दिल्ली: मुकाबला त्रिकोणीय भले ही दिखे, लेकिन असली लड़ाई है कांग्रेस-बीजेपी के बीच
दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर अब साफ हो गया है कि मुकाबला त्रिकोणीय ही होगा। नामांकन पत्रों की जांच के बाद कांग्रेस,बीजेपी और आप, तीनों ने अपनी-अपनी जीत के दावे शुरु कर दिए हैं। वहीं क्रिकेटर और बॉक्सर की चुनावी समर में मौजूदगी ने माहौल को दिलचस्प और कांटे का बना दिया है।
दिल्ली की चुनावी फिजा अब गर्म हो गई है। नामांकन पत्रों की जांच के बाद देश की राजधानी भी चुनावी रंग में रंग चुकी है। सबसे दिलचस्प मुकाबला नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में है जहां दो बड़े दलों को प्रदेश अध्यक्ष और एक पार्टी के संयोजक अपनी-अपनी पार्टी के अभियान की अगुवाई कर रहे हैं। दिल्ली में 15 साल शासन कर चुकीं कांग्रेस की शीला दीक्षित, बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी और आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक दिलीप पांडे इस सीट पर ताल ठोंक रहे हैं। वैसे शीला दीक्षित भले ही नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से उम्मीदवार हैं, लेकिन वह सभी सातों सीटों पर कांग्रेस की अगुवाई कर रही हैं।
इस सीट पर बीजेपी का पूर्वांचली चेहरा माने जाने वाले मनोज तिवारी को कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी क्योंकि शीला दीक्षित को लोग दिल्ली का विकास करने वाले नेता के रूप में पहचानते हैं। वे पहले भी इस इलाके से सासंद रह चुकी हैं। इसके अलावा दिल्ली में मेट्रो की शुरुआत सबसे पहले इसी इलाके से हुई थी, जब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं।
इसके अलावा मनमोहन सरकार में मंत्री रहे और दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन नई दिल्ली सीट से मैदान में हैं। उनके सामने बीजेपी की मीनाक्षी लेखी हैं, जिन्हें आखिरी वक्त तक अपना टिकट कटने का डर सता रहा था। इस सीट पर आप ने बृजेश गोयल को उतारा है, जिनकी बहुत ज्यादा पहचान नहीं है।
उत्तरी दिल्ली में भी मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही नजर आ रहा है। इस सीट से कांग्रेस एक पूर्व दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को कांग्रेस ने उतारा है। अरविंदर सिंह लवली दिल्ली की शीला सरकार में मंत्री भी रहे हैं और पूर्वी दिल्ली में उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है। लेकिन लवली को चुनौती देने के लिए बीजेपी ने पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर को मौदान में उतारा है।
गौतम गंभीर हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं और उन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं है। इसके अलावा सिर्फ स्टार वैल्यू के गौतम गंभीर को लेकर कोई खास उत्सुकता वोटरों में नहीं दिखती। इसी सीट से आम आदमी पार्टी ने आतिशी को उम्मीदवार बनाया है। आतिशी शुरुआत से आम आदमी पार्टी के साथ हैं और टीवी चैनलों के डिबेट में पार्टी का बचाव करती रही हैं।
दिल्ली की एक और दिलचस्प सीट है चांदनी चौक। वॉल्ड सिटी के नाम से विख्यात इस सीट पर कांग्रेस ने एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वैश्य नेता जय प्रकाश अग्रवाल को उतारा है। जय प्रकाश अग्रवाल की पहचान एक मजबूत संगठन सदस्य के तौर पर रही है। यहां से बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सासंद हर्षवर्धन को एक बार फिर टिकट दिया है।
चांदनी चौक सीट पर बड़ी तादाद में ट्रेडर मतदाता है जिन्हें जीएसटी की चुभन आज भी महसूस होती है। इसके अलावा आम तौर पर नकदी पर चलने वाले चांदनी चौक सीट के बाजारों से नोटबंदी की मार भी सही है, जिसका खामियाजा इस बार बीजेपी के हर्षवर्धन को भुगतना पड़ सकता है। वहीं आम आदमी पार्टी ने यहां से पंकज गुप्ता को टिकट दिया है जिनकी इलाके में कोई खास पहचान नहीं है।
पश्चिमी दिल्ली से कांग्रेस ने दिल्ली का लालू कहे जाने वाले महाबल मिश्रा को उतारा है। महाबल मिश्रा इस इलाके में घर-घर में पहचाने जाते हैं। उनके मुकाबले आप ने बलबीर सिंह जाखड़ को टिकट दिया है, जिनकी चुनावी राजनीति में नई-नई एंट्री मानी जाती है। वहीं बीजेपी ने यहां से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र परवेश वर्मा को उतारा है। परवेश वर्मा मौजूदा सांसद हैं और 2014 की मोदी लहर में उन्होंने जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार उन्हें महाबल मिश्रा जैसे कांग्रेस दिग्गज का सामना करना है।
