सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद हुई कार्रवाई से अब भी दहशत में हैं लोग, सुप्रीम कोर्ट से राहत के बाद भी है लंबी लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट से तो राहत मिल गई है, लेकिन पूरी प्रक्रिया में शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना झेलने वाले सैकड़ों बेगुनाहों का सवाल है कि बंद कमरों की सिसकी और दुश्वारियों में जिंदगी बिताने का जो बेशुमार दर्द मिला, आखिर, उसकी भरपाई कैसे होगी?
बुजुर्ग परवेज कानपुर के जाजमऊ टेनरी में काम करते थे। 20 दिसंबर, 2019 को वह साइकिल से करीब तीन बजे निकले और चार बजे बेगम पुरवा ईदगाह के पास पहुंचे। जुमे की नमाज के बाद हो रहे सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान वहां पुलिस ने फायरिंग की थी जिससे तीन लोगों की मौत हो गई थी। इनमें से एक व्यक्ति तो ऐसा था जो बर्तन मांज रहा था। परवेज ने वहां का नजारा देखा तो उन्हें गश आ गया और वह गिर गए। संयोगवश मुस्तकिम और आदिल वहीं मिल गए। परवेज के अनुसार, ‘वे न मिलते तो मेरा बचना मुश्किल था। दोनों लड़कों ने नींबू पानी दिया। देखभाल की। वहीं पर सिलाई कारखाने में लिटा दिया।’ सरफराज, मुस्तकिम और आदिल ने भी उस माहौल में घर जाना मुनासिब नहीं समझा। वे चारों बैठे थे कि पुलिस फोर्स ने दरवाजा तोड़ दिया और सबकी धुनाई करने लगे। फिर, चारों की थाने ले जाकर भी पिटाई की गई और जेल भेज दिया गया। सात हजार रुपये जुर्माना भी कर दिया। परवेज के घर में पैसे नहीं थे। घरवालों ने कर्ज लेकर जुर्माना भरा। तीन माह बाद जब वह जेल से छूटे तो लॉकडाउन लग गया था। जब दोबारा उसी टेनरी में गए, वहां काम पर रखने से मना कर दिया गया। अब भी बेरोजगार हैं। परवेज कहते हैं, ’वे सात हजार रुपये मिल भी गए, तो क्या होगा? हमारा तो पूरा परिवार पैसों के मामले में तहस-नहस हो गया, पुलिस की पिटाई और जिल्लत जो हुई, वह सब अलग है।
पेशे से दर्जी सरफराज ने भी बताया कि वह तीन महीने जेल में बंद थे। छूटने पर उनका काम भी छूट गया। अब घर पर बैठे हैं। उन्होंने बताया कि ‘हमने तो अभी उन लोगों के पैसे भी नहीं लौटाए हैं जिनसे सात हजार के कर्ज लेकर हमने जुर्माना भरा था।’ मुस्तकिम ने बताया कि ’एक दिन पहले मेरी बहन की शादी थी, तो उस दिन हम आदिल के साथ जल्दी-जल्दी सब सामान सिलाई के कारखाने में रखवा रहे थे। तभी पुलिस ने यह सब किया। इन दिनों वह मैकेनिक का काम करते हैं।’ आदिल ने कहा कि वह सैलून में काम करते हैं। हम दोनों पर भी सात हजार रुपये जुर्माना हुए थे। लोगों ने चंदा करके पैसा भरा। वह जेल के बाद लॉकडाउन में फंसे रहे। उनके भी घरवालों ने सात हजार का जुर्माना बड़ी मुश्किल से भरा। इन सबने कहा कि पुलिस वालों की मंशा तो हमें एनकाउंटर कर देने की थी। लेकिन अल्लाह के करम से ही जिंदगी बची।
सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति के एवज में यूपी प्रशासन ने पूरे प्रदेश में 274 लोगों को वसूली नोटिस जारी किए थे। परवेज आरिफ टीटू की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मसले पर राज्य सरकार को फटका रतो लगाई ही है, इन नोटिस को वापस लेने और जमा की गई राशि संबंधित लोगों को लौटाने का निर्देश दिया है। पूरी प्रक्रिया में शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना झेलने वाले सैकड़ों बेगुनाहों का सवाल है कि बीवी- बच्चों पर उत्पीड़न हुआ, परिवारों को पलायन तक का दंश झेलना पड़ा, बंद कमरों की सिसकी और दुश्वारियों में जिंदगी बिताने का जो बेशुमार दर्द मिला, आखिर, उसकी भरपाई कैसे होगी?
