भारत में 'नरसंहार' के शुरुआती संकेत, जेनोसाइड वॉच ने जारी की प्रारंभिक चेतावनी
जेनोसाइड वॉच ने 2016 में अमेरिकी कांग्रेस से आईएसआईएस पर प्रतिबंध लगाने और उस पर मुकदमा चलाने का आग्रह किया था। 6 साल बाद, 2022 में इसने एक बार फिर ऐसा ही आग्रह किया है कि भारत को चेतावनी जारी की जाए।
अभी 29 नवंबर, 2021 को अर्ली वार्निंग रिपोर्ट यानी प्रारंभिक चेतावनी रिपोर्ट में यूएस हॉलोकास्ट म्यूजियम ने संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान, भारत और यमन उन देशों की सूची में शीर्ष पर हैं जहां 2021 औ र 2022 में बड़े पैमाने पर जनसंहार की आशंका है। इसके महज दो महीने के भीतर ही, 12 जनवरी 2022 को जेनोसाइड वॉच के संस्थापक और चेयरमैन ग्रेगरी स्टेंटन ने जब यूएस कांग्रेस के सामने अपने रिपोर्ट रखी, तो उन्होंने भी इसी किस्म की चेतावनी जारी की। पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार में हुए हेट कॉन्क्लेव से चौंके स्टेंटन ने कहा, “हम ऐसी चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में जनसंहार हो सकता है।” हरिद्वार हेट कॉन्क्लेव में सत्तारूढ़ दल के नजदीकी हिंदू धार्मिक नेताओं ने खुलेआम भारत में मुसलमानों के जनसंहार का आह्वान किया था। उनका तर्क था कि इसी से शुद्ध हिंदू राष्ट्र की स्थापना हो सकती है। ध्यान रहे कि 1989 में स्टेंटन ने इसी किस्म की चेतावनी रवांडा के पूर्व राष्ट्रपति जुवेनल हब्यारिमाना के बारे में भी जारी की थी। 1994 में करीब 8,00,000 लाख रवांडन नागरिकों, जिनमें अधिकतर देश की तुत्सी आबादी से थे, की हुतु उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी। जेनोसाइट वॉच ने भारत में जनसंहार की पहली चेतावनी 2002 में उस समय जारी की थी जब गुजरात में करीब एक हजार मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी। स्टेंटन ने हाल ही में पत्रकार करन थापर के साथ इंटरव्यू में भी अपनी चेतावनी को दोहराया है। आईएसआईएस द्वारा जनसंहार की बात साबित हो चुकी है, और भारत में जो हालात इन दिनों हैं उससे भारत के संदर्भ में भी स्टेंटन की चेतावनी सही होने की आशंका प्रबल होती है। लेकिन स्टेंटन एक बात जरूर कहते हैं। उनका कहना है कि जरूरी नहीं है कि भारत में होने वाले नरसंहार में सरकार का ही हाथ हो, उन्मादी भीड़ भी इसे अंजाम दे सकती है। हरिद्वार में हुए हेट कॉनक्लेव में कथित साधुओं ने इसी किस्म के भड़काऊ भाषण देकर लोगों को उकसाया था।
“हमें एक बात ध्यान रखनी होगी कि नरसंहार कोई घटना नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे विकसित होती है। इसीलिए जेनोसाइड वॉच के जरिए हम नरसंहार को लेकर चेतावनी जारी करते हैं। हम यह ऐलान नहीं करते कि यही नरसंहार है, क्योंकि, मैं जैसा कहता हूं, और थोड़ा मुश्किल भी है कहना कि कश्मीर में नरसंहार हो रहा है, असम में नरसंहार हुआ है। वहां जो कुछ हुआ है, वह इस प्रक्रिया के शुरुआती लक्षण हैं, और हमें लगता है कि हरिद्वार की सभा खासतौर से इसी (नरसंहार के लिए) के लिए लोगों को उकसाने के लिए की गई थी।”
जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत नरसंहार के लिए लोगों को उकसाना एक अपराध है। भारत में भी कानून है कि नरसंहार गैरकानूनी है। इस कानून को लागू करना चाहिए। इसके अलावा भी भारत में अन्य कानून हैं जिनका इस्तेमाल भड़काने वाले नेताओं के खिलाफ किया जा सकता है, लेकिन अभी तक प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर एक शब्द भी नहीं बोला है।
