दिवाली के पटाखों ने हवा में ऐसा घोला ज़हर कि सांस के मरीजों की जान पर बन आई...जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स!
मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक पटाखों से निकलने वाले खतरनाक रसायन ही सांस की तकलीफों की जड़ हैं। खासतौर से उन लोगों के लिए जो पहले से अस्थमा के मरीज हैं।
कल जिस वक्त पूरा देश दिवाली की खुशियों में पटाखे फोड़ रहा था, उसी वक्त मानसी कुमार सांस लेने में बुरी तरह हांफ रही थीं क्योंकि पटाखों के धुएं और गंधक ने उनके गले को रुद्ध कर दिया था और हवा उनके फेफड़ों तक नहीं पहुंच पा रही थी।
मानसी कुमार सिर्फ 22 साल की हैं और दिल्ली में रहती हैं। पिछले साल जब मौसम बदला तो उन्हें कुछ तकलीफ हुई थी और डॉक्टरों ने बताया था कि उन्हें एलर्जिक राइनाइटिस है। यह ऐसी बीमारी है जो पटाखे फोड़ने से हवा में घुलने वाले खतरनाक रसायनों के सांस के साथ गले और फेफड़ों में जाने से होती है। इससे गले में बेहद तकलीफदेह खराशें पड़ती हैं, आंखों में आंसूं आते हैं और सांस लेने में बेहद तकलीफ होती है।
वैसे तो हर दिवाली मानसी को इस तकलीफ से दोचार होना पड़ता है लेकिन इस बार तो घर में बंद रहने के बावजूद उनकी तकलीफ बढ़ गई थी। उन्होंने बताया, “जब इस बीमारी के लक्षण दिखने शुरु होते हैं तो सांस लेने में तकलीफ तेज हो जात है। दिवाली पर पटाखों से मुझे काफी दिक्कतें हो रही हैं...”
मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक पटाखों से निकलने वाले खतरनाक रसायन ही सांस की तकलीफों की जड़ हैं। खासतौर से उन लोगों के लिए जो पहले से अस्थमा के मरीज हैं। वैसे तो बीते दो साल कोविड के चलते दिवाली पर इतना धूम-धड़ाका नहीं हुआ था, लेकिन इस बार लोगों ने खुलकर पटाखे फोड़े, नतीजतन दिल्ली की आबो-हवा खतरनाक स्तर तक खराब हो गई।
मंगलवार 25 अक्टूबर को (दिवाली के अगले दिन) दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स सुबह 8 बजे 326 पर पहुंच गया था। राजधानी के नरेला, दिल्ली यूनिवर्सिटी, आनंद विहार, इंडिया गेट और द्वारका जैसे इलाकों में स्थिति बेहद खराब थी। इसके अलावा दिल्ली से सटे गाजियाबाद और नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद में एक्यूआई 310 तक पहुंच गया था।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के आंकड़ों के मुताबिक दिवाली की रात पीएम 2.5 का स्तर 15 गुना और पीएम 10 का स्तर 10 गुना बढ़ गया था। वैसे तो दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पटाखे बनाने, बिक्री और उनके इस्तेमाल पर पहली जनवरी 2023 तक रोक लगा रखी है, लेकिन सारे प्रतिबंधों को धता बताते हुए दिल्ली वालों ने आसमान को रंगीन कर दिया था। नतीजतन हवा में इतना जहर घुल गया कि सांस लेना दुश्वार हो गया।
मानसी कहती हैं कि, “मैं हर वक्त अपनी दवा साथ रखती हूं क्योंकि दिवाली के आसपास तो मुझे इसकी कभी भी जरूरत पड़ जाती है।”
मानसी की तरह ही दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में रहने वाली 33 साल की तलत खान को पिछले साल अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। उन्हें दिवाली के मौके पर अस्थमा का अटैक पड़ा था। वे बताती हैं कि डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन के साथ नेबुलाइज करने की सलाह दी थी। वे बताती है कि उनके घर से अस्पताल जाने वाले रास्ते पर पटाखों का धुआं ही धुआं भरा हुआ था।
इस बारे में अपोलो अस्पताल में रेस्पिरेटरी और क्रिटिकल केयर के सीनियर कंसल्टेंट राजेश चावला बताते हैं कि जब भी पटाखे चलाए जाते हैं तब तब मरीजों की संख्या में इजाफा होता है। उनका कहना है कि सांस लेने में तकलीफ के मरीजों को ठीक होने में काफी वक्त लगता है। उन्होंने बताया कि, “पटाखों का हवा पर गहरा असर हात है और चूंकि सर्दियां आ रही हैं ऐसे में हवा काफी भारी रहती है। इन हालात में सांस की तकलीफ वाले मरीजों के लिए हालात ज्यादा खराब हो जाते हैं।”
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