एडिटर्स गिल्ड ने नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा की मांग की, पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने की जताई आशंका

एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि बीते वर्षों और अलग-अलग सरकारों के दौरान आपराधिक कानूनों के कई प्रावधानों का उन पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए खुलेआम उपयोग किया गया है जिनकी रिपोर्टिंग में सरकार की आलोचना होती है।

एडिटर्स गिल्ड ने नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा की मांग की
एडिटर्स गिल्ड ने नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा की मांग की
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पीटीआई (भाषा)

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पिछले महीने लागू किए गए नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा की मांग करते हुए कहा कि इन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने की आशंका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में गिल्ड ने कहा कि बीते वर्षों और अलग-अलग सरकारों के दौरान आपराधिक कानूनों के कई प्रावधानों का उन पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए खुलेआम उपयोग किया गया है जिनकी रिपोर्टिंग में सरकार की आलोचना होती है।

पत्र में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 153बी, 295ए, 298, 502 और 505 का पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है। एडिटर्स गिल्ड ने शाह को 29 जुलाई को लिखे अपने पत्र में कहा, “विभिन्न राज्यों और अलग-अलग दलों की सरकारों ने ऐसा किया है।” गिल्ड ने किसी पत्रकार के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने से पहले अतिरिक्त स्तर की समीक्षा का सुझाव दिया है।


पत्र में कहा गया है, “हमें लगता है कि कि प्रेस/मीडियाकर्मियों के कामकाज के दौरान उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अभियोजन को विनियमित करने के लिए गहन परामर्श और कुछ दिशानिर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।” गिल्ड ने कहा कि किसी पत्रकार के खिलाफ शिकायत की समीक्षा एक उच्चस्तरीय पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए और इसे भारतीय प्रेस परिषद के ध्यान में लाया जा सकता है।

इसने कहा कि नए आपराधिक कानूनों से कानून-प्रवर्तन एजेंसियों की शक्तियां बढ़ी हैं, जो अधिक चिंता का विषय है। गिल्ड ने पत्र में कहा, “अब, भारतीय दंड संहिता, 1860 एवं दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की जगह क्रमशः भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की अधिसूचना जारी होने के बाद हमें लगता है कि चिंताएं और बढ़ गई हैं।”

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