उन्होंने हिंसा के खिलाफ मुंह नहीं खोला है। (लगता है उन्होंने अपनी खामोशी से इसकी स्वीकृति दी है।) “ओह, यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। यह तो राज्य का विषय है, उत्तराखंड सरकार को इसे देखना है....।” लेकिन मुद्दा यह है कि देश के नेता होने के नाते उनका कर्तव्य है, नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसी बातों, हेट-स्पीच की आलोचना करें, उस पर अंकुश लगाए, खासतौर से तब जब खुलेआम मुसलमानों की हत्या का आह्वान किया जा रहा हो।
जेनोसाइड प्रोसेस का जेनोसाइड वॉच मॉडल (मुझे दरअसल इसे नरसंहार की 10 प्रक्रियाएं कहना चाहिए) में कहा गया है कि नरसंहार की प्रक्रिया की शुरुआत वर्गीकरण से होती है। इसकी शुरुआत लोगों को नागरिकता के अधिकार से वंचित करने से होती है। इसमें अमानवीकरण, लोगों को आतंकवादी या अलगाववादी या अपराधी कहना, लोगों के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना जैसी कि हरिद्वार हेट कॉन्क्लेव में इस्तेमाल की गई। यहां तक कि भारत सरकार द्वारा भी मुसलमानों के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया। यह ध्रुवीकरण है जिसमें मुस्लिम विरोधी नफरत को बढ़ावा दिया जाता है। यह एक किस्म की तैयारी है जो इन दिनों हम देख रहे हैं। अमानवीकरण का पाठ लोगों को पढ़ाया रहा है।
इसलिए हम चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में भी जनसंहार हो सकता है। यूएस हॉलोकास्ट म्यूजियम की राय इस बारे में एकदम दुरुस्त है।
“जनसंहार का सबसे पहला पूर्वानुमान मैंने 1989 में रवांडा के बारे में लगाया था, उस समय मैं वहां रहता था, और मैं पहचान पत्रों से देख सकता था कि इनके जरिए तुत्सी, हुतु, त्वा और अन्य समुदायों की पहचान की जा रही है और इन्हीं कार्ड का इस्तेमाल कर जनसंहार किया जाएगा। जब मैंने सुप्रीम कोर्ट के प्रेसीडेंट से इस बारे में पूछा (वह खुद भी हुतु थे) कि ‘क्या आप इसे रोक नहीं सकते हैं, ऐसे कार्ड बनाकर लोगों को समुदायों के आधार पर पहचाना जा रहा है’, उन्होंने कहा, ‘नहीं हमारे यहां न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में आपको राष्ट्रपति से बात करनी चाहिए।’”
इसके बाद मैंने राष्ट्रपति हब्यारमाना से समय लिया। मैं गया और बात की। मैने कहा, “आप जानते हैं कि ऐसे कार्ड का इस्तेमाल नरसंहार के लिए हो सकता है।” यह सुनकर (जब मैंने कहा कि आपको इन कार्ड को वापस लेना चाहिए) उनके चेहरे पर एक किस्म का उतार-चढाव मैंने देखा था क्योंकि वह ऐसा कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे। बाद में पचा चला कि रवांडा में पूर्व में जितने भी नरसंहार हो चुके थे, उनमें से एकाध में निश्चित रूप से उनकी भी भूमिका रही थी।
मैं उस मुलाकात को खत्म कर लौट रहा था तो मैंने कहा था, “राष्ट्रपति जी, अगर आपने इस देश के नरसंहार से बचाने के लिए कुछ नहीं किया तो निश्चित रूप से आने वाले पांच साल में यहां नरसंहार होगा।”
यह 1989 की बात है। नरसंहार विकसित हुआ। हेट स्पीच विकसित हुईं। सभी शुरुआती संकेत धीरे-धीरे विकसित हुए। और जैसा कि हम आज जानते हैं कि करीब 8 लाख तुत्सी और अन्य रवांडन नागरिकों की 1994 में हत्या कर दी गई। हम भारत में ऐसा नहीं होने दे सकते।
(स्टेंटन याद करते हैं कि अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता डॉ मार्टिन लूथर किंग ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था, ‘हम अपने दोस्तों की पहचान इस पर नहीं करते कि वे क्या बोलते हैं, बल्कि इस पर करते हैं जब वे खामोश रहते हैं)
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Published: 23 Jan 2022, 3:40 PM