केंद्र द्वारा बंगाल में ममता की मंजूरी के बिना सीआरपीएफ की तैनाती ‘अभूतपूर्व’: पूर्व पुलिस महानिदेशकों की राय
मोदी सरकार ने जिस तरह से कोलकाता में केंद्र सरकार के दफ्तरों पर केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की, वह केंद्र के संवैधानिकअधिकारों से बाहर जाकर उठाया गया कदम था। देश के राजनीतिक इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ।
सीबीआई और कोलकाता पुलिस के रविवार को आमने-सामने आ जाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कोलकाता में केंद्र सरकार के कई कार्यालयों पर सीआरपीएफ को तैनात कर दिया। लेकिन इसकी जानकारी राज्य सरकार को नहीं दी गई थी। केंद्र सरकार के इस कदम से राज्य सरकार के अधिकारी स्तब्ध थे। इससे पहले सीबीआई ने भी जिस तरह बिना राज्य सरकार को सूचित किए कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के घर पर छापा मारने की कोशिश की थी, वह हैरान करने वाला कदम था।
रिटायर्ड आईपीएश दारापुरी कहते हैं कि सीबीआई को किसी भी कार्रवाई से पहले राज्य सरकार से संपर्क करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि, “सीबीआई की टीम को भेजने से पहले आखिर कैसे राज्य सरकार को सूचित नहीं किया गया?”
सरकार अब संविधान की सातवीं अनुसूची की यूनियन लिस्ट में 2ए की एंट्री का हवाला दे रही है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार किसी भी सैन्य बल या किसी अन्य बल को राज्य शासन की मदद के लिए तैनात कर सकती है।
लेकिन दारापुरी कहते हैं कि ऐसा तो 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान भी नहीं हुआ था। आईपीएस से सामाजिक कार्यकर्ता बने दारापुरी के मुताबिक उस समय नरसिम्हा राव सरकार ने केंद्रीय बलों को तैयार रखा था, लेकिन राज्य सरकार के आग्रह या अनुमति के बिना उन्हें तैनात नहीं किया था।
दारापुरी ने 2002 के गुजरात दंगों का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि उस दौरान भी सशस्त्र बलों को विमान से गुजरात भेजा गया था, लेकिन इन बलों को किसी भी कार्रवाई से पहले तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार के आदेशों का इंतज़ार करना पड़ा था।दारापुरी ने बताया कि उस समय सशस्त्र सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन ने भी अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि, “गुजरात सरकार ने ही राज्य में सेना की तैनाती के लिए गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय से आग्रह किया था।”
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में तो कानून-व्यवस्था की ऐसी कोई स्थिति नहीं बिगड़ी थी कि आपात कदम उठाए जाने चाहिए या सीआरपीएफ को केंद्र सरकार के दफ्तरों पर तैनात किया जाता।
उत्तर प्रदेश के ही एक और पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने भी माना कि केंद्र सरकार किसी भी केंद्रीय बल को राज्य सरकार की अनुमति के बाद ही उस राज्य में तैनात कर सकती है। लेकिन उनका मानना है कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआई अफसरों के साथ सहयोग करना चाहिए था।
इस दौरान सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर पश्चिम बंगाल सरकार पर अदालत के आदेशों के उल्लंघन का आरोप लगाया। सीबीआई की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि, पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर हो गई थी। इन आरोपों का पश्चिम बंगाल सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जोरदार विरोध किया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कभी भी केंद्रीय एजेंसी से असहयोग नहीं किया।
हालांकि चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआई के सामने पेश होने का आदेश दिया, लेकिन साथ ही शर्त भी लगाई कि सीबीआई उनसे दिल्ली या कोलकाता में नहीं किसी न्यूट्रल जगह (शिलांग) पूछताछ कर सकती है। साथ ही राजीव कुमार की गिरफ्तारी पर भी रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी कर 18 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
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