अब भी वहीं, जहां से चले थे, गंगा का पानी न तो स्वच्छ हो पाया, न अविरल हुआ
हरिद्वार में योजना बनी थी कि सीवर के पानी को गंगा के बजाय ट्रीटमेंट कर नहरों के जरिये खेतों में पहुंचाया जाए। पीएम मोदी ने सितंबर 2020 में योजना का वर्चुअल उद्घाटन किया। उससे पहले ही नहर की पाइपलाइन जगह-जगह टूट गई। सीवर का पानी अब भी गंगा में ही जा रहा है।
अभी छठ पर्व के दौरान लाखों लोगों ने गंगा नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया। इनके अतिरिक्त भी लाखों लोग गंगा घाटों पर आए। पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गंगा की धारा साफ-सुथरी हो गई है, शायद ही कहीं किसी ने ऐसा महसूस किया होगा। असल में, इस सरकार की दिक्कत है कि यह उम्मीद तो हर क्षेत्र में जगा दे ती है, लेकिन उसके लिए जिस तरह योजना बनाकर काम करना चाहिए, वह हो नहीं पाता।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के साथ भी यही हुआ है। शुरू में साध्वी उमा भारती को यह काम दिया गया। लेकिन यह कोई धार्मिक कार्य तो था नहीं, इसलिए उन्हें बाद में मंत्री-पद से भी हाथ धोना पड़ा। नितिन गडकरी तेजतर्रार मंत्री माने जाते हैं, इसलिए 20 जनवरी, 2019 को नागपुर में बीजेपी की अनुसूचित जाति (एससी) मोर्चा की एक सभा को संबोधित करते हुए जब उन्होंने कहा कि ‘गंगा साफ होनी शुरू हो गई है और इस साल मार्च तक 30-40 प्रतिशत काम पूरा हो जाएगा और अगले साल 2020 में मार्च तक गंगा शत-प्रतिशत साफ हो जाएगी’ तो लोगों ने यकीन कर लिया।
दावा करने में क्या जाता है, तो उन्होंने यह भी कह दिया कि न सिर्फ गंगा बल्कि हम इसकी 40 सहायक नदियों की भी सफाई करने पर काम कर रहे हैं। यमुना की सफाई के लिए 800 करोड़ रुपये की परियोजनाएं जारी हैं। पर हुआ क्या? यमुना में तो दिल्ली में गंदगी के झाग इस छठ में भी दिखे। इस पर राजनीतिक झूमाझटकी भी हुई।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन अब केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के जिम्मे है। उनके साथ जो दो राज्य मंत्री हैं, उनमें प्रह्लाद पटेल भी हैं। पटेल कट्टर हिन्दुत्ववादी छवि वाले रहे हैं। मिशन की वेबसाइट- http://gisnmcg.mowr.gov.in/pmt/nmcgdashboard.html में बताया गया है कि पिछले 31 अक्तूबर तक कुल आवटितं 353 परियोजनाओं में से 170 पूरी हो चुकी हैं जबकि 150 पर काम चल रहा है। इन परियोजनाओं पर मार्च, 2021 में आवटितं राशि 29,990.16 करोड़ थी। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, अगस्त, 2021 तक इनमें से 11,842 करोड़ रुपये खर्चकिए जा चुके थे। 28 परियोजनाओं पर निविदा की प्रक्रिया चल रही है।
मतलब यह कि अभी आधे से भी कम पैसे खर्च हुए हैं और योजनाएं और उनके कार्यान्वयन की गति काफी धीमी है। सीएजी की रिपोर्टों को सरकार इन दिनों रोके रखती है, इसलिए ताजा स्थिति का आकलन करना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है। फिर भी, योजना पर सीएजी की 2017 की रिपोर्ट ने ही बता दिया था कि काम किस तरह चल रहा है। सीएजी ने जब जांच की थी, तब 7999.34 करोड़ रुपये आवटितं किए गए थे जिनमें से महज 2615.17 करोड़ रुपये ही खर्च हुए थे।
