पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया आगाह, कहा- मनमानी करने वाली सरकारों को सबक सिखाती है जनता
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि जो सरकारें मनमानी पर उतर आती हैं, अगले चुनाव में जनता उन्हें सबक सिखाती है और सत्ता से बाहर कर देती है। अटल बिहारी वाजपेयी मेमेरियल लेक्चर में मुखर्जी ने कहा कि बहुमत का अर्थ सबको साथ लेकर चलना होता है।
संशोधित नागरकिता कानून के खिलाफ देश भर में जारी प्रतिरोध और छात्रों पर पुलिस बर्बरता के परिप्रेक्ष्य में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आगाह किया है कि बहुमत का अर्थ सबके साथ लेकर चलना होता है मनमानी करना नहीं। उन्होंने चेताया कि जो सरकारें मनमानी पर उतर आती हैं उन्हें जनता अगले ही चुनाव में बाहर का रास्ता दिखा देती हैं। प्रणब मुखर्जी ने सत्तारुढ़ दलों को ‘बहुसंख्यकवाद’ के खिलाफ आगाह किया। उन्होंने कहा कि लोगों ने उन्हें संख्यात्मक बहुमत दिया होगा लेकिन अधिकतम मतदाताओं ने कभी किसी एक पार्टी को समर्थन नहीं दिया।
मुखर्जी का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष सत्ताधारी दल पर बहुसंख्यकवादी सरकार चलाने का आरोप लग रहा है। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर अपना संदेह भी जताया। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि यह संवैधानिक संशोधनों के बाद किया जा सकता है।
लेक्चर में प्रणब मुखर्जी ने वाजपेयी की आम सहमति बनाने वाले नेता के तौर पर तारीफ की। मुखर्जी ने कहा कि वाजपेयी ने सबको साथ लेकर काम किया। उन्होंने कहा कि 1952 से लोगों ने अलग अलग पार्टियों को मजबूत जनादेश दिया है लेकिन कभी भी एक पार्टी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं दिए हैं। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि चुनावों में बहुमत आपको एक स्थिर सरकार बनाने का अधिकार देता है।
पूर्व राष्ट्रपति ने लोकसभा की सीटें 543 से बढ़ा कर 1000 करने और राज्यसभा की सीटें भी बढ़ाने की हिमायत की। उन्होंने दलील दी कि भारत में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के लिए मतदाताओं की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा है। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि लोकसभा की क्षमता को 1977 में संशोधित किया गया था जो 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था और उस वक्त देश की आबादी 55 करोड़ थी। उन्होंने कहा कि आबादी तब से दोगुने से ज्यादा बढ़ गई है और परिसीमन पर लगी रोक को हटाने के लिए यह मजबूत दलील है। उन्होंने कहा कि आदर्श रूप से इसे (लोकसभा में सदस्यों की संख्या) बढ़ा कर 1000 कर दिया जाना चाहिए।
2012 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे मुखर्जी ने नया संसद भवन बनाए जाने के पीछे के तर्क पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे बहुत हैरानी होती है कि नये संसद भवन से भारत में संसदीय व्यवस्था के कामकाज में कैसे मदद मिलेगी या सुधार होगा।
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