अडानी ग्रुप का भीषण आपदा में भी हिमाचल के सेब बागवानों से रेट का खेल, फूटा गुस्सा, पहली बार समूह का बायकाट
ऐसे समय जब हिमाचल प्रदेश सदी की सबसे भीषण आपदा का सामना कर रहा है अडानी ग्रुप बाजार से कम रेट घोषित कर एक बार फिर सेब बागवानों के साथ खेल कर रहा है। इस पर सेब किसानों का गुस्सा फूट पड़ा है और उन्होंने पहली बार प्रदेश में अडानी ग्रुप का बायकाट किया है।
ऐसे वक्त में जब हिमाचल प्रदेश सदी की सबसे भीषण आपदा का सामना कर रहा है उद्योगपति गौतम अडानी यहां के सेब कारोबार में अवसर तलाश रहे हैं। मौसम की मार ऐसी पड़ी है कि सेब का उत्पादन आधा रह गया है। सेब बागवान मुश्किल में हैं। हिमाचल की जीडीपी में करीब 13.5 फीसदी योगदान देने वाली और लाखों लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार देने वाली सेब बागवानी ने शायद ही कभी इतने बड़े संकट का सामना किया हो। लेकिन ऐसे दौर में भी प्रदेश की सेब मार्केट का सबसे बड़ा खिलाड़ी बना बैठा अडानी ग्रुप बाजार दरों से सेब के कम रेट घोषित कर एक बार फिर सेब मार्केट के साथ खेल कर रहा है। बागवानों का कहना है कि अडानी ग्रुप आपदा का ही ख्याल कर लेता। यही हाल रहा तो हिमाचल में बागवानी तबाह हो जाएगी।
जब दिल्ली में हो रही जी-20 की बैठक के खुमार में पूरे देश को डुबो दिया गया है और 18 से 22 सितंबर तक होने वाले संसद सत्र के कल्पनालोक में पूरे देश की मीडिया को डाल दिया गया है उस वक्त देश के एक बेहद शांतिप्रिय प्रदेश हिमाचल के किसान गुहार लगा रहे हैं, क्योंकि पहाड़ी प्रदेश की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली सेब बागवानी संकट में है। सेब की फसल पर भी इस वर्ष मौसम की ऐसी मार पड़ी है कि उत्पादन बेहद प्रभावित हुआ है। इस मुश्किल समय में भी अडानी की कंपनी ने एक बार फिर रेट का खेल शुरू कर दिया है।
अडानी ग्रुप ने 24 अगस्त को प्रीमियम सेब के रेट 60 से 95 रुपए प्रति किलो खोले। उसने कहा कि लार्ज मीडियम और स्माल साइज के प्रीमियम सेब की खरीद 95 रुपए में होगी। शर्त यह कि प्रीमियम सेब का रंग 90 से 100 प्रतिशत होना चाहिए। एक्स्ट्रा स्मॉल सेब 85 रुपए, एक्स्ट्रा लार्ज सेब 60 रुपए, पीतू सेब 65 रुपए और अंडर साइज सेब 20 रुपए में खरीदा जाएगा। बागवानों का कहना था कि प्रीमियम गुणवत्ता वाला सेब जब बाजार में 130 से 160 रुपये में बिक रहा है, तब अडानी ने 95 रुपए का रेट खोला है। ऐसे में अडानी ग्रुप की मार्केट रेट गिराने की यह साजिश है।
प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेब में 80 से 100 फीसदी रंग होने की अडानी ग्रुप की शर्त को भी बागवानों ने बेमानी बताया है। उनका कहना था कि मौसम की मार से इतनी गुणवत्ता वाला सेब इस बार काफी कम है। जब हंगामा बरपा तो अडानी एग्रो फ्रेश ने सेब के दाम 10 रुपये और बढ़ा दिए। अब अडानी ग्रुप ने कहा कि प्रीमियम सेब वह 95 रुपए की जगह 105 रुपए में खरीदेगा। इस पर बागवानों का कहना था कि मार्केट में प्रीमियम सेब का रेट पहले से ही 130 से 150 रुपए तक चल रहा है। ऐसे में अडानी को भी रेट बढ़ाना था तो इसी दर पर खरीद करनी चाहिए थी।
