दिल्ली दंगा सुनियोजित और प्रायोजित था, आयोग की रिपोर्ट से बीजेपी नेताओं और पुलिस की भूमिका पर सवाल
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में इस साल फरवरी में हुए दंगों की जांच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने मार्च में एक नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने 134 पेज की अपनी रिपोर्ट 27 जून को आयोग को सौंप दी थी, जिसे आयोग ने 16 जुलाई को सार्वजनिक कर दिया है।
दिल्ली में इस साल की शुरुआत में हुए दंगों की जांच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की ओर से बनाई गई जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में फरवरी में हुए दंगे सुनियोजित थे और गहरी साजिश के तहत निशाना बनाकर किए गए थे। साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 फरवरी, 2020 को मौजपुर में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के पुलिस वालों की मौजूदगी में दिए भड़काऊ भाषण के फौरन बाद दंगे भड़क गए थे।
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में 23 से 27 फरवरी के बीच हुए भीषण दंगे में आधिकारिक तौर पर 53 लोग मारे गए थे। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दंगों की जांच के लिए मार्च में एक नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद को बनाया गया था, जबकि गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर काजी, प्रोफेसर हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक, सलीम बेग, देविका प्रसाद और अदिति दत्ता कमेटी में सदस्य बनाए गए थे। इस कमेटी ने 134 पन्नों की अपनी रिपोर्ट 27 जून को आयोग को सौंप दी थी, लेकिन आयोग ने 16 जुलाई को ये रिपोर्ट सार्वजनिक की है।
जांच के दौरान कमेटी ने दंगों की जगह पर जाकर पीड़ित परिवारों से बात की, उन धार्मिक स्थलों का दौरा किया, जिनको दंगों में नुकसान पहुंचाया गया था। जांच के दौरान कमेटी ने दिल्ली पुलिस से भी उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया। लेकिन कमेटी के अनुसार दिल्ली पुलिस ने उनके किसी भी सवाल या पहल का कोई जवाब नहीं दिया।
रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर, 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बनने के बाद पूरे देश के साथ दिल्ली में भी कई जगहों पर सीएए के विरोध में प्रदर्शन होने लगे थे। दिल्ली चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी के कई नेताओं ने सीएए विरोधियों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले भाषण दिए। ऐसे कई भाषणों को रिपोर्ट का हिस्सा बनाते हुए कमेटी ने कहा है कि इसके बाद सांप्रदायिक तत्वों के जरिए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले किए गए। इसी के तहत 30 जनवरी को राम भक्त गोपाल ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई और फिर एक फरवरी को कपिल गुर्जर ने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई।
कमेटी के अनुसार 23 फरवरी को बीजेपी नेता कपिल मिश्रा द्वारा मौजपुर में दिए भाषण के फौरन बाद दंगे भड़क गए। दिल्ली पुलिस के डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या की मौजूदगी में अपने भड़काऊ भाषण में कपिल मिश्रा ने जाफराबाद में सीएए के खिलाफ बैठे प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाने की बात की थी। इसके फौरन बाद ही हथियारबंद भीड़ द्वारा उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में लोगों पर हमले किए गए और कई घरों-दुकानों को आग लगा दी गई। कमेटी ने कहा कि इस दौरान भीड़ जय श्रीराम, हर-हर मोदी, काट दो और आज तुम्हें आज़ादी देंगे जैसे नारे लगा रही थी।
जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार दंगों के दौरान मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया, जिसमें स्थानीय युवक भी शामिल थे और कुछ बाहर के लोग थे। रिपोर्ट में कहा गया कि अगर किसी दुकान का मालिक हिंदू था और मुसलमान ने किराये पर ले रखा था तो वैसी दुकानों को आग नहीं लगाई गई, लेकिन दुकान के अंदर का सारा सामान लूट लिया गया था।
जांच रिपोर्ट में महिलाओं को निशाना बनाने की भी बात कही गई है। कई पीड़िताओं के अनुसार कई जगहों पर उनके नकाब और हिजाब खींचे गए। दंगाईयों और पुलिस वालों ने धरने पर बैठी महिलाओं पर निशाना बनाकर हमला किया और इसमें कई पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिलाओं के साथ बदतमीजी तक की। यहां तक कि उनको रेप करने और एसिड हमले करने जैसी धमकियां भी दी गईं।
जांच कमेटी ने कहा कि दंगा पीड़ितों से बातचीत के बाद लगता है कि ये दंगे अपने आप नहीं भड़के थे, बल्कि ये पूरी तरह सुनियोजित और संगठित थे और इस दौरान लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली दंगों में 11 मस्जिदें, पांच मदरसे, एक दरगाह और एक कब्रिस्तान को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया। लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में किसी भी गैर-मुस्लिम धार्मिक स्थल को नुकसान नहीं पहुंचा था।
अल्पसंख्यक आयोग की जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सरकार या अदालत से अनुरोध किया जाए कि हाईकोर्ट के किसी सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति बनाई जाए, जो एफआईआर नहीं लिखने, चार्जशीट की मॉनिटरिंग, गवाहों की हिफाजत, दिल्ली पुलिस की भूमिका और उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई करने पर अपना फैसला दे। साथ ही कमेटी ने ये भी कहा है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को अपने नियमों के अनुसार दंगों में शामिल होने या अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाने वाले दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए।
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