नहीं रहे हिंदी के मशहूर कवि विष्णु खरे, हफ्ते भर पहले हुआ था ब्रेन हेमरेज
9 फरवरी 1940 को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जन्मे विष्णु खरे ने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए करने के बाद हिंदी पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की। साहित्य और मीडिया में उनकी दमदार उपस्थिति लगातार बनी रही।
हिंदी के वरिष्ठ कवि विष्णु खरे का आज दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में निधन हो गया। हफ्ते भर पहले ब्रेन हेमरेज के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी हालत लगातार गंभीर बनी हुई थी। विष्णु खरे दिल्ली की हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे। इसी साल 30 जून को उन्होंने अकादमी का कार्यभार संभाला था।
9 फरवरी 1940 को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जन्मे विष्णु खरे ने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए करने के बाद हिंदी पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की। वे कुछ समय तक 'दैनिक इन्दौर' में उप संपादक रहे। बाद में उन्होंने दिल्ली, लखनऊ और जयपुर में नवभारत टाइम्स के संपादक का काम संभाला। वे साहित्य अकादमी के उपसचिव भी रहे। साहित्य और मीडिया में उनकी दमदार उपस्थिति लगातार बनी रही।
उन्होंने मशहूर ब्रिटिश कवि टीएस इलियट का अनुवाद किया जो पुस्तक रूप में ‘मरु प्रदेश और अन्य कविताएं’ नाम से छपा। उनका पहला कविता संग्रह ‘एक गैर रूमानी समय में’ था। कई कविता पुस्तकों के अलावा उन्होंने आलोचना की किताबें भी लिखीं और समकालीन हिन्दी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।
प्रकाश मनु ने विष्णु खरे पर ‘एक दुर्जेय मेधा’ नाम से एक किताब लिखी थी जिसके ब्लर्ब पर सही ही लिखा है, “विष्णु खरे समकालीन कविता के सबसे जटिल, विलक्षण और शक्तिशाली कवि हैं जिन्होंने कविताएं सिर्फ लिखी ही नहीं, बल्कि अपने बाद में आने वाले कवियों की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है। एक तरह से विष्णु खरे की कविताएं समकालीन हिन्दुस्तानी समाज का आईना ही नहीं, ‘इतिहास’ भी हैं।”
विष्णु खरे की एक प्रसिद्ध कविता है:
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो
सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था
देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे
सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें
पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो
लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी
डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर
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