छठे चरण में झारखंड में 4 सीट पर चुनाव, NDA हैट्रिक-चौके की ताक में, इंडिया गठबंधन की बोल्ड करने की तैयारी
रांची सीट पर 1991 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें परंपरागत रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच टक्कर रही है। इस बार भी वही तस्वीर है। यहां बीजेपी के संजय सेठ और कांग्रेस की यशस्विनी सहाय एक-दूसरे के आमने-सामने हैं।
लोकसभा चुनाव के छठे चरण में 25 मई को झारखंड की जिन चार लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, उनमें से दो धनबाद और गिरिडीह पर एनडीए के लिए लगातार चौथी जीत दर्ज करने और दो अन्य सीट रांची और जमशेदपुर पर हैट्रिक लगाने का मौका है। हालांकि, सभी जगहों पर इस बार उसे 'इंडिया' गठबंधन से कड़ी टक्कर मिल रही है।
रांची सीट पर 1991 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें परंपरागत रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच टक्कर रही है। इस बार भी वही तस्वीर है। यहां बीजेपी के संजय सेठ और कांग्रेस की यशस्विनी सहाय एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। यहां 2014 में बीजेपी के रामटहल चौधरी ने दो टर्म (2004 और 2009) के सांसद सुबोधकांत सहाय को हराकर कांग्रेस से सीट छीनी थी। 2019 में बीजेपी ने रामटहल चौधरी का टिकट काटकर संजय सेठ को उतारा था। उन्होंने कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को 2 लाख 82 हजार 780 मतों से पराजित किया था।
इस बार कांग्रेस ने सुबोधकांत सहाय को उम्र के तकाजे के आधार पर चुनाव मैदान से किनारे रखा और बदले में उनकी बेटी यशस्विनी सहाय को उतार दिया। यशस्विनी राजनीति में बेशक नई हैं। लेकिन, उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का दशकों पुराना अनुभव उनके साथ है। इसी की बदौलत वह बीजेपी प्रत्याशी संजय सेठ को टक्कर देती दिख रही हैं। हिन्दुत्व, मोदी लहर और शहरी वोटर संजय सेठ की ताकत हैं, तो यशस्विनी को आदिवासी, मुस्लिम और क्रिश्चियन मतों की गोलबंदी का भरोसा है।
इसी तरह जमशेदपुर सीट पर बीजेपी ने लगातार दो टर्म जीतने वाले सांसद विद्युत वरण महतो पर तीसरी बार भी भरोसा जताया है। यहां उनका मुकाबला जेएमएम के समीर मोहंती से है, जो फिलहाल इसी संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बहरागोड़ा क्षेत्र के विधायक हैं। दिलचस्प बात यह है कि विद्युत वरण महतो और समीर मोहंती दोनों इसके पहले एक साथ बीजेपी और जेएमएम दोनों पार्टियों में रह चुके हैं। दोनों में अच्छी दोस्ती भी रही है।
इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले छह में से पांच विधानसभा क्षेत्रों में 'इंडिया' गठबंधन के विधायक हैं, जबकि एक विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं। बीजेपी प्रत्याशी को पार्टी के कोर शहरी मतदाताओं के अलावा कुर्मी समुदाय पर सबसे ज्यादा भरोसा है। जबकि, जेएमएम प्रत्याशी ने आदिवासी, मुस्लिम और उड़िया समाज के मतदाताओं के आधार पर अपने पक्ष में समीकरण तैयार करने की कोशिश की है।
धनबाद सीट पर बीजेपी ने लगातार तीन बार जीत दर्ज करने वाले पीएन सिंह को उम्र के तकाजे की वजह से टिकट नहीं दिया और उनकी जगह बाघमारा इलाके के विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला कांग्रेस की अनुपमा सिंह से है। दोनों उम्मीदवार पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अनुपमा राजनीति में बिल्कुल नई हैं। लेकिन, उनका संबंध एक स्थापित राजनीतिक घराने से है। उनके पति अनूप सिंह बेरमो इलाके से कांग्रेस के विधायक हैं। ढुल्लू महतो हिंदुत्व, पिछड़ा वर्ग और स्थानीयता के फैक्टर की बदौलत संसद पहुंचने की उम्मीद बांधे बैठे हैं, तो, दूसरी तरफ अनुपमा सिंह धनबाद में बिहारियों की बड़ी आबादी और सवर्णों के एक बड़े तबके को साधकर लड़ाई में जीत हासिल करने की फिराक में हैं।
गिरिडीह सीट 2009 से लगातार एनडीए के कब्जे में है। यहां से वर्ष 2009 और 2014 में बीजेपी के रवींद्र पांडेय ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 में यह सीट एनडीए ने अपनी सहयोगी पार्टी आजसू को दे दी। आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने पिछले चुनाव में जेएमएम के जगरनाथ महतो को पराजित कर एनडीए का कब्जा बरकरार रखा। इस बार फिर वह एनडीए के प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला इस बार जेएमएम के प्रत्याशी विधायक मथुरा महतो से माना जा रहा है। यहां झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) से ताल्लुक रखने वाले निर्दलीय जयराम महतो भी मुकाबले में एक मजबूत कोण माने जा रहे हैं। ये तीनों प्रत्याशी कुर्मी जाति से आते हैं और इस वजह से यहां का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है।
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