उत्तर पश्चिम दिल्ली से कांग्रेस ने युवा दलित नेता और दिल्ली कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ललोतिया को उम्मीदवार बनाया है। उत्तर पश्चिमी सीट दिल्ली की एकमात्र सुरक्षित सीट है। यहां से मौजूदा सांसद बीजेपी के उदित राज थे, लेकिन बीजेपी ने इस बार उनका पत्ता साफ कर दिया और गायक हंसराज हंस को मैदान में उतारा है। उदित राज ने टिकट कटने के बाद न सिर्फ सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जताई बल्कि पार्टी छोड़कर कांग्रेस का हाथ भी थाम लिया। उदित राज के पार्टी छोड़ने के बाद यहां बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
दिल्ली की एक सीट पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के नाम से सबको चौंका दिया। कांग्रेस ने दक्षिण दिल्ली सीट से ओलंपिक पदक विजेता और प्रोफेशनल बॉक्सर विजेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। चुनावी बॉक्सिंग रिंग में विजेंद्र के आने से इस सीट के दूसरे उम्मीदवार अभी से कुछ धूम-धड़ाका महसूस करने लगे हैं। जाट बहुल इस सीट पर विजेंद्र की मौजूदगी ने बीजेपी के रमेश बिधूड़ी और आम आदमी पार्टी का सौम्य चेहरा कहे जाने वाले राघव चड्ढा के लिए राह मुश्किल कर दी है।
इन सारे समीकरणों के बीच यह वास्तविकता है कि दिल्ली पर 15 साल और केंद्र में 10 साल तक शासन करने के बाद आज दिल्ली की एक भी लोकसभा और विधानसभा सीट कांग्रेस के पास नहीं है। लेकिन इस बार कांग्रेस अभियान की कमान शीला दीक्षित के हाथों में आने के बाद कांग्रेस को चुनावी पटल से खारिज करना असंभव है।
इसके अलावा एक और बिंदु जो कांग्रेस को पक्ष में जाता है वह यह कि शीला दीक्षित की दिल्ली में बहुत अच्छी साख है और उनके प्रतिद्वंदी भी उनका सम्मान करते हैं। दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस ने अच्छी जमीन तैयार की है। ऐसे में अगले साल के चुनाव में टिकट की चाह रखने वाले भी जुटकर उनके समर्थन में जुटे हुए दिखते हैं।
शीला दीक्षित के अलावा कांग्रेस के सभी उम्मीदवार जाने पहचाने चेहरे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी में मनीश सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे केजरीवाल के मंत्रियों के अलावा ज्यादातर नेताओं को कोई पहचानता तक नहीं है। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने नई दिल्ली से सांसद रहते हुए इस इलाके में काफी काम किया था और लोगों के बीच आज भी उनकी मिलनसारी जगजाहिर है।
भले ही 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आमी पार्टी ने इतिहास रचते हुए दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीती थी, लेकिन केजरीवाल सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। केजरीवाल ने लोकपाल के मुद्दे पर 2013 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में बनी सरकार से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन वह वादा प्रचंड बहुमत मिलने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। इसके अलावा भी आप ने दिल्ली से सीसीटीवी, वाईफाई जैसे वादे किए थे, जो आज भी अधूरे हैं।
दिल्ली में आप की जमीन कमजोर हो रही है इसका अंदाज़ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों और एमसीडी चुनाव के नतीजों से भी हुआ था। इसके अलावा भ्रष्टाचार विरोध के आधार पर सत्ता में आई केजरीवाल सरकार के ई कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में ही पदों से हटाए गए और उन पर कार्रवाई हुई।
इसके अलावा बीते वक्त में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आशुतोष, कुमार विश्वास, आशीष खेतान जैसे बड़े नाम आम आदमी पार्टी से किनाराकशी कर चुके हैं। इस सबके चलते आप कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर नहीं आ रहा।
आप से नाराज वोटरों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ आकर्षित हुआ है, इसके अलावा नोटबंदी और महंगाई से त्रस्त मध्य वर्ग भी कांग्रेस की तरफ उम्मीदों से देख रहा है। इसके अलावा दिल्ली के मुस्लिम और दलित वोटरों का रुझान भी फिलहाल कांग्रेस की तरफ ही नजर आ रहा है।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों के कयास हैं कि त्रिकोणीय मुकाबले में फायदा बीजेपी को होता है, लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं कि नोबंदी और जीएसटी से परेशान दिल्ली के कारोबारी समुदाय पर सीलिंग की मार ने पलड़ा कांग्रेस की तरफ झुका दिया है।.
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