साल 2014-15 और 2016- 17 के दौरान 71 योजनाओं को अनुमति दी गई थी। इनमें से 70 योजनाओं को अनुमति 26 दिन से लेकर 1,140 दिन की देरी के साथ मिली। शेष बची हुई 83 योजनाओं को आज भी अनुमति का इंतजार है। दावा था कि योजना के तहत सितंबर, 2016 तक गंगा के किनारे पड़ने वाले शहरों, कस्बों और गांव की सीवेज व्यवस्था ठीक कर सीवरेज जल को इसमें गिरने से रोक दिया जाएगा। पर, इस साल 31 अक्तूबर तक की स्थिति यह है कि इसकी 71 योजनाओं पर अभी काम चल ही रहा है जबकि 17 पर अभी काम शुरू भी नहीं हुआ है।
हरिद्वार में तो गंगा की मुख्य धारा में पानी कम और पत्थर ज्यादा हैं। नालों का पानी गंगा में गिरने की निगरानी और जांच के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश पर ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन स्थानीय प्रशासन को अब भी पता नहीं है कि इस रिपोर्ट में क्या पाया जा रहा है। एक स्थानीय अफसर ने कहा कि ’मॉनीटरिंग ऊपर से हो रही है और कोई निर्देश नहीं आ रहा है, इसलिए पता भी नहीं कि रिपोर्ट क्या है।’
वैसे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 29 सितंबर को उत्तराखंड में 520 करोड़ की नमामि गंगे परियोजना की योजनाओं की शुरुआत करते हुए 24 करोड़ की नहर योजना का भी उद्घाटन किया था। फिर भी, करीब 110 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवरेज जल अब भी गंगा में बहाया जा रहा है, क्योंकि यह योजना उद्घाटन से पहले ही विफल हो चुकी थी। इस मामले में विभाग प्रमुख ने शिकायत पर जांच कराई थी और जांच रिपोर्ट में इन तथ्यों का खुलासा हुआ था। अधीक्षण अभियंता मनोज कुमार सिंह और अधिशासी अभियंता डीके सिंह ने भी इसकी पुष्टि की है।
गंगा जल की होने वाली नियमित जांच में पाया गया है कि गोमुख से गंगासागर तक के करीब 2,500 किलोमीटर के रास्ते में रोजाना 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित जल-कचरा किसी न किसी रास्ते गंगा में आज भी गिर रहा है। लेकिन गंगा सिर्फ रास्ते में ही प्रदूषित नहीं होती जाती। गंगोत्री में भी लगभग यही हाल है। राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित गंगोत्र में असी गंगा में गिर रही गंदगी को देखकर ही कोई समझ सकता है कि जिम्मेदार प्रशासन क्या कर रहा है।
गंगोत्री धाम घूमने आए दिल्ली निवासी श्रद्धालु सचिन भारद्वाज और राजेश मल्लिक ने इस लेखक से कहा कि यहां भी नदी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। जैसा अन्य इलाकों में होता है, उसी तरह यहां भी अगर कोई जानवर मर रहा है तो उसे लोग गंगा में बहा दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री-पद की दावेदारी करते हुए मोदी ने 2014 में बनारस की पहली रैली में कहा था कि मां गंगा ने उन्हें बुलाया है। लेकिन यहां भी नदी बेहाल है। यहां एक साल में 33,000 से अधिक शवदाह होते हैं। इसमें हरिद्वार, कानपुर, प्रयागराज सहित अन्य नगरों की संख्या जोड़ दें, तो यह कई लाख में पहुंच जाती है। अकेले बनारस में औसतन 700 टन से अधिक अधजले कंकाल को रोजाना सीधे गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है।
कोरोना काल में शवों को गंगा में बहा देने की बात छोड़ दें, तब भी अकेले बनारस का यह हाल है, तो गंगा किनारे बसे अन्य धार्मिक तीर्थ, शहरों, कस्बों और गांवों की स्थिति का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। धर्मनगरी हरिद्वार में देश-दुनिया से लोग अस्थि प्रवाह करने आते हैं। अनुमान लगाना आसान है कि इससे गंगा कितनी प्रदूषित हो रही है। इस कर्मकांड की उचित व्यवस्था के बारे में तो अभी सोचा भी नहीं गया है।
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Published: 12 Nov 2021, 5:01 PM