प्रीमियम सेब के अलावा एक्स्ट्रा स्मॉल सेब 91 रुपए, एक्स्ट्रा लार्ज सेब 66 रुपए, पीतू सेब 66 रुपए और सुप्रीम गुणवत्ता वाला सेब 56 से 68 रुपए में खरीदने का ऐलान किया। सुप्रीम गुणवत्ता वाले सेब में शर्त रखी कि इसमें 60 से 80 फीसदी रंग वाला सेब आएगा। इससे कम रंग वाला सेब 25 रुपए में खरीदा जाएगा। अंडर साइज सेब 20 रुपए में खरीदा जाएगा। बागवानों ने फिर कहा कि यह रेट भी बाजार दरों से काफी कम हैं। सरकार इसमें दखल दे और अडानी एग्रो फ्रेश प्रबंधन के साथ मीटिंग बुलाए। फिर हंगामा हुआ तो अडानी एग्रो फ्रेश ने 5 रुपये और रेट बढ़ा दिए, लेकिन सवाल यह है कि अडानी ग्रुप ऐसा करता क्यों है।
दरअसल, अडानी ग्रुप का हिमाचल में यह खेल तभी से चल रहा है जब से उसकी नजर हिमाचल प्रदेश के सेब पर पड़ी है। 2022 में अडानी एग्रोफ्रेश ने ए ग्रेड के प्रीमियम सेब के लिए 76 रुपये प्रति किलो शुरुआती कीमत देने का ऐलान किया, जो 2021 में 72 रुपये थी। इससे पहले 2020 में 88 रुपये प्रति किलो दिया था। अडानी ग्रुप किसी नियम-कानून को नहीं मानता है। दुर्भाग्य यह है कि अडानी एग्रीफ्रेश हिमाचल में सेब मार्केट का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। हिमाचल की कुल जीडीपी का 13.5 फीसदी सेब की खेती से आता है। पिछले वर्ष तकरीबन 5500 करोड़ा का सेब का कारोबार बताया जा रहा है। पिछले वर्ष भी यह हालत हो गई थी कि अडानी ग्रुप की सेब के रेट को लेकर मनमानी के विरोध में सेब बागवानों ने जेल भरो आंदोलन तक किया था।
हिमाचल की सेब मार्केट पर अडानी ने आहिस्ता-आहिस्ता कब्जा किया है। पहले हिमाचल का सारा सेब दिल्ली की आजादपुर मंडी जाता था। फिर स्थानीय स्तर पर छोटी-मोटी मंडियां खुलीं। बागवानों से छोटे व्यापारी सेब खरीदकर देश भर में वितरण करने लगे। इन व्यापारियों ने स्थानीय मंडियों में अपने छोटे-छोटे गोदाम खोल रखे थे। अचानक अडानी की नजर इस कारोबार पर पड़ी और पूरा परिदृश्य बदल गया। अडानी ने शिमला जिले के सैंज, बिथल और रोहड़ू में अपने पैसे के दम पर हाईटेक गोदाम स्थापित किए। यह गोदाम छोटे व्यापारियों के गोदामों से हजारों गुना बड़े और आधुनिक सुविधाओं से युक्त थे।
फिर अडानी ने अपना खेल शुरू किया। जो सेब छोटे व्यापारी किसानों से 20 रुपये किलो के भाव पर खरीदते थे वह अडानी ने 25 रुपये में खरीदना शुरू किया। अगले साल यही रेट अडानी ने 30 रुपये कर दिया। इससे हुआ यह कि धीरे-धीरे छोटे व्यापारी यहां खत्म होते गए। अडानी से मुकाबला करना इन छोटे व्यापारियों के बस में नहीं था। जब अडानी का एकाधिकार हो गया तो तीसरे साल अडानी ने सेब के रेट कम कर दिए। अब छोटा व्यापारी वहां बचा नहीं। बागवानों की मजबूरी हो गई कि वह अडानी को अपना सेब बेचे। यही सेब अडानी की कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में 200-250 रुपये में बेचती है।
शिमला की सेब बेल्ट ठियोग से विधायक और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने पिछली बीजेपी सरकार में अडानी की इन कारगुजारियों के खिलाफ कई आंदोलन किए हैं। उन्होंने नवजीवन से विशेष बातचीत में कहा कि यहां लोगों के पास बागवानी के अलावा कोई और व्यापार या जीविका का साधन नहीं है। यह इसी का फायदा उठाते हैं। अडानी के कम रेट खोलने के बाद सेब मार्केट गिर जाती है, जिससे बागवानों का काफी नुकसान हो होता है।
पहली बार अडानी ग्रुप का बायकाट