पुलिस ने लखनऊ के सीतापुर रोड पर वेल्डिंग का काम करने वाले माहेनूर चौधरी की दुकान को 21 लाख की वसूली को लेकर सील कर दिया था। इससे पूरा परिवार सड़क पर आ गया। माहेनूर बताते हैं कि ‘दुकान सील होने के बाद कमाई का जरिया बंद हुआ तो फीस नहीं जमा होने पर स्कूल ने बच्चों को निकाल दिया। भाई की किडनी खराब है। पत्नी के आभूषण गिरवी रखकर डायलिसिस कराना पड़ा।’
65 लाख रुपये की वसूली नोटिस पाने वाले स्टेज कलाकार दीपक कबीर कहते हैं कि ‘2020 में जब पूरा देश कोविड की मार से जूझ रहा था, तो मेरे जैसे सैकड़ों लोगों का घर कुर्क करने का प्रशासन दबाव बना रहा था।’ 1.75 लाख रुपये की वसूली नोटिस पाने वाले लखनऊ के टैक्सी चालक अब्दुल तौफीक कहते हैं कि ‘नोटिस के बाद परिवार कर्ज में डूब गया। कोई मुझे टैक्सी किराये पर देने को तैयार नहीं था। घर चलाने के लिए बच्चों के फीस के नाम पर रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा।’
सीतापुर जिले के चिराग अली गांव के राशिद और धनुआपुर गांव के यासीन गोरखपुर शहर के नखास चौक के पास रहते थे। फेरी लगाकर दरी बेचते थे। 20 दिसंबर, 2019 को वे राशन लेने के लिए घर से निकले थे, तभी सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गाड़ी का शीशा तोड़ने और पुलिस वाले का पथराव में हाथ टूटने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। राशिद और यासीन समेत छह लोगों को गोरखपुर पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर की थी, लिहाजा खुद को ‘निष्ठावान’ साबित करने के लिए वह दोनों को पश्चिम बंगाल के एक अतिवादी संगठन का सदस्य साबित करने पर तुली हुई थे।
नगर निगम में पार्षद जियाउल इस्लाम का कहना है कि ‘दरी बेचने वाले इन युवकों को स्थानीय दुकानदार भी जानते थे। लेकिन बदले हालात में उन्हें देश विरोधी बताने की कोशिशें हुईं। परिवार को जब पता लगा तो उनके पास बेबसी के आंसू के सिवा कुछ नहीं था। इनके पास इतनी रकम भी नहीं थी कि वे इनकी जमानत करा सकें। बाद में चंदा लगाकर दोनों की जमानत ली गई।’ वहीं पुलिस ने जो मामला दर्ज किया, उसमें काफी झोल था।
बता दें कि पुलिस ने गाड़ी का शीशा तोड़ने और हमले के आरोप में 56 लोगों को मुल्जिम बनाया था। मामले में 6 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई। कोतवाल की तहरीर में प्रदर्शनकारियों के हमले में एक पुलिसकर्मी का हाथ टूटना बताया गया था। लेकिन इसे लेकर कोर्ट में कोई मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जा सकी जिससे सभी आरोपियों को जमानत मिल गई। गोरखपुर के आकिब और अर्सलान सिलाई का काम करते थे। इन्हें भी गिरफ्तार किया गया था। दोनों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इन्होंने वसूली नोटिस पर रकम तो नहीं जमा की लेकिन इन्हें 6 महीने तक मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
कानपुर के अधिवक्ता मो. आरिफ का भी कहना है कि ‘मैंने अपने सभी मुवक्किलों को जुर्माना भरने से मना किया था क्योंकि जब जुर्म साबित नहीं हुआ तो दंड क्यों दें। लेकिन कुछ लोगों ने डर के मारे जुर्माने भर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने नया आदेश जारी तो किया है लेकिन तमाम निर्दोष लोग अब भी डरे- सहमे हैं।’
कानपुर के यतीमखाना और बाबूपुरवा में 20 और 21 दिसंबर, 2019 को हुई हिंसा के बाद 28 लोगों से 4.22 लाख रुपये वसूलने के लिए नोटिस जारी हुए थे। इनमें तीन ऐसे लोगों को भी नोटिस भेजा गया जिनकी प्रदर्शन के दौरान फायरिंग में मौत हो गई थी। हालांकि प्रशासन के दबाव पर सिटी मजिस्ट्रेट की नोटिस पर सूची में शामिल बेकनगंज निवासी यासीन, नौबस्ता निवासी मोहम्मद अरमान, बेकनगंज निवासी गुरगुट, इरफान, लियाकत और दिलशाद ने मिलकर 80,856 रुपये का चेक जमा किया था। कोर्ट ने वसूली नोटिस वापस करने को कहा है लेकिन जमा हुई रकम की वापसी कब होगी, इस पर संशय बना हुआ है। बुलंदशहर में भी जिन लोगों पर जुर्माने किए गए थे, उनके लिए लोगों ने चंदा इकट्ठा किया था और डीएम को जाकर चेक सौंप आए थे।
इस तरह की कार्रवाइयों के खिलाफ लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे रिहाई मंच की तरफ से राजीव यादव आजमगढ़ में इस बार उम्मीदवार भी हैं। मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब को भी सीएए विरोधी प्रदर्शन के नाम पर पहले तो घर में नजरबंद किया गया था, फिर पुलिस पर हमले और तोड़फोड़ के आरोप में जेल भेज दिया गया था।
शुऐब बताते हैं कि ‘पुलिस ने 20 दिसंबर, 2019 को दिन में 11.45 बजे घर से मुझे गिरफ्तार किया। लेकिन पुलिस दस्तावेज में इसी दिन भोर में 3.01 बजे गिरफ्तारी वारंट भेजने और सुबह 8.45 बजे गिरफ्तार करना दिखाया गया है। पुलिसियां जुल्म को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। दिसंबर से जून तक पुलिस ने लगातार छापेमारी की जिससे परिवार के लागों को नया गांव पूर्व स्थित मकान को छोड़कर दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी।’
एडवोकेट शुऐब कहते हैं कि ‘सुप्रीम कोर्ट का वसूली नोटिस वापस लेने का निर्णय तो ठीक है लेकिन अब तो मार्च, 2021 में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की उत्तर प्रदेश वसूली विधेयक, 2021 को लेकर भी समीक्षा होनी चाहिए।’ वसूली नोटिस पाने वाले आठ लोगों की कोर्ट में पैरवी करने वाली अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता आस्मा इज्जत का कहना है कि ‘नोटिस को वापस लेना प्रदर्शनकारियों के लिए फौरी राहतहै। लेकिन अभी लंबी कानूनी लड़ाई शेष है।’
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