आपातकाल सिर्फ अतीत नहीं, वर्तमान भी है

टीवी चैनलों के जाने-पहचाने चेहरे उन दिनों की धुंधला चुकी तस्वीरें और वीडियो दिखा रहे हैं ताकि बाद में जन्मे लोगों को यह पता चल सके कि आपातकाल क्या था। लेकिन 24 घंटे सातों दिन वाली आज की मीडिया के दौर में ध्यान की सीमाएं सिकुड़ रही हैं। आज का रंगमंच एक ही समय में भ्रम के कई स्तरों पर घटित होता है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

आज 26 जून है और 42 साल बाद सारे लोग उन ‘अंधेरे दिनों’ की याद साझा कर रहे हैं जो तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा 1975 में आपातकाल लागू करने के साथ शुरू हुआ था। इस मौके पर टीवी चैनलों के जाने-पहचाने चेहरे उन दिनों की धुंधला चुकी तस्वीरें और वीडियो दिखा रहे हैं ताकि बाद में जन्मे लोगों को यह पता चल सके कि आपातकाल क्या था। जुलूस, उत्तेजित मानव श्रृंखला, बड़े नेताओं की ढृढ़ छवियां हर दृश्य में दिखाई देती हैं। पुराने फुटेज में विस्तृत साक्षात्कारों और चर्चाओं की बजाय ज्यादातर दूर से लिए गए शॉट्स हैं जिन्हें उस समय का कैमरा पसंद करता था।

लेकिन 24 घंटे सातों दिन वाली आज की मीडिया के दौर में ध्यान की सीमाएं सिकुड़ रही हैं। आज का रंगमंच एक ही समय में भ्रम के कई स्तरों पर घटित होता है। शताब्दी वर्ष के बाद जन्मे युवाओं के लिए चार दशक पहले के नायकों और खलनायकों से आगे आज का बड़ा भारत है जिस पर इंटरनेट का कब्जा है। इंटरनेट पर युवाओं का ज्यादा सरोकार और भ्रम मौजूदा सत्ता को लेकर है। इसके अलावा उपभोक्ता और हाजिर-जवाब टिप्पणीकारों के तौर पर मीडिया तक उनकी मुक्त पहुंच भी उनके सरोकार का हिस्सा है। वे बहुत जल्दी यह जानना चाहते हैं कि मौजूदा शासन में कौन महत्वपूर्ण है और कौन नहीं? वे इन तथ्यों के बारे में सोचते हैं: पूर्व वित्त मंत्री ने फिर से अपने पुराने मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं संभाली है। फिलहाल जो पदस्थ हैं उन्हें अभी तक आधिकारिक रूप से उनका उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया गया है। मंत्रालय के इतिहास में पहली बार मुख्य आर्थिक सलाहकार इसलिए अपना पद छोड़कर चले गए क्योंकि वे बहुत जल्द दादा/नाना बनने वाले हैं। और अभी उनकी जगह पर किसी और का आना बाकी है, उसी बीच यह भी पता चल रहा है कि वित्त सचिव ने योगा और ध्यान की छुट्टी के बाद वापस पूरी तरह से मंत्रालय का कार्यभार नहीं संभाला है।

अपने विरोधी पर निशाना साधने की ताक में रहने वाले ट्वीटर पर कई सारे एनडीए-समर्थक युवा कांग्रेस की आलोचना करने वाली ट्वीट में अपनी औपचारिक पटकथा से भटक रहे हैं और खलनायक कांग्रेस और ‘परिवार’ की निंदा कर रहे हैं, हालांकि यह पता नहीं कि 1975 में उनका जन्म हुआ भी था या नहीं, या फिर वे स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चे थे।

इसलिए जब कांग्रेस नेता अशोक गहलोत यह ट्वीट करते हैं, “हमारे प्रधानमंत्री अपने योगा वीडियो का प्रचार करने में व्यस्त हैं और बीजेपी अध्यक्ष इस खबर को दबाने में लगे हैं कि कैसे काले धन को सफेद किया जाए”, तो त्रिपुरा के युवा मुख्यमंत्री अतीत में गोते लगा देते हैं। वे “भय के साथ आपातकाल के उन अंधेरे दिनों को याद करते हैं जब कांग्रेस सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया था।” ट्वीटर पर एक हाजिर-जवाबी शख्स ने यह तथ्य बताया कि उनका आधिकारिक जन्मदिन 1969 है। इसका मतलब वे उस वक्त सिर्फ 6 साल के थे।

यहां तक कि पूर्व वित्त मंत्री भी, जो अपनी संयम और सीधी बातचीत के लिए जाने जाते हैं, ब्लॉग लिख रहे हैं और ट्वीट कर रहे हैं। इस वक्त वे एक बड़े लेकिन सफल सर्जरी के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। उन्होंने ट्वीट में लिखा, “आपातकाल का सबक यह है कि जब आप अभिव्यक्ति की आजादी पर बंदिश लगाते हैं और सिर्फ प्रचार को चलने देते हैं, तब आप प्रचार के पहले पीड़ित बन जाते हैं क्योंकि आप इस पर विश्वास करना शुरू कर देते हैं कि प्रचार ही सच है और पूरा सच है।”

यह समझदारी भरा सुझाव उनसे आया है जो हकीकत में आपातकाल के दौरान विरोध में खड़े थे। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने तुरंत ही टिप्पणी की, “कितना सही। इससे जितना भी सहमत हुआ जाए कम है। मुझे लगता है कि आपको अपनी पार्टी और कैबिनेट के सहयोगियों के सामने इसे जोर-जोर से पढ़कर सुनाना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और वे आपातकाल के वर्षों के दौरान सक्रिय थे)

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Published: 26 Jun 2018, 8:22 PM