हिमाचल प्रदेश में यह पहली बार है कि अडानी ग्रुप का किसानों ने बायकाट किया है। हिमाचल में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक हरीश चौहान ने नवजीवन से विशेष बातचीत में कहा कि 24 अगस्त को जब पहली बार अडानी ग्रुप ने प्रीमियम सेब का 20 से 95 रुपये प्रति किलो का रेट खोला तो किसानों ने उनका बायकॉट कर दिया। उस वक्त इसी प्रीमियम सेब के दाम ओपन मार्केट में 150-160 रुपये प्रति किलो चल रहे थे, लेकिन अडानी ने जानबूझकर कम रेट खोले। जब किसानों ने बायकाट किया तो 10 रुपये और रेट बढ़ा दिए। किसानों ने फिर विरोध किया तो 5 रुपये और बढ़ा दिए।
हरीश चौहान कहते हैं कि हिमाचल में इतनी भयावह डिजास्टर के बावजूद अडानी ग्रुप ने यहां के किसानों के साथ ऐसा किया। उनके मुताबिक 18 कंपनियां हिमाचल में सेब खरीदती हैं। लेकिन सभी कंपनियां अडानी के रेट खोलने के बाद उसी के आसपास अपने रेट रखती हैं। चूंकि अडानी ग्रुप हिमाचल की सेब मार्केट का सबसे बड़ा खिलाड़ी है, इसलिए अडानी के रेट खोलते ही मार्केट क्रैश कर जाता है। हरीश चौहान कहते हैं कि पहली बार अडानी ग्रुप के बायकाट का ही नतीजा है कि इस बार उसे खुले मार्केट में सेब खरीदने के लिए कूदना पड़ा है। इसके बावजूद अभी तक महज 4000 मीट्रिक टन सेब ही अडानी को मिल पाया है, जो तकरीबन 25000 मीट्रिक टन क्षमता वाले अडानी के गोदामों के लिए बहुत कम है।
हरीश चौहान कहते हैं कि लेकिन बायकॉट सेब बागवानों के लिए स्थायी समाधान नहीं है। जिस वर्ष फसल अच्छी होगी उस वर्ष किसान कहां जाएगा। फिर किसान यह सोचता है कि चलो पैसे कम ही सही मिल तो रहे हैं। फिर वह अडानी के गोदाम जाने के लिए मजबूर होगा। इसी का फायदा यह बड़े कारोबारी उठाते हैं। जैसे इस वक्त दिल्ली में चल रही जी-20 की बैठक के चलते हिमाचल का सेब बाजार तक नहीं जा पा रहा है। हरीश चौहान कहते हैं कि स्थायी समाधान के लिए सरकार को इन कंपनियों के लिए कोई ऐसा सिस्टम बनाना होगा कि यह न्यायसंगत रेट देने के लिए मजबूर हों। हरीश चौहान कहते हैं कि प्रदेश की यह सरकार उनकी कम से कम सुन तो रही है। बीजेपी की पिछली सरकार तो उनकी कोई बात सुनने के लिए ही तैयार नहीं थी। यहां तक कि अडानी ग्रुप सरकार के साथ बैठकों में अपना कोई उचित प्रतिनिधि तक नहीं भेजता था।
सुक्खू सरकार के एक कदम से बिगड़ा अडानी का खेल
प्रदेश की कांग्रेस सरकार के एक निर्णय से भी बागवान अडानी के खेल से सचेत हो गए, जिसके चलते उन्होंने इस बार अडानी के गोदामों से मुंह मोड़ लिया। राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इस बार सेब किलो के हिसाब से ही बिकेगा। इससे पहले सेब वजन के हिसाब से बिकने की जगह गड्ढ में बिकता था, जिसमें बागवान 20 किलो की पेटी में 35 से 40 किलो तक सेब भर देते थे। इससे बागवानों को यह पता नहीं चल पाता था कि उनका सेब कितने रुपए किलो बिका है। नतीजे में बागवानों को हर साल करोड़ों का नुकसान होता था। कांग्रेस सरकार के प्रदेश में पहली बार सेब किलो के हिसाब से बेचने की व्यवस्था से बागवान समझ पाए कि ओपन मार्केट में क्या रेट है और अडानी उन्हें क्या रेट दे रहा है।
हिमाचल में अडानी के पास 3 विशाल गोदाम
हिमाचल प्रदेश में अडानी एग्रो फ्रेश के पास 25,000 मीट्रिक टन क्षमता के 3 सीए (कंट्रोल्ड एटमास्फियर) स्टोर हैं। यह ठियोग के सैंज, रोहड़ू के मेहंदली और रामपुर के बिथल में हैं। बिथल प्लांट की क्षमता 10,000, सैंज की 7500 और मेहंदली प्लांट की 7500 मीट्रिक टन क्षमता है। इस बार अडानी ग्रुप ने 24 अगस्त से सेब की खरीद हिमाचल में शुरू की है, जबकि पिछले वर्ष 15 अगस्त से सेब खरीदना शुरू किया था।
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