंदों से स्कूल अधिकारियों का सम्पर्क स्थापित करवाने में मदद की। यह राहत ऐसे समय में आई जब लोगों और परिवारों के अपने सीमित संसाधन समाप्त हो चुके थे और उनके दिमाग में बस यही चिंता थी कि लाॅकडाउन समाप्त होने तक जान कैसे बचे।

इस प्रतिष्ठित विद्यालय की पहले से चली आ रही परंपरा है, जिसमें टीबी मरीजों और अनाथालयों को समय-समय पर मदद दी जाती है और स्कूल के बच्चों को कमजोर वर्ग के जरूरतमंदों को अपने हाथों से भोजन देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। स्कूल के बच्चे पास के गांवों में जाकर स्वच्छता और शौचालय निर्माण के लिए श्रमदान भी करते रहे हैं।

स्कूल के हेडमास्टर हिम्मत सिंह ढिल्लों इस पहल को लेकर बहुत सक्रिय रहे। उनके अनुसार समुदाय को कठिन परिस्थितियों में प्रतिदान करना (लौटाना) हमारे शैक्षणिक लोकाचार का मूल रहा है। विद्यालय के पूर्व छात्रों एवं अध्यापकों की संस्था ‘द ओल्ड सनावरियन सोसायटी’ के प्रमुख मेजर जनरल कुलप्रीत सिंह (निवर्तमान) ने भी इस पहल में बहुत सहयोग किया। खाद्य सामग्री और रक्षक (सैनेटाईजेशन) सामग्री का वितरण गरिमामय ढंग से सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए किया गया। इस अवसर पर लोगों को जरूरी सावधानियों और रक्षा उपायों का महत्त्व भी समझाया गया।

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